अमेरिकी दादागीरी और हम बेचारे भारतीय
अमेरिका के नेवॉर्क एयरपोर्ट (Newark Airport) पर लोकप्रिय भारतीय फिल्म अभिनेता शाहरूख खान के साथ जो कुछ हुआ वह हम भारतीयों के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने के लिए काफी है। वह नेवॉर्क जाने वाली ही अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट थी जिसके मामूली अफसरों ने पूर्व प्रेजीडेंट एपीजे अब्दुल कलाम की जमा तलाशी ली थी और उलुलजुलूल सवाल पूछे थे। लेकिन शाहरुख के साथ यह घटना अमेरिका में हुई। कलाम की घटना का पता तभी चला जब कई महीने बाद कलाम ने खुद बताया। उस घटना के बाद एयरलाइंस ने माफी मांगी और भारत सरकार ने भी कड़ा विरोध जताया लेकिन अभी तक शाहरूख के मामले में ऐसा नहीं हुआ।
शाहरूख इस देश के युवाओं के आइकन (Icon) हैं और यह बात अमेरिकी सरकार को भी मालूम है। वहां के राजदूत ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही भी है लेकिन उसकी चालाकी देखिए कि उसने इस घटना पर खेद तक नहीं जताया।
अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बताने वाले अमेरिका में नस्लभेद (Racism) के सैकड़ों मामले हो चुके हैं। चाहे वहां के गोरी चमड़ी वालों का अब्राहम लिंकन (Abram Lincoln )के साथ किया गया बर्ताव या फिर मार्टिन लूथर किंग (Martin Luther King)और पॉप स्टार माइकल जैक्सन (POP STAR MJ) के साथ किया गया नस्लीय भेदभाव हो। एमजे के साथ तो भेदभाव इसलिए किया गया कि उन्होंने नस्लीय भेदभाव के कारण इस्लाम धर्म (Islam) स्वीकार कर लिया था। खास बात यह है कि माइकल जैक्सन ने 9/11 की घटना से पहले ही इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और बाकायदा कुरान पढ़ने लगे थे। मार्टिन लूथर किंग ने आज से सौ साल पहले नस्लीय भेदभाव के खिलाफ – हम होंगे कामयाब एक दिन – जैसा लोकप्रिय गीत लिखा था।
अमेरिकी अधिकारियों को दरअसल मुस्लिम नामों से चिढ़ने का फोबिया (Fobia)हो गया है। अमेरिका में जिन लोगों ने आतंकवादी घटनाओं (Terrorist Attack) को जन्म दिया उसके लिए वहीं की संस्कृति (Culture) में पले-बढ़े मुस्लिम युवक जिम्मेदार थे। उन्हें कहीं से भेजा नहीं गया। वे लोग वहां बाकायदा या तो पढ़ाई कर रहे थे या फिर नौकरी कर रहे थे लेकिन वे सबके सब ओसामा बिन लादेन की बातों से प्रेरित थे और उसके आतंकवादी नेटवर्क में शामिल हो गए। लेकिन इस आधार पर पूरी दुनिया के मुसलमानों को आतंकवादी मान लेना कहां का न्याय है।
कलाम और शाहरुख के साथ किया गया अमेरिकी भेदभाव दरअसल एक छिपा हुआ संदेश है कि देखो जब हम इनको कुछ नहीं समझते तो बाकी मुसलमान तो हमारे लिए चींटी और कीड़े-मकोड़ों की तरह हैं। इराक में इस बिग डैडी अमेरिका (Big Dady America) ने यही किया। उसने उस देश पर यह कहकर हमला किया कि उसके पास केमिकल वेपन (Chemical Weapon) हैं जिससे बड़े पैमाने पर जनसंहार (Genoside) का खतरा है। अन्य देश देखते रहे कि किस तरह अमेरिका इराक पर बम बरसाता रहा। इसके बाद अमेरिकन फौजों ने इराक के चप्पे-चप्पे में केमिकल वेपन तलाशना शुरू किया। अंत में ऐसा काम करने वाली अमेरिका की पिट्ठू इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) को कहना पड़ा कि इराक में हमें केमिकल वेपन कहीं भी नहीं मिले। इसके बाद अमेरिका ने सरेआम सद्दाम हुसैन को