एक महीने बाद फराज का बांग्लादेश
...मेरा ये लेख आज के नवभारत टाइम्स लखनऊ संस्करण में प्रकाशित हो चुका है। ईपेपर का लिंक लेख के अंत में है।...
बांग्लादेश में एक महीने बाद भी लोग ढाका के रेस्तरां में हुए हमले से उबर नहीं पाए हैं। 1 जुलाई 2016 को यहां आतंकवादियों के हमले में 28 लोग मारे गए थे। इन्हीं में था बांग्लादेशी स्टूडेंट फराज हुसैन, जिसने अपने साथ पढ़ने वाली भारतीय लड़की को बचाने के लिए जान दे दी। फराज का परिवार दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली आतंकी घटना पर अभी भी सिहर उठता है। फराज के बड़े भाई जरेफ हुसैन ने फोन पर ढाका से एनबीटी से कहा कि ...लगता है कि आईएस के आतंकियों ने इस्लाम का अपहरण कर लिया है और वो कोई पुराना बदला चुकाने के लिए लोगों को मार रहे हैं।
बांग्लादेश में एक महीने बाद भी लोग ढाका के रेस्तरां में हुए हमले से उबर नहीं पाए हैं। 1 जुलाई 2016 को यहां आतंकवादियों के हमले में 28 लोग मारे गए थे। इन्हीं में था बांग्लादेशी स्टूडेंट फराज हुसैन, जिसने अपने साथ पढ़ने वाली भारतीय लड़की को बचाने के लिए जान दे दी। फराज का परिवार दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली आतंकी घटना पर अभी भी सिहर उठता है। फराज के बड़े भाई जरेफ हुसैन ने फोन पर ढाका से एनबीटी से कहा कि ...लगता है कि आईएस के आतंकियों ने इस्लाम का अपहरण कर लिया है और वो कोई पुराना बदला चुकाने के लिए लोगों को मार रहे हैं।
जरेफ हुसैन कहते हैं कि जब हमसे हमारी
सबसे प्यारी चीज ही छीन ली गई तो बताइए ऐसे आतंकियों के लिए हम क्यों दिल में
साफ्ट कॉर्नर रखें। इन आतंकियों ने सिर्फ हमारे परिवार को मुश्किल में नहीं डाला
है बल्कि पूरे इस्लाम को ही खतरे में डाल दिया है। आईएस आतंकियों का मकसद लोगों को
मार कर धर्म को मजबूत करना नहीं है बल्कि वो इसकी आड़ में इस्लाम को ही बर्बाद कर
देना चाहते हैं।
उनका कहना है कि बांग्लादेश भी एक सेकुलर
मुल्क है। हमारा कल्चर भारत के पश्चिम बंगाल से मिलता है। हम लोग बांग्ला बोलते
हैं। बांग्लादेश में कितने ही भारतीय बिजनेसमैन आकर बिजनेस करते हैं। न उन्होंने
कोई फर्क समझा न हमने कोई फर्क समझा। कट्टरपन किसी भी मुल्क को हर तरह से बर्बाद
कर देता है। 1 जुलाई की घटना ने बांग्लादेश की छवि को धूमिल कर दिया है।
इस घटना के बाद बांग्लादेश के लोगों में
एक बड़ा बदलाव आया है। यहां का पढ़ा-लिखा और मध्यवर्गीय तबका विदेशियों को हमदर्दी
की नजर से देखता है। अमेरिकन इंटरनैशनल स्कूल ढाका के टीचर रसेल विलियम्स ने फराज
हुसैन, तारिषी जैन और अंबिता कबीर को पढ़ाया है। वो बताते हैं कि घटना के दो दिन
बाद जब वो अमेरिकन क्लब जा रहे थे तो रास्ते में एक एटीएम पर पैसा निकालने के लिए
रुके। इतने में बगल की मशीन पर एक बांग्लादेशी युवक भी आकर पैसा निकालने लगा। हम
