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क्या आप अनुभव सिन्हा की भीड़ के साथ हैं?

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  Are you with Anubhav Sinha’s “Bheed” ? -यूसुफ किरमानी  दो सूचनाओं पर आप ग़ौर फ़रमा सकते हैं। डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने एक फ़िल्म बनाई भीड़। यह लॉकडाउन के दौरान बिहार-यूपी के मज़दूरों के बड़े शहरों को छोड़कर अपने गाँव लौटने की कहानी है।  इस फ़िल्म के ट्रेलर को बीती रात यानी गुरूवार की रात सोशल मीडिया (Social Media) और अन्य मंचों से हटवा दिया गया। इस फ़िल्म में पैसा लगाने वाले टी सीरीज़ भी इस मामले में पीछे हट गया। इस फ़िल्म में प्रवासी मज़दूरों की (Migrant Labours) सच्ची कहानी है। इसमें कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराने वाले भगवा झूठ का  सच बयान किया गया है। इसमें सूटकेस पर सोते बच्चे, इसमें साइकल से पूरे परिवार को ढोते मज़दूर, इसमें भूखे प्रवासी मज़दूरों को रोककर मुस्लिम युवकों द्वारा उनके लिए पानी और खाने का इंतज़ाम करते जत्थे की कहानियाँ हैं।  फ़िल्म का ट्रेलर यहाँ देखिए चूँकि मैं एक पत्रकार हूँ तो इन घटनाओं का चश्मदीद भी हूँ। हम लोग इन तथ्यों को फ़ोटो, वीडियो के साथ बता चुके हैं लेकिन अनुभव सिन्हा के कहानी बताने का अंदाज निराला है। अनुभव सिन्हा का अनुभव एक-एक किर

भारतीय लोकतंत्र पर जॉर्ज सोरोस की टिप्पणी को समझिए

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Decoding George Soros comment on Indian Democracy  - यूसुफ किरमानी  अडानी मुद्दे के बहाने भारत में लोकतंत्र पुनर्जीवित हो सकता है यह बात एक विदेशी पूँजीपति सोचता है। उनका नाम है जॉर्ज सोरोस (George Soros)।  जबकि हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि अडानी समूह भारत को व्यवस्थित ढंग से लूट रहा है। एक मुद्दा, दो विदेशी विचार। पूँजीपति जॉर्ज सोरोस का बयान आने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे भारत पर हमला बताया। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह ने भी यही कहा था कि उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट आने का मतलब भारत पर हमला है। तो, इस बात पर अडानी समूह (Adani Group) और केंद्र की मोदी सरकार सहमत हैं कि भारत पर विदेशी लोग हमला कर रहे हैं। लेकिन हमले के केंद्र में अडानी समूह है। कौन किसका बचाव कर रहा है। इस पर माथापच्ची न करते हुए आगे जॉर्ज सोरोस पर बात करते हैं। जॉर्ज सोरोस पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने पार्टी की ओर से यह कहने की कोशिश की है कि यह हमारा अपना मामला है, आप क्यों बीच में कूद पड़े। लेकिन जयराम रमेश या उनकी कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे हैं।  जॉर्ज सोरोस खुद पूँज

बात नफरत की दूर देश तक जा पहुंची है

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India's hate environment is being discussed abroad भारत में बने नफ़रत (hate) के माहौल को लेकर भले ही कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी को चिन्ता हो, लेकिन दुनिया में कई और जगहों पर भी इस पर चिन्ता जताई जा रही है। अगर कोई नहीं समझने को तैयार है, तो वो हैं - भाजपा और आरएसएस (BJP, RSS)। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी, अशिक्षा, दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था मुद्दा ही नहीं हैं। राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर बहस अफ़्रीका से चीता लाए जाने और उन्हें छोड़ने पर हो रही हो।   दो दिन पहले जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स के एक वरिष्ठ फेलो जॉक्लीने केसरी ने द कन्वर्सेशन यूएस की एक पत्रकार और संपादक कल्पना जैन के साथ भारत में मुस्लिम विरोधी अभद्र भाषा और हिंसा (hate violence) के उदय पर चर्चा की। विद्वानों और पत्रकारिता के दृष्टिकोण को मिलाकर, दोनों ने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने देश के हिंदू बहुसंख्यकों के बीच मुसलमानों के प्रति साम्प्रदायिक नज़रिया और माहौल का निर्माण किया है।       2014 में मोदी के सत्ता मे

