तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं
वैसे तो नीचे वाला लेख मैंने यह सोचकर लिखा था कि इसकी भावनाओं को आप लोग अच्छी तरह समंझेंगे। पर कुछ साथी कमेंट देने के दौरान भटक गए या उन्हें बात समझ में नहीं आई। इस लेख पर आए सभी कमेंट में से दो लोगों के कमेंट पर मैं भी कुछ कहना चाहता हूं। हालांकि इन दोनों लोगों ने अपनी असल पहचान छिपा रखी है और कोई इनका असली नाम नहीं जानता। एक साहब कॉमन मैन बनकर और एक साहब ने नटखट बच्चा के नाम से यहां कमेंट करके गए हैं।
इनका कहना है कि मुसलमान लोग सिमी की निंदा नहीं कर रहे हैं। यह अत्यंत ही सफेद झूठ है। तमाम मुस्लिम नेताओं ने और आम मुसलमानों ने ऐसे तमाम संगठनों की निंदा की है जो आतंकवाद के पोषक हैं। दिल्ली से लेकर मुंबई में प्रदर्शन हुए हैं। शायद इन दोनों भाइयों ने भी वो खबरें चैनलों और अखबारों में फोटो देखेंगे जिसमें आम मुसलमान अपने दो खास ट्रेडमार्क दाढ़ी और टोपी के साथ नजर आ रहा है। आतंकवाद किसी भी रूप में और किसी भी धर्म का निंदनीय है। सिमी के घटनाक्रम पर अगर इन दोनों महानुभावों ने नजर डाली होगी। बैन तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर भी लग चुका है लेकिन कोई आज तक साबित नहीं कर पाया कि यह संगठन भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। अदालत में जब मामला चलता है तो वहां सबूत मांगे जाते हैं और महज सतही बातों पर अदालतें फैसला नहीं लिया करतीं। सिमी का मामला भी अदालत में है और अगर सिमी आतंकवाद का पोषक है तो उस पर भला बैन क्यों नहीं लगना चाहिए? जरूर लगना चाहिए। उड़ीसा के संदर्भ में नटखट बच्चा ने अपने कमेंट में मेरा ज्ञान बढ़ाने की कोशिश की है। उन्होंने वही बात दोहराई है जो उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में कही थी कि यह दो जनजातियों की लड़ाई है। नटखट बच्चा को शायद यह नहीं मालूम कि मैं उड़ीसा के लोगों और वहां की संस्कृति से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूं। दैनिक जागरण ने पता नहीं कहां से और किस हवाले से वह रिपोर्ट छापी है लेकिन अगर नटखट बच्चा कुछ अंग्रेजी और हिंदी के दूसरे अखबारों (जिसमें द हिंदू अखबार भी शामिल है) को पढ़ ले तो उन्हें सचाई समझ में आ जाएगी। उन अखबारों में लिखने वाले पत्रकार उड़ीसा के ही हैं और उनकी विश्वसनीयता को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। वैसे भी उन लोगों ने अपने असली नाम से वे खबरें लिखी हैं न कि नटखट बच्चा और कॉमन मैन के फर्जी नामों से। फर्जी नामों से आप किसी को भी भी गाली दे सकते हैं। आपको इस लोकतंत्र में पूरा अधिकार है। लेकिन अगर इस लोकतंत्र में पूरी आस्था है तो सामने आकर अपनी बात रखिए, मेरी तरह से। क्योंकि मेरी आस्था किसी राजनीतिक दल या संगठन में न होकर इस पवित्र देश, यहां के लोगों और यहां के संविधान में है। कॉमन मैन ने अपने कमेंट में मेरी सोच पर भी सवाल उठाया है। उनका कहना है कि बड़े अखबार में काम करने भर से किसी की सोच बड़ी नहीं हो जाती। मैं अब इसका क्या जवाब दूं, यह हमारे पाठक ही तय करें। न तो मैं अपने अखबार को लेकर इतरा रहा हूं और न अपनी सोच को लेकर। मैंने तो आपकी सोच गलत नहीं बताई भाई साहब। न मैं उसको नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा हूं। अब मैं किसी अखबार में अगर नौकरी कर रहा हूं तो भला इसमें बड़ी सोच या बड़ा अखबार कहां से आ जाता है। देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो छोटे अखबारों और पत्रिकाओं में हैं और राजधानी दिल्ली के पत्रकार से कम सोच नहीं रखते, शायद उनसे ज्यादा प्रखर हैं। पर, कॉमन मैन जी आप भी तो अपनी सोच बड़ी रखें। आपके ब्लॉग को मैंने देखा, लोगों ने कितनी अच्छी टिप्पणियां कर रखी थीं लेकिन आप अपने फर्जी नाम से ब्लॉग न चलाते होते तो आपका कद और भी बड़ा होता। मेरी भी मैंने आपकी शान में कोई गुस्ताखी की हो तो माफ कीजिएगा।
यह विचारों का प्रवाह है। न तो आप और न हम यहां किसी धर्म या समुदाय की वकालत करने आए हैं। हमारे आसपास जो चल रहा है, अगर आपको लगता है कि वह गलत है तो अपनी बात कहने का हक सभी को है। वही बातें अब लोग ब्लॉग के जरिए कहते हैं। वरना जो बातें आप कॉमन मैन या नटखट बच्चा नाम से लिख रहे हैं क्या कोई अखबार उसको उसी नाम से छापने की हिम्मत जुटा पाता? जीवन में सत्यता और पारदर्शिता लाओ मेरे भाई।
टिप्पणियाँ
jab bhi hum kisi ko aisa kahte hain ki 'tumhe bura laga to mai kya karun' to aisa kahte hi hum us dusre vykti ko apni sahi bhawnao,vicharon se sahmat ya samjhane ki haisiyat kho dete hain.
AGAR aap se agar koi sahmat na ho to aap ko apni vinamrta khoni nahi chahiye, nahi to dusre ko bhi, bajae aapki bhawano ko samjhne ke bilkul vahi kahne ka hak mil jata hai jo aapke lekh hi HEADING line hai.