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मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त, जैसे उसे कोई सरोकार ही न हो

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उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ग्लेशियर फट गया। उत्तराखंड वालों को ही फ़िक्र नहीं। वहाँ की भाजपा सरकार को चिन्ता नहीं। सरकार और उत्तराखंड की जनता अयोध्या में मंदिर के लिए चंदा जमा करने में जुटी है। उसे ग्लेशियर से क्या मतलब?  पर्यावरण की चिंता करने वाली ग्रेटा थनबर्ग का मजाक उड़ाने से उत्तराखंड वाले भी नहीं चूके थे। ... बाकी भारत के लोगों का सरोकार भी अब पर्यावरण या ऐसे तमाम मुद्दों से कहाँ रहा।  जैसे इन्हें देखिए।... मुसलमानों, बहुजनों और ओबीसी को उन पर मंडरा रहे ख़तरे की चिन्ता ही नहीं है।  भाजपा-आरएसएस ने बहुजनों और ओबीसी आरक्षण को बहुत होशियारी से ठिकाने लगा दिया है। फिर भी ओबीसी, दलित भक्ति में लीन हैं... लेकिन मुसलमान भी कम लापरवाह नहीं हैं। मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त है। ख़ैर...हमारा मुद्दा आरक्षण नहीं है। कल यानी 6 फ़रवरी 2021 को किसानों ने चक्का जाम किया था।  चक्का जाम की ऐसी ही अपील शाहीनबाग़ आंदोलन के दौरान छात्र नेता और जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर शारजील इमाम ने पिछले साल भी की थी। लेकिन हुकूमत ने शारजील को देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया। जबकि उसने साफ़ साफ़ कहा था कि बिना

सुनों औरतों...हिन्दू राष्ट्र में शूद्र और मलेच्छ गठजोड़ पुराना हैः ज़ुलैख़ा जबीं

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“ हिन्दूराष्ट्र में औरतों की ज़िन्दगी के अंधेरों को शिक्षा के नूर से शूद्र और मलेच्छ (मुसलमान) ने मिलकर जगमग उजियारा बिखेरा है....." तमाम (भारतीय) शिक्षित औरतों , आज के दिन एहतराम से याद करो, उन फ़रिश्ते सिफ़त दंपति जोड़ों (सावित्रीबाई-जोतिबा फुले , फ़ातिमा शेख़- उस्मान शेख़) को जिनकी वजह से तुम सब पिछले डेढ़ सौ बरसों से देश और दुनियां में कामयाबी और तरक़्क़ी के झंडे लहराने लायक़ बनी हो... 1 जनवरी 1848  में पुणे शहर के गंजपेठ वर्तमान नाम फुलेवाड़ा में लड़कियों के लिए पहला स्कूल उपरोक्त दोनों जोड़ों के प्रयासों से उस्मान-फ़ातिमा शेख़ के घर में खोला गया था। ऐ औरतों, भारत के इतिहास में हमारे लिए - तुम्हारे लिए जनवरी खास महीना है। जिसमें फ़ातिमा शेख़ नो जोतिबा फुले के सपनों को परवान चढ़ाया।   हालांकि आप में से बहुतों को ये बात आश्चर्यचकित करनेवाली लगेगी...आप में से ज़्यादातर लोग सोचेंगे कि...."हमारी कही बात अगर सच होती तो आपके इतिहास में ज़रूर दर्ज होती , और आपको बताई भी जाती"... ?  आपका ये सोचना सही है कि आपको बताया नहीं गया..... लेकिन सवाल ये है के इतनी बड़ी

मध्य वर्ग को कपिल गूर्जर में जो एडवेंचर दिखता है वो बिल्कीस दादी में नहीं

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भारत का मध्यम वर्ग भारत का दुर्भाग्य बनता जा रहा है... -यूसुफ किरमानी भारत का मध्यम वर्ग दिवालिया होने के कगार पर पहुंचने के बावजूद हसीन सपने देख रहा है। उसकी याददाश्त कमजोर हो चुकी है लेकिन देशभक्ति का टॉनिक उसकी मर्दाना कमजोरी को दूर किए हुए है। साल 2020 के खत्म होते-होते पूरी दुनिया में भारत के फोटो जर्नलिस्टों के कैमरों से निकले दो फोटो की चर्चा हो गई लेकिन मध्यम वर्ग इसके बावजूद नींद से जागने को तैयार नहीं है। शाहीनबाग में सरेआम गोली चलाने वाले कपिल गूर्जर को जिस दिन बीजेपी में शामिल करने के लिए इस फर्जी राष्ट्रवादी पार्टी की थू-थू हो रही थी, ठीक उसी वक्त अमेरिका की वंडर वुमन बिल्कीस दादी का फोटो जारी कर उन्हें सबसे प्रेरणादायक महिलाओं में शुमार कर रही थी।  हालांकि बीजेपी ने छह घंटे बाद कपिल गूर्जर को पार्टी से बाहर निकालकर आरोपों से अपना पीछा छुड़ाया। लेकिन दुनियाभर में तब तक शाहीनबाग में फायरिंग करते हुए कपिल गूर्जर की पुरानी फोटो एक बार फिर से वायरल हो चुकी थी लेकिन तब उसके साथ वंडर वुमन की वो सोशल मीडिया पोस्ट भी वायरल हो चुकी थी, जिसमें उसने दादी का फोटो लगाया था।