फांसी लगवाई। किसी भी देश ने इस पर चूं तक नहीं की। अब अमेरिका और उसका पिट्ठू देश इस्राइल लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं कि उसके पास परमाणु हथियार है और ईरान जैसे देश का विनाश दुनिया में शांति के लिए जरूरी है। अब भी तमाम अमेरिका के गुलाम देश उसकी ओर हसरत भरी नजरों से देख रहे हैं कि जहांपनाह कब हमला करेंगे और हम लोग टीवी पर यह रोमांचपूर्ण मुकाबला Live देखेंगे। ईरान की गलती क्या है- ईरान अपने लिए अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बना रहा है। आज तक इस बात की मिसाल नहीं मिलती कि ईरान ने कभी किसी देश पर हमला किया हो। बल्कि ईराक और सद्दाम हुसैन जब अमेरिका के दबाव में थे तो अमेरिका के कहने पर ही इराक ने ईरान और कुवैत (August 1990) पर हमला किया था। जिसमें मुंह की खाने के बाद इराक को पीछे हटना पड़ा था। (Saddam Hussein attacked Iran on 22 September 1980. This war ended in August 1988)
बराक हुसैन ओबामा ने जब अमेरिकी सत्ता की बागडोर संभाली थी तो अपने संबोधन में खासतौर से मसुलमानों के मनोभावों का जिक्र किया था कि वे अमेरिका से नफरत करते हैं। मैं चाहता हूं कि ये दूरियां अब मिटनी चाहिए। अमेरिका मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। इसके कुछ महीने बाद ओबामा ने खास तौर से मुसलमानों को अस्ससलामअलैकुम कहा और सहयोग मांगा। उन्होंने साफ तौर पर सहयोग मांगा। लेकिन ओबामा शायद यह भूल गए कि जिस शाहरूख के साथ मुसलमान होने के नाते यह गिरी हुई हरकत की गई वह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में बसे समस्त एशियाई लोगों का चहेता है। उसके फैन पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक में है। अब इस घटना के बाद आम मुसलमानों का दिल अमेरिका के प्रति नफरत से और नहीं भरेगा तो क्या होगा। मुसलमानों के दिलों में अमेरिका के खिलाफ नफरत के बीज और मजबूत होंगे।
याद कीजिए एनडीए शासनकाल के दौरान अमेरिका जाने पर तत्कालीन गृह मंत्री एल. के. आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीज तक की तलाशी हुई थी। उस समय एनडीए सरकार ने इस घटना को दबाना चाहा था और कम करके आंका था। उसके बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ती गईं।
करण जौहर की प्रतिक्रिया के मायने
शाहरुख के मामले में करण जौहर की प्रतिक्रिया सबसे अलग हटकर है। उन्होंने कहा कि यह ऐसे ही है कि जैसे लोकप्रिय हॉलिवुड अभिनेता ब्रैड पिट (Brad Pitt) भारत आएं और यहां उनकी जमा तलाशी हो जाए।
लेकिन आपको याद होगा कि ब्रैड पिट और एंजलीना जौली (Angelina Jolie) भारत शूटिंग के लिए तो हम भारतीय किस तरह उनके आगे नतमस्तक हो गए। यहां के मीडिया के लिए वह पहली खबर बन गए। दोनों अमेरिका जाते वक्त भारतीय लोगों का शुक्रिया कहने से नहीं भूले कि उन्होंने इतना सम्मान दिया जिसके वह हकदार नहीं थे।
मैं आप लोगों से या भारत सरकार से यह मांग नहीं कर रहा हूं कि आप भी अमेरिकी एक्टरों या वहां के नेताओं की जमा तलाशी पर उतर आएं बल्कि यह कहना चाहता हूं कि जरा अमेरिकी दादागीरी पर सोचिए। तमाम देश या उन मुल्कों के लोग कब तक अमेरिकी दादागीरी को बर्दाश्त करते रहेंगे। अभी जिस मंदी के दौर से हम लोग गुजर रहे हैं वह भी अमेरिकी देन है। वह दिन दूर नहीं जब आप खाना खाएंगे तो उसका फैसला अमेरिका करेगा। माफ कीजिएगा अब किसी ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को भारतीयों को गुलाम बनाने के लिए भारत आने की जरूरत नहीं है। वह न्यू यॉर्क में बैठकर यह काम कर सकती है।
