अम्मा तेरा मुंडा बिगड़ा जाए

देश को कुनबा परस्तों की राजनीति से कब छुटकारा मिलेगा, यह तो नहीं मालूम लेकिन राजनीति में आई नई पौध से उनसे एक पीढ़ी पीछे मुझ जैसों को ही नहीं देश को भी उम्मीदें थीं लेकिन अब तो सभी लोगों का मोहभंग हो रहा है। कल तक हम लोग इस बात का रोना रोते थे कि भारत को नेहरू-गांधी (इंदिरा गांधी) परिवार के राज से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी...राहुल गांधी के नाम लेकर दिन रात कोसने वालों ने जब देखा कि यही हाल बीजेपी में है और यही हाल समाजवादी पार्टी से लेकर शिव सेना, शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी में है तो लोगों ने मुंह बंद कर लिए। एक तरह से लोगों ने धीरे-धीरे कुनबापरस्ती की राजनीति को स्वीकार करना शुरू कर दिया। लेकिन तमाम बड़े नेताओं के लाडलों ने राजनीति में अब तक कोई बहुत अच्छी मिसाल कायम करने की कोशिश नहीं की। गांधी खानदान के दो लाडलों -राहुल गांधी और वरूण गांधी को लेकर पीआर-गीरी करने वाले पत्रकारों ने तरह-तरह से प्रोजेक्ट करने की कोशिश की। राहुल को कभी यूथ ऑइकन बताया गया, कभी बताया गया कि वह ग्रामीण भारत के लिए कुछ करना चाहते हैं और इसी सिलसिले में पिछले दिनों उनके लोकसभा क्षेत्र अमेठी में ग्रामीण ओलंपिक जैसी कई चीज भी हुई। किसी दिन वह दिल्ली के इलीट कॉलेज सेंट स्टीफंस में जा पहुंचे और मीडिया ने ऐसे प्रोजेक्ट किया कि बस देश का यूथ तो राहुल बाबा के पीछे चल पड़ा है।
उधर, वरूण गांधी के इमेज की भी आरती उतारी जा रही थी। उनकी अम्मा मेनका गांधी के वर्तमान या अतीत के बारे में मैं यहां कुछ नहीं कहना और लिखना चाहता हूं। वरुण गांधी के बारे में कभी पढऩे को मिला कि वह कवियों वाला दिल रखते हैं तो कभी बताया गया कि वह बहुत अत्त्छी पेंटिंग बनाते हैं और म्यूजिक के शौकीन हैं। पेज थ्री वाली पार्टियों से नफरत करते हैं। कहीं ये भी पढऩे को मिला कि वह अपने पिता स्व. संजय गांधी वाली राजनीति नहीं बल्कि गांधी जी वाली राजनीति पसंद करते हैं और उन्हें अपनी मंजिल की तलाश है।
...लीजिए साहब, उनको मंजिल गई। उनकी अम्मा मेनका गांधी की वजह से बीजेपी ने उनके बेटे वरूण गांधी को इस बार पीलीभीत से चुनाव लड़वाने का फैसला किया। हालांकि पीलीभीत मेनका गांधी का चुनाव क्षेत्र रहा है लेकिन इस बार वह पड़ोस के आंवला लोकसभा क्षेत्र से लडऩे चली गईं और बेटे को पीलीभीत में फिट कर दिया। इसी पीलीभीत के बरखेड़ा में एक पब्लिक मीटिंग को संबोधित करते हुए वरूण गांधी की जबान क्या फिसली कि देशभर में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। जिस तरह का भड़काने वाला भाषण वरुण ने दिया, उस तरह का भाषण तो कोई हार्डलाइनर संघ का पदाधिकारी भी नहीं देगा। नीचे मैं एक वीडियो दे रहा हूं जहां आप सुन और देख सकते हैं कि वरुण गांधी ने क्या कहा और उनका कहने का मकसद क्या था। अन्य पार्टियों की बात तो छोडिए बीजेपी को वरुण की इस हरकत के बाद डिफेंसिव होना पड़ा। बीजेपी के कई नेताओं ने इस बयान के लिए वरूण की निंदा कर डाली। खासकर बीजेपी के वे नेता जो उसका मुस्लिम चेहरा हैं, ने फौरन इसके लिए कांग्रेस संस्कृति को जिम्मेदार ठहराया कि आखिर वरुण की पैदाइश तो उसी कांग्रेस संस्कृति की देन हैं।