देश में शॉर्टकट पॉलिटिक्स कौन कर रहा है

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Shortcut Politics in India: Leaders and their Character   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को विपक्षी दलों पर शॉर्टकट पॉलिटिक्स करने का आरोप लगाते हुए उन्हें चेतावनी दी। शॉर्टकट पॉलिटिक्स का मतलब है राजनीति में जल्द सफलता हासिल करने के नुस्खे। पीएम मोदी का यह जुमला सोमवार को देश के कुछ अखबारों की सुर्खियां बन गया। लेकिन इन सुर्खियों में वो बात कहीं नहीं लिखी गई कि दरअसल, कौन सा राजनीतिक दल शॉर्टकट पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखता है। बल्कि अगर सलीके से इस बात को कहा जाए, तो आधुनिक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मोदी जी शॉर्टकट पॉलिटिक्स के मसीहा बन गए हैं। उनके जुमलों पर नजर डालते जाइए और शॉर्टकट पॉलिटिक्स को समझते जाइए।     क्यों कही पीएम मोदी ने यह बात   उससे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर पीएम मोदी ने किस वजह से बीजेपी को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों को शॉर्टकट पॉलिटिक्स न करने की चेतावनी दी। दरअसल, हाल ही में गुजरात, हिमाचल, एमसीडी के अलावा कुछ उपचुनावों के नतीजे आए हैं। गुजरात को छोड़कर बीजेपी बाकी जगह हार गई है। आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली, पानी के वादे के साथ दिल्ली से लेकर पंजाब और अ

गुजरात, हिमाचल, दिल्ली के चुनाव नतीजे क्या बताते हैं- मोदीत्व कितना चलेगा

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Election results of Gujarat, Himachal, Delhi : how long Moditva will last गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को आए। इससे पहले 7 दिसंबर को दिल्ली में एमसीडी चुनाव के नतीजे आए थे। लेकिन मीडिया गुजरात की चर्चा कुछ ज्यादा ही कर रहा है। 8 दिसंबर को गुजरात में बीजेपी को जीत दिलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendar Modi) ने अपने संबोधन में भी गुजरात का जिक्र ज्यादा किया, हिमाचल और एमसीडी में बीजेपी की हार की चर्चा नहीं के बराबर की।  गुजरात में बीजेपी को भारी जीत मिली है। इसमें कोई शक नहीं है। 182 विधानसभा सीटों में से 157 सीटें जीतना मामूली बात नहीं है। दिल्ली एमसीडी चुनावों में भी भगवा पार्टी (Saffron Party ) ने अप्रत्याशित रूप से दमदार प्रदर्शन किया, लेकिन आम आदमी पार्टी से एक मामूली अंतर से हार गई। गुजरात में बीजेपी की जीत काबिले तारीफ है। तथ्य यह है कि उसे 52% से अधिक वोट शेयर मिला है। यही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबदबे को बताने के लिए काफी है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच विपक्षी वोटों के बंटवारे के साथ ही गुजराती मतदाताओं से मोदी के  भावनात्मक जुड़ा

आज़म खान के भरोसे मुसलमान !!!

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आज़म खान आज (20 मई 2022) जेल से छूट गए हैं। मुसलमान ख़ुशियाँ मना रहा है, यह जाने बिना की #आज़म_खान का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा? देश नफरत की आग में जल रहा है। मुसलमान तय नहीं कर पा रहा है कि उसे क्या करना चाहिए। ऐसे में किसी आज़म खान में उम्मीद तलाशना खुद को धोखा देना है। हालाँकि आज़म खान से पूरी हमदर्दी है। किसी पर 89 केस बना दिए जाएँ तो उसके महत्व को समझा जा सकता है।  बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की हरकतों, बयानों को भुलाया नहीं जा सकता। आज़म खान उस वक्त मुलायम के साथ थे। उस वक्त आज़म का क्या फ़र्ज़ बनता था? इसका इतिहास लिखा जाएगा। अयोध्या आंदोलन को चरम पर ले जाने के दाग से ये दोनों भी बच नहीं पाएंगे। जेल से बाहर आने के बाद अब ज़रा आज़म के बयानों पर नज़र रखने की ज़रूरत है। मुद्दा ये है कि हर नेता की दुकान है। वो धर्म, जाति, नफ़रत के कारोबार से मुसलमान हिन्दू दोनों को बेवकूफ बना रहा है। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी चरम पर हो, इस देश के राजनीतिक दलों के लिए बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने की तमन्ना ही न हो तो उस देश की जनता को किसी नेता विशेष से कोई उम्मीद नह

हम क्यों उनको याद करें!

