इस षड्यंत्र से मुसलमान हो जाएं होशियार

महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पास होने के बाद पूरे देश में तालियां पीटी जा रही हैं। वाजिब भी है, भारत जैसे देश में महिलाओं को यह हक गए-गुजरे देश बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी बाद में मिला है। लेकिन इस सारे शोर में यह बात दबकर रह गई है कि इस बिल के जरिए अल्पसंख्यकों और अन्य जातियों के गरीब तबके को हाशिए पर लाने का षड्यंत्र पर बहुत शानदार तरीके से रचा गया है। कांग्रेस-बीजेपी की मिलीभगत पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है, रीढ़ विहीन वामपंथियों की औकात मुसलमानों को आरक्षण और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के जरिए पता चल चुकी है।

मुसलमानों के लिए राजनीति में भागीदारी अब और भी मुश्किल हो जाएगी। अभी तमाम राजनीतिक दलों में उनकी न तो कोई आवाज है और न ही हैसियत। अगर यह मान भी लिया जाए कि तमाम मुस्लिम महिलाएं अचानक राजनीति में सक्रिय हो जाएंगी और उन्हें उनके घर वाले पूरी छूट दे देंगे तो यह एक खूबसूरत ख्वाब के अलावा और कुछ नहीं होगा। मुसलमानों को तमाम नए समीकरणों पर विचार करना होगा। यह काम कैसे होगा, इसकी शुरुआत कैसे होगी, यह सब बहुत पेचीदा सवाल हैं, जिनका जवाब समय के गर्भ में है। हो सकता है कि कल को कोई अचानक इस नाम पर सामने आए और मुसलमानों को इकट्ठा करने लगे तो भी सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि अब ऐसे लोगों पर यकीन करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। मायावती और मुलायम या लालू के पास ऐसे मौलाना हैं जिन्हें वे मंच पर खड़ा करके इस तरह का सीन खड़ा कर सकते हैं। इसलिए बहुत सावधानी से संभलकर चलने का वक्त है। बहुत मुमकिन है कि मुलायम और लालू मुसलमानों को साथ लेकर माई (MY – Muslims and Yadavs) जैसा गठबंधन फिर से खड़ा करने की कोशिश करें या मायावती डीएम (DM – Dalits and Muslims) बनाने की फिराक में जुट जाएं। ऐसे दोनों गठबंधनों को मुसलमानों ने बार-बार परखा है और धोखा खाया है। हालांकि मैं यह भी नहीं कह रहा कि ऐसे गठबंधनों के वजूद में आने के बाद उससे दूर रहा जाए। जो भी फैसला हो वह सोच समझकर हो।

कई मुस्लिम संगठनों (आल इंडिया मिल्ली कौंसिल, मूवमेंट फार इंपावरमेंट आफ इंडियन मुस्लिम, सोशल जस्टिस मोर्चा और डॉ. भीमराव आंबेडकर सेवादल) ने इस बिल में अपना हिस्सा मांगने या इसके विरोध में पहल की है। लेकिन इनकी एकजुटता से कोई सही तस्वीर उभरेगी, इस बात में शक है। इसलिए जल्दबाजी से बचते हुए, बड़े मंथन के बाद ही कोई फैसला लेना वक्त की नजाकत है। इस मुद्दे पर कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए माई या डीएम गठबंधन से रणनीतिक तौर पर हाथ मिलाना फायदेमंद हो सकता है लेकिन दीर्घकालीन राजनीति के लिए इनसे हाथ नहीं मिलाया जा सकता है। अगर कांग्रेस विधेयक में कुछ संशोधन के साथ यह कहे कि वह दो टर्म में से एक टर्म मुस्लिम महिला के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है तो भी गनीमत है। तब यह बंदोबस्त माई या डीएम के मुकाबले ज्यादा ठीक रहेगा। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो फिर विकल्प खुले रखे जा सकते हैं।


बहरहाल, तमाम पार्टियों में मौजूद मुस्लिम नेताओं पर जिम्मेदारी है कि वह पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर इस मामले में एक हों और कोई पहल करें। उन्हें याद रखना होगा वह फोटो जो राज्यसभा में विधेयक पास होने के बाद बीजेपी नेता सुषमा स्वराज और सीपीएम नेता वृंदा करात ने मुस्कुराते हुए और एक दूसरे से गलबहियां करते हुए खिंचवाया था। कुछ ऐसा ही करने का वक्त आ गया है।


अभी जो हालात हैं, उसमें मुसलमानों को रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं है। मेनस्ट्रीम मीडिया जिस पर यह जिम्मेदारी है कि वह सही तस्वीर सामने लाए, वह कांग्रेस-बीजेपी की बिछाई बिसात पर ही अपनी ढपली बजा रहा है। पहले तो यह साफ हो जाए कि मेरा मकसद इस बिल का विरोध या इसके खिलाफ खड़े होना नहीं है।

