कैसे कहें खुशियों वाली ईद
इस बार की ईद (Eid) कुछ खास थी, इस मायने में नहीं कि इस बार किसी मुल्ला-मौलवी (Clergy) ने इसे खास ढंग से मनाने का कोई फतवा जारी किया था। खास बात जो तमाम लोगों ने महसूस की कि लोग ईद की मुबारकबाद देने के बाद यह पूछना नहीं भूलते थे कि खैरियत से गुजर गई न? पिछले साल की ईद में यह बात नहीं थी। इस बार मस्जिद में ईद की नमाज पढ़ने गए लोग इस जल्दी में थे कि किस तरह जल्द से जल्द घर पहुंच जाएं, दिल्ली की जामा मस्जिद (Jama Masjid) में पहले के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं थी। जामा मस्जिद, चांदनी चौक, दरियागंज इलाके के व्यापारियों का कहना था कि ईद से तीन दिन पहले वे जो Business करते थे, वह इस बार नहीं हुआ। यानी बिजनेस के नजरिए से नुकसान सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं बल्कि हिंदू व्यापारियों का भी हुआ है। साजिश रचने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि एसी घटनाएं किसी एक समुदाय की खुशी या नाखुशी का बायस नहीं बनतीं बल्कि उसकी मार चौतरफा होती है और उस आग में सभी को जलना पड़ता है। कुछ नतीजे जरा देर से आते हैं। बहरहाल, दोपहर होते-होते तमाम गैर मुस्लिम मित्र घर पर ईद की मुबारकबाद देने आए। ये तमाम मित्र जो विचारधारा से कांग्रेस, बीजेपी और वामपंथी थे, इस एक बात पर सहमत थे कि यह कोई बड़ी साजिश है और हो न हो इसका कोई संबंध आने वाले लोकसभा चुनाव से जरूर है। हर कोई अपने ढंग से रिएक्ट कर रहा था। इस दौरान फोन भी आते रहे और हर फोन पर वही बात, सब ठीक है न? कैसी जा रही है ईद? फोन करने वाले तमाम लोगों को लग रहा था कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में कोई ईद मना ही नहीं पा रहा हो। इस बार सीरियल ब्लॉस्ट (Serial Blast) और दिल्ली के जामिया नगर इलाके में हुए विवादास्पद एनकाउंटर ने पूरा माहौल बदल दिया। सीरियल ब्लास्ट से दिल्ली तो खैर सहमी ही हुई है, देश के बाकी हिस्सों में भी लोग डरे हुए हैं। मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के बाकी लोगों ने भी इसका एहसास किया होगा लेकिन यह हालात बने क्यों इस पर विचार करने के लिए कोई तैयार नहीं है। जिन लोगों ने १३ सितंबर शनिवार को दिल्ली के कई इलाकों में बम ब्लॉस्ट कर २४ निर्दोष लोगों की जान ली औऱ इसके बाद दिल्ली के ही एक और इलाके में एक ब्लॉस्ट कर दहशत (Terror) को आगे बढ़ाने की नाकाम कोशिश की गई। उनका मकसद क्या था यह कोई नहीं जानता। मुसलमानों की इमेज पर चोट पहुंचाने की कोशिश में जुटे एसे गुमराह लोगों को क्या इस बात का इल्म है कि इस बार की ईद खुशियों वाली नहीं थी। आखिर वे तमाम लोग किस बात की लड़ाई लड़ रहे हैं और किसके हक की बात कह रहे हैं।
टिप्पणियाँ
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--'ब्लॉग्स पण्डित'
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आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ 'ब्लॉग्स पण्डित' पर.
भाई विपिन, वह सुबह कभी तो आएगी। आप निराश न हों।
ई-गुरु राजीव, आपने वाकई बहुत काम के टिप्स दिए हैं। उन पर विचार किया जाएगा। हरि भाई, मुझे भी यही यकीन है कि एसा ही होगा (आमीन)। प्रदीप जी, क्यों नहीं, आपने जो आमंत्रण दिया है, उसे भला कैसे ठुकराया जा सकता है।
समाज और देश के नव-निर्माण में हम सब का एकाधंश भी शामिल हो जाए.
यही कामना है.
कभी फुर्सत मिले तो मेरे भी दिन-रात देख लें.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
डो.अनुराग की बात से मैं सो टका संमंत हुं।