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आम्बेडकर को क्या करोगे याद करके देश आम्बेडकर के संविधान से नहीं, गोलवरकर की किताब से चलेगा गौर से चेहरे और नामों को पढ़िए  जो तलवारें लहरा रहे हैं उन्मादी नारे लगा रहे हैं। उसने अपने अनुयायियों को बौद्ध बनाया पर, वो न बौद्ध हो सके और न इंसान वो सब के सब बन गए हैं हिन्दू-स्तान। हिन्दू होना ज़रा भी बुरा नहीं है गोलवरकर बन जाना ख़तरनाक है सावरकर से गोडसे तक नाम ही नाम हैं हेडगेवार से पहले भी तो हिन्दू थे उनके हाथों में भगवा नहीं, तिरंगा था वे चंद्रशेखर आज़ाद थे, वे बिस्मिल थे वे हिन्दू थे, लेकिन भगवाधारी हिन्दू नहीं थे वे भगत सिंह थे, वे सुखदेव थे वे किसी सिख संगत के मेंबर नहीं थे। आम्बेडकर ने मनुस्मृति को कुचला मनुस्मृति कुचलने से हिन्दुत्व ख़त्म नहीं हुआ वो मनुस्मृति का नया संस्करण ले आए संविधान ही मनुस्मृति में बदल रहा है।  लेकिन अब्दुल को क्यों फ़र्क़ पड़े इन बातों से उसे तो पंक्चर ही लगाना है उसे दंगाई कहलाना है और घर पर बुलडोज़र बुलवाना है। बाबा के संविधान ने अब्दुल को क्या दिया हाँ, यूएपीए दिया, टाडा दिया, एनआईए दिया अब्दुल को उलझाने के अनगिनत हथियार दिए कथित धर्मनिरपेक्ष भारत को अ

राहुल गांधी का “हिन्दू” मोदी के “हिन्दुत्व” को नहीं हरा सकता

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जनता को आडंबर पसंद है, मोदी की छवि उसे मोहक लगती है... तमाम प्रश्न अनुत्तरित हैं। यक्ष प्रश्न पूछने वाले नदारद हैं। नेपथ्य से आने वाली आवाज़ें खामोश हैं। कुछ जोकर हिन्दुत्व नाम की रस्सी को अपनी-अपनी तरफ़ खींचने में ज़ोर लगा रहे हैं। जनता धर्म की अफ़ीम चाटकर सारे कौतुक को निर्लज्जता से देख रही है। यह कम शब्दों में भारत के मौजूदा हालत की तस्वीर है।  राहुल गांधी भारत के प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस के ज़िम्मेदार नेता हैं। उनकी पार्टी जयपुर में महंगाई विरोधी रैली करती है। रैली से बढ़ती महंगाई का सरोकार ग़ायब है। राहुल धर्म का मुद्दा छेड़ते हैं। पेट की आग से धर्म बड़ा हो जाता है।  राहुल महंगाई विरोधी रैली में हिन्दू और हिन्दुत्व का फ़र्क़ समझाते हैं। वो गोडसे के हिन्दुत्व को विलेन बनाने की कोशिश करते हैं। राहुल गांधी के भाषण में कुछ भी नया नहीं था। वो पहले भी यही बातें कह चुके हैं। आरएसएस पर हमला कर चुके हैं। लेकिन दो दिन बाद उन्हें हिन्दुत्व के उन पैरोकारों की तरफ़ से जवाब मिलता है जो राहुल के मुताबिक़ गोडसे परंपरा के वाहक हैं। राहुल गांधी के सलाहकार कौन हैं, मुझे नहीं पता। उन्हें कौन सलाह

वर्क फ्रॉम होम के प्रस्तावित कानून में क्या होगा

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 Work from Home क़ानून में किसके मन की बात होगी ? -यूसुफ किरमानी तमाम कंपनियों में घर से काम (वर्क फ्रॉम होम  Work from Home ) करने का  सिलसिला  बढ़ने के बाद भारत सरकार अब इसके मद्देनजर कायदे-कानून बना रही है। इन नियमों के लागू होने के बाद कंपनी मालिकों पर अपने कर्मचारियों या स्टाफ की क्या जिम्मेदारियां होंगी, उसे कानून के जरिए परिभाषित कर दिया जाएगा।  अभी कोई नहीं जानता कि केंद्र सरकार की कानूनी परिभाषा का दायरा क्या होगा। वर्क फ्रॉम होम में स्टेकहोल्डर स्पष्ट तौर पर तो दो ही हैं  –  कंपनी और कर्मचारी। लेकिन कुछ और भी स्टेकहोल्डर हैं जो अप्रत्यक्ष हैं। जैसे कर्मचारी का परिवार। वर्क फ्रॉम होम की परिभाषा के दायरे में कर्मचारी का परिवार होगा या नहीं, इस पर श्रम मंत्रालय की कोई राय अभी तक सामने नहीं आई है। सरकार ने  तमाम मजदूर संगठन से भी इस संबंध में किसी तरह की सलाह नहीं मांगी है। कम से कम उसे सरकार समर्थित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) से ही पूछ लेना चाहिए था। घर से काम ( Remotely Working ) पर  प्रस्तावित केंद्रीय  कानून  एक  नए मॉडल  की तरह पूरे देश में लागू होगा।  कोविड -19   (Covid 19)