शाहरूख इस देश के युवाओं के आइकन (Icon) हैं और यह बात अमेरिकी सरकार को भी मालूम है। वहां के राजदूत ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही भी है लेकिन उसकी चालाकी देखिए कि उसने इस घटना पर खेद तक नहीं जताया।
अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बताने वाले अमेरिका में नस्लभेद (Racism) के सैकड़ों मामले हो चुके हैं। चाहे वहां के गोरी चमड़ी वालों का अब्राहम लिंकन (Abram Lincoln )के साथ किया गया बर्ताव या फिर मार्टिन लूथर किंग (Martin Luther King)और पॉप स्टार माइकल जैक्सन (POP STAR MJ) के साथ किया गया नस्लीय भेदभाव हो। एमजे के साथ तो भेदभाव इसलिए किया गया कि उन्होंने नस्लीय भेदभाव के कारण इस्लाम धर्म (Islam) स्वीकार कर लिया था। खास बात यह है कि माइकल जैक्सन ने 9/11 की घटना से पहले ही इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और बाकायदा कुरान पढ़ने लगे थे। मार्टिन लूथर किंग ने आज से सौ साल पहले नस्लीय भेदभाव के खिलाफ – हम होंगे कामयाब एक दिन – जैसा लोकप्रिय गीत लिखा था।
अमेरिकी अधिकारियों को दरअसल मुस्लिम नामों से चिढ़ने का फोबिया (Fobia)हो गया है। अमेरिका में जिन लोगों ने आतंकवादी घटनाओं (Terrorist Attack) को जन्म दिया उसके लिए वहीं की संस्कृति (Culture) में पले-बढ़े मुस्लिम युवक जिम्मेदार थे। उन्हें कहीं से भेजा नहीं गया। वे लोग वहां बाकायदा या तो पढ़ाई कर रहे थे या फिर नौकरी कर रहे थे लेकिन वे सबके सब ओसामा बिन लादेन की बातों से प्रेरित थे और उसके आतंकवादी नेटवर्क में शामिल हो गए। लेकिन इस आधार पर पूरी दुनिया के मुसलमानों को आतंकवादी मान लेना कहां का न्याय है।
कलाम और शाहरुख के साथ किया गया अमेरिकी भेदभाव दरअसल एक छिपा हुआ संदेश है कि देखो जब हम इनको कुछ नहीं समझते तो बाकी मुसलमान तो हमारे लिए चींटी और कीड़े-मकोड़ों की तरह हैं। इराक में इस बिग डैडी अमेरिका (Big Dady America) ने यही किया। उसने उस देश पर यह कहकर हमला किया कि उसके पास केमिकल वेपन (Chemical Weapon) हैं जिससे बड़े पैमाने पर जनसंहार (Genoside) का खतरा है। अन्य देश देखते रहे कि किस तरह अमेरिका इराक पर बम बरसाता रहा। इसके बाद अमेरिकन फौजों ने इराक के चप्पे-चप्पे में केमिकल वेपन तलाशना शुरू किया। अंत में ऐसा काम करने वाली अमेरिका की पिट्ठू इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) को कहना पड़ा कि इराक में हमें केमिकल वेपन कहीं भी नहीं मिले। इसके बाद अमेरिका ने सरेआम सद्दाम हुसैन को फांसी लगवाई। किसी भी देश ने इस पर चूं तक नहीं की। अब अमेरिका और उसका पिट्ठू देश इस्राइल लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं कि उसके पास परमाणु हथियार है और ईरान जैसे देश का विनाश दुनिया में शांति के लिए जरूरी है। अब भी तमाम अमेरिका के गुलाम देश उसकी ओर हसरत भरी नजरों से देख रहे हैं कि जहांपनाह कब हमला करेंगे और हम लोग टीवी पर यह रोमांचपूर्ण मुकाबला Live देखेंगे। ईरान की गलती क्या है- ईरान अपने लिए अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बना रहा है। आज तक इस बात की मिसाल नहीं मिलती कि ईरान ने कभी किसी देश पर हमला किया हो। बल्कि ईराक और सद्दाम हुसैन जब अमेरिका के दबाव में थे तो अमेरिका के कहने पर ही इराक ने ईरान और कुवैत (August 1990) पर हमला किया था। जिसमें मुंह की खाने के बाद इराक को पीछे हटना पड़ा था। (Saddam Hussein attacked Iran on 22 September 1980. This war ended in August 1988)
