यह संकट और आज के सवाल
अमेरिकी आर्थिक मंदी (US recession) का जिक्र इस ब्लॉग पर पहले किया जा चुका और उससे जुड़ी भारतीय कंपनियों (Indian companies) के प्रभावित होने की बात उसमें कही गई थी। जब मैं यह पोस्ट लिखने बैठा तो तस्वीर पर छाई धुंध धीरे-धीरे साफ होने लगी है और तमाम बुरी खबरों से आपका सामना भी हुआ होगा।
भारत में आई आर्थिक मंदी की सबसे पहली मार उड्डयन उद्योग (aviation idustry) पर पड़ी है यानी वो कंपनियां जो हवाई जहाज उड़ाने के लिए अभी दो-चार साल पहले ही मैदान में उतरी थीं। शराब का कारखाना चलाने वाले, चिटफंड कंपनियां चलाने वाले अचानक हवाई जहाज में यात्रियों को ढोने वाली कंपनी खोलकर बैठ गए। जनता का पैसा था। इनके काम आ गया। प्राइवेट बैंक लोन देने के लिए तैयार बैठे थे। किसान को बिना घूस दिए लोन नहीं मिलता औऱ यहां प्राइवेट बैंक के ceo नई खुली कंपनियों के सीईओ को घूस खिलाने को तैयार थे कि लोन ले ले, हवाई जहाज खरीद लो। भारत के लोगों को सपने बेचो। फिर एक दिन उसको तहस-नहस कर डालो।
भारत को मुट्ठी में बंद करने की जो हसीन शुरुआत देश के कुछ बड़े औद्योगिक घरानों (big industrial houses) ने की थी, उससे अंधो को भी चारो तरफ हरियाली नजर आने लगी थी। लेकिन सपना धूलधूसरित हो चुका है।
यह बात यहां लिखना और कहना सचमुच बहुत आसान है। लेकिन इस मंदी के नतीजे चौतरफा असर डालने जा रहे हैं हमारे-आपके जीवन में। दरअसल, जेट एयरवेज या किंगफिशर ने अपने कर्मचारियों को जो हटाने की शुरूआत की है, वह और भी चीजों पर प्रभाव डालने वाली है।
मैं जौनपुर (यूपी) शहर के एक ऐसे परिवार को जानता हूं, जिसने अपने बेटे को हवाई जहाज में केबिन क्रू की नौकरी के लिए उसकी जो पढ़ाई कराई, उसके लिए बैंक से लोन लिया। एडमिशन लखनऊ में हुआ। जिस कंपनी ने अपना दफ्तर इस काम के लिए खोला था, उसने चमकीले विज्ञापनों से प्रचार किया था कि उसके पास अपना हवाई जहाज है। कई कंपनियों से करार है, नौकरी मिलना तो तय समझो। उस परिवार को लगा कि इससे बेहतर और क्या हो सकता है। उन्होंने बड़ा कर्ज लेकर अपने बेटे को भेज दिया। बीच में पढ़ाई के दौरान जब उनके बेटे को दिल्ली में किसी flight से ट्रेनिंग के लिए भेजा गया तो उन्हें अपना सपना साकार होता लगा। मुझे भी फोन आया कि जरा दिल्ली में उसको देख लेना। अब इस खबर के बाद जब कल मैंने फोन पर उस लड़के से और उसके परिवार वालों से बात की तो वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे क्योंकि अगले महीने उसको सर्टिफिकेट मिलना था औऱ एक अच्छी नौकरी। रास्ते बंद हो चुके हैं। कपूरथला (पंजाब) के के मेरे जानने वाले एक सिख परिवार ने अपनी खूबसूरत बेटी को बहुत महंगी फीस भरकर चंडीगढ़ से air hostess की ट्रेनिंग कराई। लड़की को जेट एयरवेज में नौकरी भी मिल गई। वह उन 1900 लोगों में शामिल है जिसे टर्मिनेट किए जाने का लेटर मिल चुका है। कपूरथला के उस सिख परिवार की माली हालत जौनपुर के उस मुस्लिम परिवार से थोड़ा बेहतर है। सिख परिवार से मेरी बात हुई, वे भी स्तब्ध हैं लेकिन उनका कहना है कि वो किसी NRI लड़के से अपनी लड़की की शादी कर देंगे। नौकरी न सही। अब आगे लड़की की किस्मत है।
देश का विकास होना बहुत अच्छी बात है। उस विकास के जरिए अगर तरक्की के रास्ते खुलते हैं तो भी बुरा नहीं है। लेकिन अगर तरक्की की बुनियाद खोखली है, जडों को सींचा नहीं गया है तो वह तरक्की भारी पड़ने लगती है। एविएशन इंडस्ट्री के डूबने का सबसे ज्यादा असर इससे जुड़े बाकी रोजगारों पर पड़ने वाला है। भारत का पर्यटन उद्योग (tourism industry)जो अपने बूते खड़े होने की कोशिश में था, उस पर भी मार पड़ेगी। टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े बाकी उद्योग जिसमें होटल इंडस्ट्री भी शामिल है, प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगी। यानी यह एक लंबी कड़ी है।
बाजार के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगला नंबर आईटी इंडस्ट्री का है। हालांकि वहां भी टाटा घराने की कंपनी टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (tcs) ने 900 लोगों को कई महीने पहले ही बाहर का रास्ता दिखाकर यह शुरुआत कर दी थी। अब इन्फोसिस जैसी बड़ी आईटी कंपनी में पे पैकेट घटाने की बात सोची जा रही है। आईटी कंपनियों का बाजार भी अमेरिका से संचालित होता है। कहीं से कोई उम्मीद की किरण नजर आ रही है। चारों तरफ भयावह हालात हैं। पर, हम लोगों के लिए रोटी-रोजगार अब भी कोई बड़ा मसला नहीं है, हमारे लिए बड़ा मसला धर्म है। बुखारी अच्छा है कि मोदी? हरभजन रावण बने तो उनके साथ मोना सिंह सीता बनकर क्यों नाची? बटला हाउस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के सब इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हुए या उनको मारा गया? ये सब सवाल हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि हमे हिंदू-मुसलमान में बांट दिया गया है औऱ हम भी उसी नजरिए से ही एक-दूसरे को देखेंगे। कर लो भाई अपनी-अपनी।
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