इस लोकसभा चुनाव के जरिए जब बीजेपी ने केंद्र में अपनी सरकार बनाने का सपना देख रखा हो और ऐसे में वरुण के बयानों ने उसकी सारी रणनीति पर पानी फेर दिया है। दरअसल, बीजेपी इस बार इस कोशिश में है कि मुसलमानों वोटों को या तो बांट दिया जाए या फिर शांत रहा जाए क्योंकि समाजवादी पार्टी और बीएसपी की लड़ाई में कम से कम यूपी में मुस्लिम वोट तो बंटेगा ही। लेकिन अगर बीजेपी हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की बात चलाती है तो इसका फायदा मुलायम या मायावती में से किसी को एक होगा यानी जो बीजेपी को हराने की ताकत रखता होगा। लेकिन इस सारी रणनीति पर वरुण गांधी के चंद लफ्जों ने पानी फेर दिया।
दरअसल, वरुण और मेनका गांधी शुरू से ही अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों में वोटों का ध्रुवीकरण कराना चाहते थे। वरुण गांधी का बयान तो खैर नैशनल मीडिया में आया और सभी लोगों को इसकी जानकारी है लेकिन मेनका गांधी के लोकसभा क्षेत्र आंवला में भी चुनाव की घोषणा के बाद फरीदपुर इलाके में साम्प्रदायिक दंगा हुआ। इसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। लेकिन कुठ टीवी चैनलों ने समझदारी दिखाते हुए इसे बहुत ज्यादा फ्लैश नहीं किया। लेकिन इस घटना ने मंशा साफ कर दी कि बीजेपी या उसके प्रत्याशी किस दम पर वोटरों का सामना करना चाहते हैं।
वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारत में हालात वैसे भी बदतर होते जा रहे हैं और सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। लोग शायद सरकार के खिलाफ निगेटिव मतदान करें और बीजेपी किला फतह कर ले लेकिन वरुण गांधी सरीखे उसके अपरिपक्व नेताओं ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा है। हालांकि बीजेपी के थिंक टैंक में जगह बनाने वाले और संघ के विचारधारा की पैरोकारी करने वाले तरुण विजय ने वरुण की बात का समर्थन किया लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं के आगे उनकी बोलती फिलहाल बंद हो गई है। हालांकि इस मामले में चुनाव आयोग ने फौरी कार्रवाई करते हुए वरुण गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है और बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन ने इसके लिए माफी मांगते हुए वरुण से खेद प्रकट करने को भी कहा है। पर, वरुण गांधी ने दो समुदायों के बीच घृणा और वैमनस्य का जो बीज बोया, वह तो अब लौट नहीं सकता। बात तो मुंह से निकल चुकी है। ऐसे लड़कपन की राजनीति करने वाले युवाओं से अब देश भला क्या उम्मीद करे।

टिप्पणियाँ

roushan ने कहा…
भाजपा का ये ही चेहरा है जो वरुण ने दर्शाया
ये सोचने वाली बात है कि आज जो वरुण बोल रहे हैं ये उन्होंने कहाँ से सीखा ? उनकी माँ सोनिया विरोध के चलते वाजपेयी सरकार में शामिल की गयी थीं और जिन लोगों को आपातकाल के बारे में जानकारी है वो जानते हैं कि उस समय संजय गांधी के नेतृत्व में (और मेनका इससे दूर रही हों ये कहना मुश्किल है ) किस तरह से कुछ अभियान चलाये गए थे.
वरुण आज जो हैं वो अपनी माँ से विरासत में पाया (आपका आंवला का उदहारण इसकी पुष्टि करता है ) और भाजपा में उसका पोषण हुआ है.
आज अगर मोदी पूरे संघ परिवार के चहेते हैं तो और महत्वाकांक्षा रखने वाले लोग उसी दिशा में आगे क्यों न बढ़ें जिसमें मोदी को सफलता मिली है.
मुख्तार अब्बासों और शाह्नावाजों का इस मुद्दे पर बोलने का कुछ मतलब नहीं है वो पहले से ही शो पीस हैं अभी भी रहेंगे जो बोलना था वो तरुण विजय ने बोला , बाल ठाकरे ने बोला और आगे भी लोग बताएँगे
सच यही है कि जो वरुण ने बोला है वो भाजपा का सच है
RAJNISH PARIHAR ने कहा…
आपने ठीक लिखा है...पर हमें समझदारी से इंतज़ार करना चाहिए..हो सकता है वाकई ये मिडिया की कारस्तानी हो....
sandhyagupta ने कहा…
Sahmat hoon aapki baat se.
Dr. Amar Jyoti ने कहा…
फ़ासिज़म ऐसे ही लुम्पेन तत्वों के बल जनवाद को ध्वस्त करता है। अगर जनवादी शक्तियां अब भी निष्क्रिय रहती हैं तो जर्मनी का इतिहास भारत में भी दोहराया जा सकता है।

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