बराक हुसैन ओबामा ने जब अमेरिकी सत्ता की बागडोर संभाली थी तो अपने संबोधन में खासतौर से मसुलमानों के मनोभावों का जिक्र किया था कि वे अमेरिका से नफरत करते हैं। मैं चाहता हूं कि ये दूरियां अब मिटनी चाहिए। अमेरिका मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। इसके कुछ महीने बाद ओबामा ने खास तौर से मुसलमानों को अस्ससलामअलैकुम कहा और सहयोग मांगा। उन्होंने साफ तौर पर सहयोग मांगा। लेकिन ओबामा शायद यह भूल गए कि जिस शाहरूख के साथ मुसलमान होने के नाते यह गिरी हुई हरकत की गई वह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में बसे समस्त एशियाई लोगों का चहेता है। उसके फैन पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक में है। अब इस घटना के बाद आम मुसलमानों का दिल अमेरिका के प्रति नफरत से और नहीं भरेगा तो क्या होगा। मुसलमानों के दिलों में अमेरिका के खिलाफ नफरत के बीज और मजबूत होंगे।
याद कीजिए एनडीए शासनकाल के दौरान अमेरिका जाने पर तत्कालीन गृह मंत्री एल. के. आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीज तक की तलाशी हुई थी। उस समय एनडीए सरकार ने इस घटना को दबाना चाहा था और कम करके आंका था। उसके बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ती गईं।
करण जौहर की प्रतिक्रिया के मायने
शाहरुख के मामले में करण जौहर की प्रतिक्रिया सबसे अलग हटकर है। उन्होंने कहा कि यह ऐसे ही है कि जैसे लोकप्रिय हॉलिवुड अभिनेता ब्रैड पिट (Brad Pitt) भारत आएं और यहां उनकी जमा तलाशी हो जाए।
लेकिन आपको याद होगा कि ब्रैड पिट और एंजलीना जौली (Angelina Jolie) भारत शूटिंग के लिए तो हम भारतीय किस तरह उनके आगे नतमस्तक हो गए। यहां के मीडिया के लिए वह पहली खबर बन गए। दोनों अमेरिका जाते वक्त भारतीय लोगों का शुक्रिया कहने से नहीं भूले कि उन्होंने इतना सम्मान दिया जिसके वह हकदार नहीं थे।
मैं आप लोगों से या भारत सरकार से यह मांग नहीं कर रहा हूं कि आप भी अमेरिकी एक्टरों या वहां के नेताओं की जमा तलाशी पर उतर आएं बल्कि यह कहना चाहता हूं कि जरा अमेरिकी दादागीरी पर सोचिए। तमाम देश या उन मुल्कों के लोग कब तक अमेरिकी दादागीरी को बर्दाश्त करते रहेंगे। अभी जिस मंदी के दौर से हम लोग गुजर रहे हैं वह भी अमेरिकी देन है। वह दिन दूर नहीं जब आप खाना खाएंगे तो उसका फैसला अमेरिका करेगा। माफ कीजिएगा अब किसी ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को भारतीयों को गुलाम बनाने के लिए भारत आने की जरूरत नहीं है। वह न्यू यॉर्क में बैठकर यह काम कर सकती है।
टिप्पणियाँ
शाहरुख खान इस देश के युवाओ का आइकोन हो सकते है मगर अमेरिका के नहीं ! उनके लिए अपने देश की सुरक्षा सर्वप्रथम है ! वे हमारे देश के नेतावो की तरह नहीं है जो मुंबई हमले के बाद बोले की ऐसी चोटी मोटी घटनाएं तो होती रहती है !
