शाहीनबाग के तीन महीने...हमने क्या पाया...

दिल्ली में शाहीनबाग के शांतिपूर्ण  संघर्ष को तीन महीने पूरे हुए...

सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर सूरते हाल क्या होगी, नहीं मालूम, लेकिन हमें इस बात का सुकून रहेगा कि हमने अपना ज़मीर मरने नहीं दिया...

हमने इस संघर्ष में ऐसे बच्चों को तैयार कर दिया है जो आने वाली नस्लों को बताएंगे कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई के लिए बनाए गए शाहीनबाग के वो चश्मदीद हैं...

हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनके सामने हमारे अतीत को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा... 

हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, ब्यूरोक्रेट, जज बनने पर यह समझ होगी कि जनभावनाएं और मानवाधिकार क्या होते हैं...

हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्हें किसी शाखा में ज़हरीला राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाया गया, बल्कि जिन्हें सड़क किनारे बनाई गई अभावग्रस्त लाइब्रेरी में शहीद भगत सिंह, गौरी लंकेश, बिस्मिल, आज़ाद, वीर अब्दुल हमीद, दाभोलकर, कलाम...को पढ़ाया गया...



हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि वो ऐसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए आगे बढ़े जब ख़ाकी पहने हुए गुंडों ने उन पर हमला बोला...

हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्होंने 15 दिसंबर 2019 को जामिया में ख़ाकी के गुंडों से आँखों में आँखें डालकर बात की और हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन की नींव रख दी...


हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्होंने कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की उस महान कविता की लाइन को चरितार्थ किया कि देश कागज पर बना नक़्शा नहीं होता है ....और उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम की बच्चियाँ तिरंगा लेकर जामिया, एएमयू, जेएनयू के हॉस्टल से बाहर निकल आईं...

हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो जॉन एलिया की इश्किया शायरी से निकलकर हबीब जालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अल्लामा इक़बाल को गुनगुनाने लगे...फिर उन्हीं में से कोई वरूण ग्रोवर निकला, कोई आमिर अज़ीज़ निकला, कोई सबा नकवी बना, तो कोई हुसैन हैदरी सामने आया। और सिलसिला जारी है...

इल्म से लबरेज़ बच्चों  ने ऐसा माहौल बनाया कि तमाम नामचीन लेखकों, रंगकर्मियों से लेकर पत्रकार भी शाहीनबाग में उमड़ आए। वहाँ हिंदी की जानी-मानी लेखिका नासिरा शर्मा पहुँचीं तो बरखा दत्त और रवीश कुमार पहुँचे। गायक प्रतीक कुहाड़ से लेकर कवि मनमोहन और शुभा भी पहुँचे। मेधा पाटकर और हिमांशु कुमार को भी शाहीनबाग़ खींच लाया।


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