पैकेज किसी और का, जाकिर नायक सिर्फ सेल्स एजेंट

नोट ः मेरा यह लेख आज (12 जुलाई 2016) नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। हिंदीवाणी के पाठकों के लिए इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है...

कुछ आतंकवादी घटनाओं के बाद सरकारी एजेंसियों और मीडिया की नजर इस्लाम की वहाबी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने वाले कथावाचक टाइप शख्स जाकिर नायक की तरफ गई है। उनके खिलाफ जांच भी शुरू हो चुकी है, जिसका नतीजा आना बाकी है। हालांकि जाकिर नायक ने ढाका की आतंकी घटना के कई दिन बाद मक्का में उसकी निंदा की और कहा कि इस्लाम किसी की जान लेने की इजाजत नहीं देता है।

जाकिर नायक ने अपने बचाव में उसी इस्लाम और धार्मिक पुस्तक कुरान का सहारा लिया जिसकी आयतों की मीमांसा (तफसीर) को वो अभी तक तोड़ मरोड़कर पेश करते रहे और तमाम युवक-युवतियां उसे सुन-सुनकर उसी को असली इस्लाम मान लेने में यकीन करते रहे। हर धर्म के युवक-युवतियों के साथ ऐसा छल उस धर्म के कथावाचक पिछले कई दशक से कर रहे हैं, जिसमें धर्म तो कहीं पीछे छूट गया लेकिन खुद के बनाए सिद्धांत को आगे रखकर किसी खास विचारधारा का प्रचार प्रसार करना उसका मुख्य मकसद हो गया।

कुरान अरबी में है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश की मूल भाषा और जबान अरबी नहीं है। बहुत सारे लोग कुरान पढ़ लेते हैं और उसकी मीमांसा की जानकारी भी अनुवादों के जरिए पा लेते हैं लेकिन गहराई से उसके अर्थ और संदर्भ को पकड़ पाने में असमर्थ रहते हैं। इस्लाम के विभिन्न फिरकों के कुछ उलेमा कुरान की आयत पढ़कर उसे अपने सिद्धांत से जोड़ते हैं और फिर उनकी अपनी विचारधारा का अजेंडा शुरू हो जाता है।

सचमुच कुरान एक ऐसी किताब है जिसकी सही तफसीर अगर आप पढ़ लें और संदर्भ को जान लें तो आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेंगे। लेकिन जब उसे आप किसी सलाफी, किसी बरेलवी, किसी देवबंदी, किसी शिया, किसी इस्माइली, किसी अहमदिया, किसी सूफी आलिम से सुनेंगे तो वो अपने सिद्धांत की चाशनी में उस मीमांसा को पेश करता नजर आएगा।

सऊदी अरब के बाद सलाफी विचारधारा को फैलाने का सबसे बड़ा केंद्र पाकिस्तान है। जाकिर नायक का तो बस छोटा सा रोल है जो उन्हें करने के लिए दिया गया है। पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक के वक्त में सलाफी विचारधारा को सरकारी संरक्षण भी मिल गया। जो जुल्फिकार अली भुट्टो के रहते नहीं मिल सका था। इसके बाद सलामी विचारधारा के मौलवियों ने पाकिस्तान में शिया, अहमदिया, इस्माइली, सूफियों को काफिर करार दे दिया और इनके खिलाफ फतवे जारी कर दिए। इसके बाद इन धार्मिक अल्पसंख्यकों का पाकिस्तान में कत्लेआम शुरू हो गया।

आप जाकिर नायक सरीखों का प्रवचन उनके टीवी पर सुनिए या कोई विडियो देखिए। आप कहीं से उनको आतंकी समर्थक साबित नहीं कर पाएंगे लेकिन वो भाई साहब जो संदेश देते हैं, उनके जो संदर्भ या छिपे हुए निहातार्थ होते हैं, उनके टारगेट आडियंस तक पहुंच जाते हैं।