दोनों साथ-साथ बाहर निकले। बाहर आकर उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि आई एम
सॉरी। ...लगा कि जैसे अभी रो देगा। फिर बोला, प्लीज हमें माफ कर देना। हमारा
बांग्लादेश ऐसा नहीं है।...उस युवक को मैं नहीं जानता हूं। लेकिन लगता है कि वो
शख्स आम बांग्लादेशी मुसलमान का प्रतिनिधित्व करता है।...वो जानता है कि आतंकवाद
की एक आम इंसान को और उसके देश को क्या कीमत चुकानी पड़ती है।
रसेल ने फराज हुसैन को याद करते हुए कहा
कि वह सही मायने में एक अच्छा मुसलमान लड़का था। उसने तारिषी और अंबिता को बचाने
के लिए वही किया जो एक अच्छे मुसलमान को करना चाहिए था। उसके एक्शन से पता चलता है
कि वो एक अच्छे कल्चर और एक अच्छी फैमिली से आया हुआ मुसलमान लड़का था। मुझे यकीन
नहीं होता कि कैसे लोग आम मुसलमानों के बारे में गलत धारणा बना लेते हैं।
आतंकवादियों के साथ इस्लाम या हर मुसलमान को जोड़ना न सिर्फ गलत है बल्कि बेवकूफी
भी है। रसेल कहते हैं कि ढाका के उस रेस्टोरेंट में जब आतंकवादी अल्लाह-ओ-अकबर
कहते हुए सबको मार रहे थे और कुरान की आय़त सुनाने को कहते थे तो फराज ने भी आयत
सुनाई। आतंकियों ने उसे जाने को कहा लेकिन उसने साफ कहा कि वो तारिषी और अंबिता को
छोड़कर नहीं जा सकता। उन्होंने तीनों का मार दिया। ...सोचकर देखिए। अपनी जान किसको
नहीं प्यारी होती। वो चाहता तो खुद को बचा लेता। उसे पता था कि कोई उसे उन दोनों
की मौत का जिम्मेदार नहीं ठहराएगा। लेकिन उसके धर्म ने उसे बताया था कि किसके साथ
खड़े होना है और वो इंसानियत के साथ खड़ा रहा।
फराज को हाल ही में मिलान (इटली) की एक
संस्था गार्डेन आफ राइटियस ने मरणोपरांत सम्मानित किया है। फराज की मां सिमीन
हुसैन ने उस संस्था को लिखे पत्र में खुद को प्राउड मदर आफ फराज लिखा है। सिमीन हुसैन
बांग्लादेश की सबसे बड़ी दवा कंपनी इस्कायफ (Eskayef) की एमडी व सीईओ हैं। वह कहती हैं कि मैं प्राउड
इसलिए महसूस करती हैं कि मेरा बेटा दूसरों के लिए जीया, अपने लिए। वो बहादुरी से
शहीद हुआ। वो धर्म की आड़ में वहां से मुंह छिपाकर भागा नहीं। ऐसे बहादुर बेटे की
मां को न सिर्फ प्राउड है, बल्कि मैं दुनिया की ऐसी सबसे खुशनसीब मां हूं, जिसने
उसे जन्म दिया।...जिंदगी तो चलती रहेगी लेकिन मेरा फराज उन अमानवीय आतंकियों के
मुंह पर तमाचा मारकर चला गया।
बता दें कि फराज के नाना का बांग्लादेश का सबसे बड़ा बिजनेस एंपायर ट्रांसकॉम ग्रुप (Transcom Group)
के नाम से जाना जाता है। जिसके तहत 30 कंपनियां आती हैं, जिनमें करीब दस हजार लोग
काम करते हैं। इन कंपनियों को फराज का परिवार भी संभालता है।
नोट ः ये लेख नवभारत टाइम्स लखनऊ संस्करण में आज प्रकाशित हुआ है..वहां पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं...
टिप्पणियाँ