मुसलमान को उसके हाल पर छोड़ दीजिए


दिल्ली के जामिया नगर इलाके में बटला हाउस एनकाउंटर (batla house encounter) को लेकर राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। एनकाउंटर के कुछ दिनों तक तो राजनीतिक दल खामोश रहे और इस दौरान बटला हाउस और आजमगढ़ के तमाम मुसलमान आतंकवादी (muslim terrorist) और पाकिस्तानी करार दे दिए गए। अभी जब दिल्ली समेत कुछ राज्यों में चुनाव की घोषणा हुई और जिसे लोकसभा से पहले मिनी आम चुनाव कहा जा रहा है, राजनीतिक दलों ने मुसलमानों का दिल जीतने के लिए इस मुद्दे को उठा दिया। कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर सभी ने एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग कर डाली। सबसे मुखर समाजवादी पार्टी नजर आई। इसके नेता अमर सिंह ने पहले तो एनकाउंटर में मारे गए या शहीद हुए (आप जो भी कहना चाहें) दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के परिवार को दस लाख रुपये का चेक देने में अपनी फजीहत कराई। मैं समझता हूं कि समाजवादी पार्टी औऱ अमर सिंह की ओर से यह विवाद जानबूझकर पैदा किया गया, जिससे यूपी के मुसलमानों को संदेश दिया जा सके। इसके बाद अमर सिंह तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को लेकर बटला हाउस इलाके में पहुंचे और रात को एक रैली कर घटना की न्यायिक जांच की मांग कर डाली। इस रैली के बाद अमर सिंह के समर्थकों ने स्टार न्यूज चैनल के पत्रकारों के साथ मारपीट की। बहरहाल, मीडिया पर यह गुस्सा जायज था या नाजायज, यह हमारे लेख का विषय नहीं है।
इसके बाद सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस घटना की न्यायिक जांत की मांग कर डाली।
समझ में नहीं आ रहा है कि एनकाउंटर के बाद 15 दिन तक किसी नेता ने बटला हाउस इलाके में फटकने की हिम्मत नहीं जुटाई। जामिया यूनिवर्सिटी के वीसी मुशीरुल हसन ने जब अपना विरोध अपनी तरह दर्ज कराया तो बीजेपी ने उनको फौरन राष्ट्रविरोधी (antinational) घोषित कर दिया। किसी भी पार्टी ने इस बात के लिए बीजेपी को खुलकर नहीं कोसा कि मुशीरुल हसन किस तरह देशद्रोही हैं। (यह वही मुशीरुल हसन हैं जिन्होंने सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब सैटनिक वर्सेज यानी शैतान की आयतें के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद उसका खुलकर विरोध किया था। उस वक्त बीजेपी उनकी सबसे बड़ी हिमायती थी।) जामिया नगर और तमाम मुसलमानों को समझना होगा कि मुलायम सिंह या अमर सिंह जैसे लोग इस मुद्दे को गरमा कर उनका भला नहीं करने जा रहे हैं। क्योंकि न्यायिक जांच की मांग जाने माने बुद्धिजीवियों ने सबसे पहले की थी। जिसमें मशहूर लेखिका अरुंधति राय और कई वकील भी शामिल हैं। अगर केंद्र सरकार में जरा भी दमखम होता तो वह यह घोषणा पहले ही कर सकती थी। लेकिन केंद्र इस घटना को लेकर अपनी खुद की कोई दिशा तय नहीं कर पाई है। उसने दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है कि जो कुछ वह कह रही है, सही है।
अगर कांग्रेस, बीजेपी और समाजवादी पार्टी मिलकर इस देश के सेक्युलर नेचर (secular nature) को खत्म करना चाहती हैं तो यही सही। मुसलमान ऐसा होने दें। इसका नतीजा अकेले इस देश का मुसलमान नहीं भुगतेगा, सभी को जलना पड़ेगा। इन पार्टियों की जो चाल है, उसे समझना होगा। कांग्रेस चाहती है कि मुसलमान उसकी स्थिति को लेकर पसोपेश में रहे और चुनाव में उसे जिताकर लाए तो वह उसके बारे में सोचेगी। बीजेपी चाहती है कि मुसलमान विरोध को वह इतने चरम पर ले जाए कि यह देश सीधे-सीधे हिंदू-मुसलमान में बंट जाए। याद रखिए कि यही लाइन मोहम्मद अली जिन्ना की भी थी जिसके टाइप राइटर पाकिस्तान नामक देश पैदा हुआ था। उस वक्त उस आदमी ने यही काम किया था। आज बीजेपी उसी लाइन को पकड़े हुए है। मैं तो यही मानता हूं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी जान-अनजाने उसी की मदद में जुटी हुई हैं।
बेहतर होगा कि ये सारी पार्टियां जामिया नगर ही नहीं देश के बाकी हिस्सों को भी उसके हाल पर छोड़ दें। इन तमाम जगहों का मुसलमान खुद तय कर लेगा कि उसे किस पार्टी को वोट देना है और किसे नहीं।

