बच्चे और दम तोड़ती संवेदनहीनता


बच्चों को लेकर समाज संवेदनहीन (Emotionless)होता जा रहा है। बच्चे घर से निकलते हैं स्कूल जाने के लिए और बुरी संगत में पडक़र या तो नशा (Drug Addict) करने लगते हैं या फिर अपराधी गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं। शहरों में मां-बाप पैसा कमाने के चक्कर में बच्चों पर नजर नहीं रख पाते जबकि वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन समय नहीं है। दफ्तर से घर और घर से दफ्तर, बीच में कुछ देर के लिए टीवी पर थर्ड क्लास खबरों और प्रोग्राम से समय काटना, बस यही रोजमर्रा की जिंदगी हो गई है। पत्नी अगर वर्किंग नहीं है तो घर के तमाम काम के अलावा बच्चों को संभालना सिर्फ उसके अकेले की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों इस तरह की कुछ समस्याओं पर एक समाजशास्त्री (Sociologist) से बात होने लगी। उसका कहना था कि अगर आपकी लाइफ में आटा-दाल-चावल और नौकरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है तो भूल जाइए कि आप अपने बच्चे को किसी मुकाम तक पहुंचा सकेंगे। परिवार नामक संस्था को जिंदा रखना है तो बच्चे का ध्यान रखा जाना सभी की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। बच्चा स्कूल जाता है, वहां कभी उसके चेहरे को लेकर तो कभी उसके बाल को लेकर, कभी धर्म और भाषा को लेकर दूसरे बच्चे भद्दा मजाक करते हैं। बच्चे ने घर आकर एकाध बार शिकायत की और आपने अनसुना कर दिया। उसके बाद आपका बच्चा तो स्कूल में तरह-तरह के दबाव में रहता है और आपको पता भी नहीं लगता। उन्होंने एक खास बात यह भी कही कि अगर बच्चे की रुचि किसी खेल (Sports) में नहीं है तो समझिए कुछ गड़बड़ है। कोशिश यह हो कि कम से कम खेल की किसी एक विधा से वह रूबरू जरूर हो। बेशक आप उसे सचिन तेंदुलकर या सुशील कुमार न बना सकें लेकिन ऐसी चीजों की तरफ उसका ध्यान बंटाना जरूरी है।
ऐसी न जाने कितनी घटनाएं होंगी जो अब आपको अपने खुद के संदर्भ या अपने बच्चे के संदर्भ में जरूर याद आ रही होंगी।
जिस कहानी के लिए मैंने यह पोस्ट लिखी, आइए उसे पढ़ते हैं। नवभारत टाइम्स के रिपोर्टर राजेश सरोहा की सोमवार 6 अक्टूबर को इसी अखबार में एक खबर छपी है जो काफी दहलाने वाली है, उन्हीं की जबानी जानिए उस बच्चे की कहानी...

राजेश सरोहा 12
साल के ढोलू उर्फ मशीन की इन दिनों जेबकतरों के गिरोहों को बड़ी शिद्दत से तलाश है। त्योहारों और शादी-ब्याह का सीजन आते ही मोबाइल चुराने वाले गैंग उसे मुंहमांगे दामों में खरीदते-बेचते थे। ढोलू का स्टाइल भी बड़ा निराला था। वह पूजा या शादी के पंडाल में चकाचक कपड़े पहनकर घुसता और दर्जनभर मोबाइल जेब में लेकर मिनटों में बाहर निकल आता। हाल ही में पुलिस उसे अमरोहा से पकडक़र लाई। इन दिनों वह अपने माता-पिता के पास है। घरवाले परेशान
हैं, क्योंकि उसे गैंग में शामिल करने वाले बदमाशों ने उसके घर के बाहर लाइन लगा रखी है।
ढोलू अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ राजधानी के प्रीत विहार इलाके में रहता है। वह सरकारी स्कूल में सेकंड क्लास में पढ़ता था। बिगड़ैल बच्चों की संगत में उसे फ्लूड का नशा करने की लत लग गई। सात साल की उम्र में पहली बार उसने घर छोड़ा था। शुरू-शुरू में कुछ महीने बाहर रहने के बाद वह घर लौट आता था। ढोलू बताता है कि लत पूरी करने के लिए पहले उसने छोटी-मोटी चोरी शुरू की।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि करीब ढाई साल पहले ढोलू सत्ते और रंजीत नामक जेबकतरों के साथ रहा। इन दोनों बदमाशों ने उससे जमकर जेबतराशी कराई। जनवरी-फरवरी 2007 में उन्होंने ढोलू को एक लाख रुपये में एक अन्य जेबतराश अरविंद उर्फ लंबू को बेच दिया। ढोलू को इस काम में महारत हासिल होती गई। अब सोभी और सिब्बू नाम के दो बदमाश ढोलू को अपने साथ रखना चाहते थे, लेकिन लंबू उसे छोडऩा नहीं चाहता था। इन दोनों ने लंबू की पिटाई की और ढोलू को अपने साथ ले गए। बच्चे का आरोप है कि इन दोनों बदमाशों ने उसे नशा कराकर उसके साथ गलत काम किया। इसके बाद मोबाइल से उसकी फिल्म भी बनाई। बाद में बच्चे को ब्लैकमेल कर जेबतराशी कराई। कुछ समय बाद ढोलू भागकर आलम के पास चला गया। आलम ने 14 अगस्त 2008 को उसे राशिद के हवाले कर दिया। राशिद उसकी खूबियों से अच्छी तरह से वाकिफ था इसलिए उसने दिल्ली में जगह-जगह जेबतराशी कराई। राशिद ने अन्य बदमाशों के साथ मिलकर मंडावली इलाके में दो करोड़ रुपये की डकैती डाली। इस डकैती से उसे20 लाख रुपये मिले थे। वह नकदी और ढोलू को साथ लेकर अमरोहा चला गया। यहां पर ढोलू ने डेढ़ महीने के अंदर 100 से ज्यादा मोबाइल फोन चुराए। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली पुलिस की टीम जब राशिद की तलाश में अमरोहा गई तो वहां उन्हें ढोलू मिला।
ढोलू के पिता जयकिशन भट्ट (बदला हुआ नाम) मूलत: अल्मोड़ा के है। पिछले 12 साल से वह जगतपुरी इलाके में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। वह रिक्शे पर सामान ढोकर गुजारा करते हैं। उनके चार बच्चों में ढोलू दूसरे नंबर का है। इन दिनों वह बदमाशों से परेशान हैं जो आए दिन ढोलू की तलाश में उनके घर के चक्कर काटते हैं। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले कुछ बदमाशों ने उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाने की कोशिश भी की थी। लेकिन ठीक वक्त पर पुलिस के आ जाने से बदमाशों को भागना पड़ा था।
मैंने इस खबर (News) को जब पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए। आप पता नहीं क्यो सोच रहे होंगे। आपकी आप जाने..

टिप्पणियाँ

आज के हालात का बेहतर तब्सिरा...
अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दिया है...
डॉ .अनुराग ने कहा…
sach me anklhe kholne vaala lekh hai ,padhkar ruh kaanp si jaati hai
shama ने कहा…
Mai pehlee baar aapke blogpe aayee...lekh jaldeeme padha...achha to haihee, lekin phirse ekbaar shanteese padhna chahungee.
Mere blogpe aap aaye aur tippanee dee, isliye bohot,bohot dhanywad!

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