हाँ सहरुख खान स्टार जरूर बन गए मगर उन्होंने दिलीप कुमार से इतना भी नहीं सीखा !
दूसरा ये कि हो सकता है कि शाहरुख खान ने अपनी अगली फिल्म माई नेम इज खान के लिए पब्लिसिटी स्टंट किया हो। हो सकता है कि उनका बैग जो कि लेट पहुंच रहा हो वो उसका इंतज़ार कर रहे हों। या फिर उन्होंने अपने प्रशंसकों को लेट आने के लिए बहाना किया हो।
लेकिन अगर महज 'खान' होने वजह से अलग से दुर्व्यवहार किया जाना कदापि उचित नहीं। ऐसा क्यों हुआ ये हम सभी जानते हैं। लेकिन हमें चाहिए कि ऐसा न हो, इसके लिए हम कुछ करें। इस पर हमें चर्चा कर एक हल निकालना चाहिए।
और अमरीका अपनी आतंरिक सुरक्षा को सब से ऊपर रखता है उसी का उदाहरण , भारत भी करे ---
दुबई , शारजाह जानेवाले हरा यात्री की बैग से , इस्लाम के अलावा किसी भी धर्म पर आधारित चीज वस्तुएं , निकाल कर
फेंक दीं जातीं हैं , वह सुरक्षा नहीं धार्मिक वर्चस्व दृढ रखने का रवैया भी भारत अपना ले तब और भी बढिया होगा क्यूं ?
- लावण्या
दूसरी बात (यानी संकीर्ण वाली) - शाहरुख देश के आइकन नहीं हैं, सिर्फ़ एक सेलेब्रिटी हैं और वह भी मीडिया के बनाये हुए…। इसी मीडिया ने नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न मिलने पर जश्न मनाया था। तीन-तीन बार जनता द्वारा चुना हुआ मुख्यमंत्री अधिक बड़ा है या एक भाण्ड-नचैया?
मीडिया पक्षपाती है, यह साबित करने में तो हम लगे ही हैं, यह भी एक उदाहरण है, सैकड़ों उदाहरणों में से, कि एक नचैये को मीडिया इतना भाव दे रहा है, जबकि कलाम साहब की बात संसद में उठी थी तब भाजपा को उपदेश दिया गया था कि मामले को अधिक तूल देने की आवश्यकता नहीं है… ये सब क्या है?
मीडिया के बारे में आप जानते ही हैं। मोदी को वीजा न मिलने पर उसकी भी निंदा की गई थी और भारत ने उसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था। यह गलत भी था कि किसी राज्य के चुने हुए मुख्यमंत्री को वीजा नहीं दिया गया।
लेकिन बात शाहरुख खान की हो रही है। आपने जिस शब्दावली का प्रयोग किया है वह आपकी मानसिकता का परिचायक है। कभी विदेशों में इस सौ प्रतिशत भारतीय अभिनेता के प्रशंसकों की भीड़ तो देखिए। आप अंध देशभक्ति से ऊपर उठिए। अब धर्म, सीमाएं और राष्ट्रवाद जैसे शब्दों से मुक्ति पाने का समय है। दुनिया सिकुड़ चुकी है। आप वहीं के वहीं हैं। कल को कोई अमिताभ बच्चन या सचिन तेंदुलकर के साथ ऐसा व्यवहार करेगा तो क्या तभी आपका खून खौलेगा। मेरे मित्र सोचो जरा सोचो।