पाकिस्तान को चांद चाहिए

अब मुस्लिम त्योहारों को लेकर भी प्राय: मतभेद उजागर होने लगे हैं। इस बार भारत में दो दिन ईद मनाई गई। पाकिस्तान में तो पिछले कई सालों से ऐसा हो रहा है। वहां कई त्योहार राजनेताओं और धर्मगुरुओं के लिए मूंछ की लड़ाई बन गए हैं।

इस बार वहां अचानक ईद के चांद पर बहस शुरू हो गई। इसमें सरकारी तौर पर भी बयानबाजी और बहस अब तक जारी है। इस विवाद का सिलसिला रमजान का चांद देखने के समय 11 अगस्त से शुरू हो गया था। सऊदी अरब में 11 अगस्त को पहला रोजा था। पाकिस्तान के खैबर पख्तून और पेशावर इलाके में लोगों ने सऊदी अरब का अनुसरण करते हुए उस दिन पहला रोजा रख लिया। इस पहल में उस सूबे की सरकार भी शामिल रही।

इससे उलट चांद देखे जाने पर मुहर लगाने वाली पाकिस्तान की सबसे सुप्रीम बॉडी रुयते हिलाल कमिटी ने 11 अगस्त को चांद देखे जाने की घोषणा की और 12 अगस्त को पहला रोजा घोषित किया। पाकिस्तान के अधिकांश इलाकों में इसी पर अमल हुआ। भारत में भी पहला रोजा 12 अगस्त को ही रखा गया था। लेकिन पाकिस्तान में रुयते हिलाल कमिटी की घोषणा के बाद विवाद शुरू हो गया।

इसका क्लाइमैक्स 11 सितंबर को दिखाई पड़ा। एक बार फिर खैबर पख्तून और पेशावर इलाके के मौलानाओं ने 11 सितंबर को ही ईद मनाए जाने की घोषणा कर दी क्योंकि सऊदी अरब में भी इसी दिन ईद मनाने का फैसला हुआ था। लेकिन रुयते हिलाल कमिटी के चेयरमैन मुफ्ती मुनीब उर रहमान ने घोषणा की कि 12 सितंबर को ईद होगी।

पाकिस्तान में इस रस्साकशी के पीछे एक राजनीतिक अंधविश्वास है। वहां शुक्रवार (जुमा) के दिन पड़ने वाली ईद पाक शासकों के लिए अपशकुन साबित होती रही है। जिसके भी कार्यकाल में ईद जुमे को पड़ी, उस शासक को अगली ईद से पहले सत्ता से हाथ धोना पड़ा। हालांकि इस्लामिक विद्वानों की राय इससे भिन्न है। उनका मानना है कि जुमे के दिन पड़ने वाली ईद बहुत खास होती है।

लेकिन पाकिस्तान में तानाशाह अयूब खान के समय से ही ईद का चांद देखने को लेकर राजनीति होती रही है। वहां के लगभग हर शासक ने कोशिश की कि किसी साल ईद जुमे को न पड़े। इसलिए शासक वर्ग किसी भी तरह रुयते हिलाल कमिटी को प्रभावित करके इसकी घोषणा आगे-पीछे करा देता है। यही खेल इस बार भी दोहराया गया।

पिछले साल अवामी नैशनल पार्टी (एएनपी) के नेताओं और उनकी सरकार ने खैबर पख्तून में ईद मनाने की घोषणा रुयते हिलाल कमिटी की घोषणा से एक दिन पहले कर दी और कमिटी से कहा कि वह इसे पूरे पाकिस्तान में लागू कर दे। कमिटी ने वहां के सरकार के इस अनुरोध को मानने से मना कर दिया तो एएनपी नेताओं ने मांग की कि कमिटी के चेयरमैन मुनीब फौरन इस्तीफा दें। लेकिन चेयरमैन ने इसे एएनपी नेताओं द्वारा कमिटी के काम में और अल्लाह की इच्छा में दखलंदाजी करने वाला कदम बताया और इस्तीफा देने से मना कर दिया।

कई बार यह मांग भी उठी कि रुयते हिलाल कमिटी की घोषणा पर बैन लगाकर चांद के हिसाब से बने कैलंडर को मान्यता दी जाए लेकिन पाकिस्तानी शासक वर्ग में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह धर्मगुरुओं की इस कमिटी के खिलाफ जा सके।

दरअसल, ईद का कुछ संबंध बाजार से भी है। भारत-पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में अरबों रुपये का कारोबार इस त्योहार से जुड़ा है। आमतौर पर लोग चांद रात से पहले यानी ईद से एक दिन पहले खरीदारी के लिए निकलते हैं। अगर बाजार को ऐसा एक और दिन मिल जाए तो कारोबारियों को कितना लाभ होगा, इसका सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है। पाकिस्तान जैसे देश में जहां मुसलमानों की आबादी तकरीबन शत-प्रतिशत है, रुयते हिलाल कमिटी को अगर बिजनेस समूह नियंत्रित कर रहे हों तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। बेचारे चांद को क्या मालूम कि उसे कौन किस वजह से चाहता है।

साभारः नवभारत टाइम्स 20 सितंबर 2010
Courtesy: Nav Bharat Times September 20, 2010

टिप्पणियाँ

VICHAAR SHOONYA ने कहा…
अरे वाह मैं सोचता था कि आदमी भगवान के साथ ही बेईमानी करता है पर लगता है वो अल्लाह को भी नहीं छोड़ता .
खुदा पाकिस्तान को दिमाग दे जिससे वह अच्छा बुरा सोच सके

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