यौमे आशूराः ऐ मुसलमां तू हुसैन बन, यज़ीदियत न रही है न रहेगी

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-जुलैखा जबीं ज़ुल्म और ज़ालिम से समझौता न करते हुए जान तक चली जाने के अंदेशे के बावजूद आवाज़े हक़ बुलंद करने का नाम ही कर्बला है... शहादते हुसैन के 1442 बरस बाद ये बिचारने का वक़्त है कि  मुसलमान आज किस ख़ेमे के बाहर खड़े हैं? किसकी ड्योढ़ी के पहरेदार हैं? यज़ीद की...? या मक्कार, फ़रेबी कूफ़ियों की...? जवाब चाहे जो आए लेकिन,  हुसैन के ताबेदार तो नहीं ही बन पाए हैं..!   अलबत्ता कूफ़ियों की मक्कारियों में सराबोर, आज के ज़्यादातर (भारतीय) मुसलमान "मर्द" (तथाकथित मज़हबी) आज के यज़ीदी हाकीम की गोद में जा बैठे हैं, ज़ाहिर है उनकी औरतें शौहर या कुनबापरस्ती से बाहर कैसे रह सकती हैं...? क़ुरआन में अल्लाह का फ़रमान है- "हम तुम्हें हर हालत में आजमाएंगे - ख़ौफ़ से,  फ़क़्रो-फ़ाक़े (भूख-प्यास) से। हम तुम्हें जानी और माली नुकसान के ज़रिए भी आज़माएंगे और ऐ नबी बशारत दे दीजिए सब्र करने वालों को - जब कोई मुसीबत नाज़िल (पड़ जाए) हो जाए उन पर तो कहें, इन्नालिल्लाहे व इन्ना इलैही राजेऊन - हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ़ हमें लौट जाना है... ये हैं वो लोग जिनकोे उनके रब

हमारे बाद अंधेरा नहीं, उजाला होगा...

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- ज़ुलेखा जबीन आजका दौर भारतीय नारीवाद के गुज़रे स्वर्णिम इतिहास पे चिंतन-मनन किए जाने का है... यक़ीनन ये वक़्त ठहर कर ये सवाल पूछने का भी है कि भारत के नारीवादी आंदोलन का वर्ग चरित्र हक़ीक़त में क्या और कैसा रहा है....! हालांकि इन बेहद ज़रूरी सवालों को कई तरह के "प्रतिप्रश्नों" के ज़रिए "उड़ा" दिए जाने की भरसक कोशिशें की जाएंगी लेकिन फ़िर भी असहज कर दिए जाने वाले सवाल उठाना जम्हूरियत की असली ख़ूबसूरती तो है ही, लोकतंत्र में जी रहे तमाम आम नागरिकों के नागरिक होने का इम्तिहान भी है।... पिछले कुछ दिनों से जामिया यूनिवर्सिटी की स्कालर और ग़ैर संवैधानिक #CAA, #NRC #NPR  पर एक नौजवान नागरिक #सफ़ूरा जरगर की गिरफ़्तारी, उस पर राजद्रोह से लेकर हत्या करने, हथियार रखने, दंगे भड़काने जैसी गतिविधियों सहित 18 धाराएं लगाई गई हैं।  इसके साथ ही जेल में की गई मेडिकल जांच में उसके प्रेग्नेंट होने की ख़बर सामने आने के बाद भारत के बहुसंख्यक समाज के लुंपन एलिमेंट्स की तरफ़ से सोशल मीडिया में जो शाब्दिक बवाल मचाया गया वो तो अपेक्षित था। जो अनापेक्षित रहा वो इ

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...