इस कथावाचक की हिप्पोक्रेसी देखिए। जिस शख्स ने ओसामा बिन लादेन को हीरो बताया हो, वो अब ढाका हमले पर घड़ियाली आंसू बहा रहा है। कई साल पहले जाकिर नायक को संचालित करने वालों ने काफी पैसा खर्च कर मुंबई में एक आयोजन किया। इस आयोजन में जाकिर नायक ने यज़ीद को रजी अल्लाहताला बता डाला। ये यज़ीद वही है जिसकी वजह से करबला का संघर्ष हुआ। जिसमें पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हुसैन इब्ने अली और उनके साथ 71 अन्य निर्दोष लोगों को शहीद कर दिया गया। पैगंबर के परिवार के साथ हुई इस नाइंसाफी पर शिया-सुन्नी आलिम और इतिहासकार एकमत हैं। करबला का संग्राम इस्लाम का टर्निंग पॉइंट है। यजीद की प्रशंसा में जाकिर के उस बयान पर पूरे विश्व में सुन्नी, शिया और सूफियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी।

 इसके बाद ब्रिटेन, कनाडा औऱ मलयेशिया में उनके जाने पर रोक लग गई। शिकायत के बावजूद मुंबई पुलिस जाकिर के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने का मुकदमा आज तक दर्ज नहीं कर सकी। जाकिर को सऊदी अरब के राजघराने ने सबसे बड़ा सम्मान प्रदान कर रखा है और वो जब भी रियाध या मक्का समेत सऊदी अरब के किसी भी शहर में जाते हैं तो शाही मेहमान बनते हैं। यह जुगलबंदी अपने आप में काफी कुछ बताती है।

सवाल यह है कि भारत, पाकिस्तान या बांग्लादेश में रहने वाले मुसलमानों का एक खास तबका आखिर जाकिर नायक टाइप कथावाचकों के प्रभाव में कैसे आ रहा है। इसकी वजह यह है कि मुसलमान मस्जिदों में या घरों में नमाज तो पढ़ लेता है लेकिन जिन मौलाना लोगों पर जिम्मेदारी है कि वे इन मुसलमानों को यूनिवर्सल या ग्लोबल मुसलमान बनने के लिए तैयार करें...प्रगतिशील इस्लाम के बारे में बताएं। इस्लाम के इतिहास की सही जानकारी दें। इसके बजाय वे मुसलमानों के ही दूसरे फिरकों की बुराई करते नजर आते हैं। उनकी कमियां गिनाते हैं। इसके बाद वही युवक जब थ्री पीस और टाई लगाए जाकिर नायक से दुनियावी बातें सुनता है तो फौरन उनसे प्रभावित हो जाता है। जाकिर नायक की महीन बातों में आप आतंकवाद कभी तलाश नहीं कर पाएंगे।  

अपनी बात को मैं प्रो. मुशीर-उल-हक के शब्दों में कहना चाहूंगा। वो कहते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर मुसलमान मोटे तौर पर दो हिस्सों में बंटे हैं। एक छोटा तबका है जिसे तिरस्कार से धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है, जिनका मानना है कि एक आस्था के रूप में मजहब का सेक्यूलरिज्म के साथ सहअस्तित्व संभव है। दूसरे समूह का नेतृत्व ऐसे उलेमा करते हैं जिनका दृढ़ विश्वास है कि मजहब सिर्फ आस्था ही नहीं, शरीयत भी है और शरीयत का सेक्यूलरिज्म के साथ सह-अस्तित्व नामुमकिन है।

पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश में फैल रही किसी भी धर्म की धार्मिक कट्टरता पर नजर दौड़ाइए तो प्रोफेसर साहब की यह बात तीनों ही देशों के मामले में पूरी तरह फिट बैठती है। शरीयत की जगह आप दूसरे धर्मों की कट्टरता, खानपान-पहनावे को लेकर तरह-तरह के आग्रह, पूजा स्थलों का इस्तेमाल आदि को शामिल कर सकते हैं। मेरा मानना है कि इन्हीं आग्रहों ने तीनों ही देशों में तमाम लोगों के विचारों को आक्रामक बना दिया है। 

धार्मिक रूप से आक्रामक बना दिए गए लोग एक डिब्बाबंद आस्था या पैकेज्ड आस्था में विश्वास करने लगते हैं। उस पैकेज को कोई और तैयार करता है। एक धर्म का इस्तेमाल दूसरे धर्म के विरोध के लिए किया जाता है। मानों दूसरा धर्म बना ही विरोध के लिए है। हकीकत ये है कि हर धर्म की उदारता का उसके कथावाचक टाइप लोगों ने अपहरण कर लिया है और इसकी जगह वे पैकेज्ड आस्था की मार्केटिंग कर रहे हैं। मार्केंटिंग के स्टेक होल्डर पर्दे के पीछे हैं।


--यूसुफ किरमानी

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