आखिर ख्वाब का दर बंद क्यों है?



मशहूर शायर शहरयार की यह रचना मुझे इतनी पसंद है कि मैं जब भी इसे पढ़ता हूं, बेहद इमोशनल हो जाता हूं। यहां मैं अपने ब्लॉग पर उस रचना को उन लोगों के लिए पेश करना चाहता हूं जिनकी नजरों से यह नहीं गुजरी है। शहरयार साहब की शायरी मौजूदा वक्त की हकीकत को बयान करती नजर आती है, आप अपने तरीके से इसके बारे में सोच सकते हैं। इस रचना का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि मौजूदा हालात में तमाम शायर और अदीब के लोगों को जो आवाज उठानी चाहिए, वह नहीं उठा रहे हैं। हिंदी और उर्दू में साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त है, इनमें से कोई रोमांटिक शायरी में डूबा हुआ है तो कोई इस कदर संवेदनशील हो गया है कि उसको आम आदमी के सरोकार नहीं दिखाई दे रहे हैं। वह अपनी मां, बहन और भाई में अपनी संवेदना के बिम्ब तलाश रहा है। कई लोग तरक्की पसंद होने का दंभ भर रहे हैं लेकिन बड़े मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत से ही फुरसत नहीं है। बहरहाल, शहरयार की कलम न रूकी है न रूकेगी...मुझे तो ऐसा ही लगता है। और हां, शहरयार की यह रचना मैं वाङमय पत्रिका से साभार सहित ले रहा हूं, जहां मूल रूप से इसका प्रकाशन हुआ है। देखिए वो क्या कह रहे हैं...

ख़्वाब का दर बंद है

-शहरयार


मेरे लिए रात ने
आज फ़राहम किया
एक नया मर्हला
नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया
कासा मेरी आँख का
और कहा कान में
मैंने हर एक जुर्म से
तुमको बरी कर दिया
मैंने सदा के लिए
तुमको रिहा कर दिया
जाओ जिधर चाहो तुम
जागो कि सो जाओ तुम
ख़्वाब का दर बंद है


.............
about this picture:
"Sad Eyes "

This image is derived from a TV documentary called "Beneath the Veil." The reporter was Saira Shah and it has been shown on CNN. This is one of three sisters whose mother was killed before their eyes.

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
किरमानी जी, एक गुजारिश है कि आप जब भी उर्दु के लफ्जों वाली रचनाएं परोसें तो उर्दू के कठिन शब्‍दों के अर्थ भी नीचे कहीं दे दिया कीजिए। अब मुझे शब्‍दकोश लेकर एक बार फिर रचना पड़नी होगी।
एक गुजारिश और..
वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो सुविधा होगी।
रज़िया "राज़" ने कहा…
बहोत ख़ूब कह है।
मेरे लिए रात ने
आज फ़राहम किया
एक नया मर्हला
नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया

बहुत ख़ूब...
डॉ .अनुराग ने कहा…
सच में बांटने का शुक्रिया

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिन्दू धर्म और कैलासा

अतीक अहमद: बेवकूफ और मामूली गुंडा क्यों था

युद्ध में कविः जब मार्कर ही हथियार बन जाए