देश की राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों ने मुसलमानों के नाम पर जमकर राजनीति की लेकिन जब उन्हें कुछ देने का मौका आता है तो यह सारे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे नजर आते हैं। कांग्रेस ने किस कदर मुसलमानों के वोट बैंक की राजनीति की और उसे धोखा दिया, यहां उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। संघ परिवार का हिस्सा – बीजेपी - का स्टैंड मुसलमानों को लेकर जगजाहिर है। मुलायम, लालू ने मुस्लिम वोटरों का फायदा उठाया और जब-जब देने की बारी आई तो यादववाद से और फिल्मी दुनिया की चमक-दमक से ऊपर नहीं उठ पाए। शरद यादव ने भी बीजेपी से हाथ मिलाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी।

मायावती दलित राजनीति करने के नाम पर क्या कर रही हैं, वह किसी अंधे आदमी को भी दिख सकता है। उनका इस विधेयक को लेकर अपना मतलतब है। ममता और पासवान ने इस डर में इसका विरोध किया है कि कहीं उनका जमीन से जुड़ा कार्यकर्ता नाराज न हो जाए। यानी इस बिल के विरोध में उठे नेता अपने-अपने मतलब के लिए ही इसका विरोध कर रहे हैं। मुसलमान यह भूल जाएं कि यह नेता उनके लिए कोई कुर्बानी देने के नाम पर एकजुट हुए हैं। दरअसल, यह लोग मुसलमानों के सहारे से इस मामले में अपनी ही बिरादरी की राजनीति को चमकाना चाहते हैं। अगर यह लोग सत्ता में होते तो शायद इस तरह का विरोध न कर पाते। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का मामला सामने है, उनकी पार्टी के मुखिया शरद यादव जिस स्वर में इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं, वह स्वर नीतिश के पास नहीं है।

चाहे वह लोकसभा हो या राज्यसभा या फिर तमाम राज्यों की विधानसभाएं, सभी में मुसलमानों की राजनीतिक हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। यह काम बहुत तरीके से हो रहा है। इस बिल ने भी रही-सही कसर पूरी कर दी है। मुस्लिम महिलाएं अब भी घर की चारदीवारी से बाहर नहीं आ सकी हैं। यह बिल निश्चित रूप से उस तबके की महिलाओं को ही मजबूत करेगा, जिनके पति पहले से ही देश की संसद को चूना लगा रहे हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस पार्टी में हैं। अब वह जमात चूंकि बूढ़ी हो चुकी है तो चाहती है कि संसद का सुख उनकी बहुएं और बेटियां भोगें। विधेयक के पक्ष या विपक्ष में घड़ियाली आंसू बहाने वाले यह तमाम सफेदपोश खद्दरधारी अपनी बीवियों, बहुओं और बेटियों को संसद सुख दिलवाने में सबसे आगे हैं। कांग्रेस-बीजेपी उस सुख को और पुख्ता करना चाहती है तो उसने जुगलबंदी कर ली है।

मैं यहां कोई लंबे चौड़े आंकड़े पेश कर अपनी बात को दुरुह नहीं बनाना चाहता। बीजेपी को छोड़कर इन तमाम पार्टियों में जब भी किसी मुसलमान को टिकट देने की बारी आती है तो उसे तमाम कारणों से काट दिया जाता है। हाल ही में फिरोजबाद (यूपी) लोकसभा सीट पर सभी ने यही देखा। मुसलमानों की दुहाई देने वाले मुलायम ने किसी मुसलमान को टिकट देने की बजाय अपनी बहू को वहां से उतार दिया। बदायूं में तो यह तमाशा कई बार हो चुका है। बरेली की कई विधानसभा सीटों पर यही खेल मुलायम और मायावती हर चुनाव में दोहराते हैं।

इस बिल के पास होने पर दरअसल इन्हें खतरा यह नहीं है कि मुस्लिम महिलाएं विधानसभा या लोकसभा में नहीं पहुंच पाएंगी, खतरा यह है कि महिला वोटरों के गेम में अब सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी ही रह जाएंगी। यानी सास अगर कांग्रेस के रास्ते संसद में पहुंचेगी तो कोई ताज्जुब नहीं कि उसकी बहू बीजेपी के रास्ते संसद में पहुंचेगी। इस देश में ऐसे तमाम रसूख वाले परिवार मौजूद हैं जिन्होंने एक योजना के तहत आधे परिवार को कांग्रेस में और आधे को बीजेपी में अपने स्वार्थों के कारण फिट कर रखा है। जाहिर है कि इनमें से किसी को भी सत्ता मिलने पर परिवार का बिजनेस चलता रहेगा।