क्या मुसलमानों का हाल यहूदियों जैसा होगा ...विदेशी पत्रकार का आकलन

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मुसलमान भी यहूदियों की तरह साफ कर दिए जाएंगे...यह बात किसी सवाल की तरह नहीं आया है बल्कि तथ्यों के जरिए हालात की तरफ इशारा किया गया है। यह बातें उस वक्त की जा रही हैं जब कोरोना के दौरान तमाम साजिश वाली थ्योरी (conspiracy theories) पर बातें हो रही हैं। यहां मैं भी किसी conspiracy theories पर बात नहीं करूंगा बल्कि मैं जाने-मान पत्रकार सी जे वर्लमैन (C J Werleman) के उस लेख का जिक्र करना चाहता हूं जिसमें उन्होंने यहूदियों के खात्मे की तुलना मौजूदा दौर में पूरी दुनिया में मुसलमानों को खत्म किए जाने या उन्हें हाशिए पर भेजे जाने से की है। उनका यह लेख टीआरटी वर्ल्ड ने प्रकाशित किया है। वह लिखते हैं - 14वीं शताब्दी में जब #काला-जार ( #BlackPlague) ने #यूरोप को अपनी चपेट में लिया तो करीब पचास फीसदी लोग इस बीमारी से मारे गए। उसी दौरान यह अफवाह फैलाई गई कि #यहूदी लोग इस बीमारी को फैला रहे हैं। वे कुओं में पीने के पानी के जरिए इसे फैला रहे हैं। इस अफवाह का नतीजा यह निकला कि चारों तरफ यहूदियों को मारा जाने लगा। उनका #नरसंहार ( anti-Semitic pogroms ) हुआ। गांव के गांव जिनमें यहूदी आबादी रहत

शब-ए-बरात... (शबरात) पर चंद बातें...

इस बार यह त्यौहार कल बुधवार को ऐसे मौक़े पर पड़ने जा रहा है जब हम लोग कोरोना की वजह से घरों में क़ैद हैं।  इस तरह यह त्यौहार हिंद के तमाम आलम-ए-मुसलमानों के लिए एक इम्तेहान और चुनौती लेकर आया है। इस त्यौहार पर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। क़ब्रिस्तान में जाकर मोमबत्ती या दीया जलाकर रोशनी करते हैं। घरों में हलवा बनता है और उस पर नज्र या फातिहा दिलाया जाता है।  जिनके यहाँ पिछले एक साल के अंदर किसी अपने (प्रियजन) की मौत हुई है, उनके लिए तो यह शब ए बरात और भी खास है।  क्योंकि इस #शब_ए_बरात में वो आपके साथ नहीं हैं जबकि पिछले साल वो आपके साथ थे। मैं तमाम #मुसलमानों से हाथ जोड़कर गुजारिश करता हूँ कि इस बार यह सभी काम आप अपने घरों में करें।  किसी को बाहर निकलने या क़ब्रिस्तान और मस्जिदों में जाने की ज़रूरत नहीं हैं। आपके पूर्वज आपकी मजबूरी को समझेंगे और जहाँ वे होंगे आपके लिए दुआ करेंगे।  हर फ़िरक़े के तमाम मौलानाओं, उलेमाओं से भी विनती है कि वे जहाँ भी हैं, इस बार लोगों को इन चीज़ों को घरों में करने के लिए कहें। किसी को भी बाहर निकलने के लिए न कहें।

कोरोनाई पत्रकार और जाहिल मुसलमान

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तबलीगी जमात की आड़ में मुसलमानों को विलेन बनाने की खबरों में अब धीरे-धीरे कमी आ रही है। ...लेकिन आप जानना नहीं चाहते कि अचानक यह कमी कैसे आ गई। दरअसल, #अयोध्या में हिंदू श्रद्धालुओं का मंदिरों में बड़ी तादाद में पहुंचना और उस वीडियो का वायरल होना। एक और वीडियो वायरल है जिसमें #भाजपा सांसद मनोज तिवारी अपने चमचों की भीड़ के साथ मास्क बांटते घूम रहे हैं। वीडियो तो और भी हैं लेकिन अयोध्या पर आए वीडियो से मुख्यधारा का #मीडिया डर गया है। इसके अलावा मीडिया का वो चेहरा भी बेनकाब हुआ, जिसमें उसने एक कैदी के थूकने की घटना का वीडियो तबलीगी जमात का बताकर प्रचारित कर दिया था। इसके अलावा एक दूसरे मौलाना सज्जाद नोमानी का फोटो मौलाना साद बनाकर जारी कर दिया था।...लेकिन मजाल है कि मीडिया के जिन भक्तों ने यह काम किया है, उन्होंने माफी मांगी हो। वाकई पत्रकार जिसे कहते हैं, वो अब कमजर्फ जमात बनते जा रहे हैं। वे खुद एक #कोरोना में तब्दील हो गए हैं। #तबलीगीजमात ने जो जाहिलपना दिखाया, उसमें उसका पक्ष नहीं लेते हुए, बात कमजर्फ पत्रकार जमात और कमजर्फ मीडिया पर करना जरूरी है। क्योंकि सीजफायर कंपनी