टिप्पणियाँ

drdhabhai ने कहा…
मुसलमान महिलाएं बुर्के मैं चुनाव लङ सकती हैं भाई काहे ये तोङ फोङ की बातें करतें हैं.....या के उनको मध्ययुग मैं ही रहना है
एमाला ने कहा…
सहमत.बहुत ही माकूल सवाल लेकर आये हैं आप!
आप की नीयत में अंदेशा है. आप लोग आटोनामी लेने की बात क्यों नहीं करते.
हा-हा..अगर यह सचमुच षड्यंत्र है भाई तो इस षड्यंत्र के रचियिता भी वे सारे ही धुरंधर है, जो मुसलमानों के हितैषी और पिट्ठू है, पिछले साठ सालों से !
कब तक जनानियों को हरम में रखोगे? 33% का लाभ उठाओ. चुनाव लड़वाओ.
भारत में मुसलमान ही नहीं ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, सीख भी अल्पसंख्यक है. किसी को तकलिफ नहीं आपको ही तकलीफ क्यों है?
बेनामी ने कहा…
aor bhi gam hai zamane me bhai .vo aurte bhi parivaar ka hissa hai .aage aayegi to kaum ka gaurav hi badhega.
شہروز ने कहा…
ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, सीख भी अल्पसंख्यक है bilkul sahi lekinaapko jaankaari honi chaahiye ki agar koi hindu st/sc dharmparivartan karta hai to use bhi aarakshan kaa laabh milta hai chaahe vo christian ho sikh ho parsi ho ya baudh ho jaaye.
lekin agar bhool se bhi musalman ho gaya to uski haisiyat chen li jaati hai.

kirmani sahab!! main ungliyon par gin sakta hun aise logon ko ....jinhain bas apna PARIVAR aur uska SANGH hi sachcha lagta hai.vo bhala unse bahar kaise ja sakte hain.
شہروز ने कहा…
aajkal hindu musalman donon group k kuch blogger sirf ek hi kaam kar rahe hain..aag bhadkao aur maza lo.apne apne school ki teaching hai bhai!!!
हिन्दीवाणी ने कहा…
कुछ लोग टिप्पणी करते वक्त होश हवास खो बैठते हैं। अगर मुस्लिम महिलाएं महिला आरक्षण में से या अन्य आरक्षण में से कुछ मांग रही है तो इसमें देश तोड़ने की बात या देश को बांटने की बात कहां से आ गई। जिन लोगों को अब तक आरक्षण का लाभ मिला है क्या उन्होंने देश तोड़ दिया। इस लेख में महिला आरक्षण का समर्थन करते हुए ही इसके अंदर मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण मांगा गया है।
भारतीय मुस्लिम महिलाएं किसी पाकिस्तान या बांग्लादेश से आरक्षण नहीं मांग रही है।
आप लोगों की अक्ल पर तरस आ रहा है।
anwar suhail ने कहा…
rajendra yadav kahte hain, aurton ki koi zaat ya dharm nahin hoti, to kya suchmuch aisa hai...agar aisa suchmuch hai to phir mayawati dalit kaise ho gayeen..
yeh sab mughalta hai, aurten bhi sawarn aur dalit hoti hain, muslim aur minority hoti hain, reservation me unhen bhi haque milna chahiye..
Narayana Rao K.V.S.S. ने कहा…
Reservations to scheduled castes were given because they were kept out of the social interaction during Hindu rule, Muslim rule as well as British rules. Even today, in many places they are outside the social interaction. Unfortunately, this reservation issue is engulfing the entire country. The country has to start keeping people out of reservation. Even in scheduled castes once a family enjoys reservation in one generation they should not get the facility in the next generation. That way reservation percentage can be maintained at the same level, but the benefits are extended to different families. Even in politics no SC politician should be allowed to contest for a second time on a reserved seat. More families need to be provided the opportunity to sit in various political bodies.

Reservations for women is altogether a different matter and both issues should not be clubbed together. How to bring muslim women into politics in India is a different matter. But when Pakistan and Bangladesh can have female prime ministers what is the problem for muslim women in India?

Kirmaniji needs to focus on educating muslim community to empower the women by providing more educational opportunities to them.
Philip Verghese 'Ariel' ने कहा…
Yes, I fully agree with Mr. KVSSN Rao, The time is up now to stop such reservations even to SC & ST. In most cases its really going out of hand,and many undeserved ones are enjoying the facilities even after they reach a high standard or level in society, This type of Reservations should stop at ones. In other way, its a mere game our politicians play to fill their vote banks, Alas!! the rule making and rule breaking both are in the hands of these so called politicians. Is there not any way out to save our country from the clutches of these dirty politics and politicians.
OH! GOD only you can Save our Country.
Philip Ariel, Secunderabad, A.P
http://kno.li/5i
हिन्दीवाणी ने कहा…
Dear Rao and Ariel, Muslims of this country never demanded any reservation but it were politicians who raise such issues. But when you decided to empower woman of India, then why not giving due share to muslim women. It will be best if you really want to abolish all type of reservations.
Ashok Kumar pandey ने कहा…
मेरा मानना है कि गोपाल सिंह कमेटी, सच्चर कमेटी और रंगनाथ कमेटी की अनुशंसाओं के अनुसार मुस्लिम समाज का पिछड़ापन जिस तरह सामने आया है उसके बाद निश्चित रूप से इस समाज को भी अलग से आरक्षण मिलना ही चाहिये। ख़ासतौर पर इसके पिछड़े तबकों को…महिलाओं के आरक्षण के संबध में अगर इस तरह की मांग उठती है तो उस पर गंभीरता से विचार करना ही चाहिये।

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