टिप्पणियाँ

Gyan Darpan ने कहा…
इन सब को वोट चाहिए इन्हे मुसलमानों की तरक्की से कोई लेना देना नही, बस केसे जेसे मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा कर उसे वोट बैंक में तब्दील किया जाए इसी जुगत में लगी है ये पार्टियाँ |
Unknown ने कहा…
बिलकुल जी चुनाव आते ही सब कुछ याद आता है ताजी और बासी खबर । ये सभी लोग देश के साथ जाति के मान पर खेल खेल रहें है । अच्छा लिखा जी आपने।
Unknown ने कहा…
आपके खयालात दुरुस्त हैं, लेकिन इससे किसी इत्मीनान-बख्श नतीजे की निशानदेही नहीं होती. आजतक कभी मुसलमानों ने दुरुस्त फैसले नहीं किए. वो हमेशा इसी तरह के लालीपाप से खुश रहते हैं. चुनाव के वक़्त कभी बुखारी साहब अपनी अक्लमंदी का इज़हार फरमाने लगते हैं और कभी सैयद शहाबुद्दीन और सैयद हामिद जैसे दानिश्वर. माजी में हमने यही देखा है. मुसलमानों का मुस्तकबिल. संवारने की सलाहिया फिलवक्त किसी मुसलमान में नहीं है. जो क़ौम ख़ुद अपने दीन के तअल्लुक़ से आपस में बेशुमार इख्तिलाफ़ात रखती हो वो इन्तिखाबात के मौके पर एक क्योंकर हो सकती है. जबसे देवबंदी मुसलमानों ने फतवों का सिलसिला शुरू किया है और क़दम क़दम पर बिदअत का एलान करने लगे हैं, मुल्क का माहौल क्या से क्या हो गया है.
बेनामी ने कहा…
बेहतरीन विश्‍लेषण। सीधी बात। काश ये राजनेता वोटों के लिए आदमी को लड़ाना छोड़ दें।
jis din hindustan main musalmano ko vote na maan kar insaan mane jana lagega usi din se musakman trakki karna lagega.
wajib likha hai bradar aapne.

allah aapko sach ki talqeen karne ki taufiq de.aamin.
mian shahroz bhi aajkal yahi kar rahe hain.

khuda khair kare.
राज भाटिय़ा ने कहा…
जिस दिन भारत का मुसलमान यह सोचना शुरु करदेगा कि वह सिर्फ़ एक वोट नही बल्कि इस देश का एक नागरिक है, ओर यह कमिने नेता उसे सिर्फ़ बरत रहै है, इन ६० सालो मे क्या किया जो अब करेगे, ओर अपने दिमाग से वोट डाले, तो बात ही क्या, ओर यह बात सिर्फ़ मुसल्मानो के लिये ही नही सब लोगो पर लागु होती है जात पात करने वालो पर भी, आप भारतीया है ओर अपनी किमती वोट उसे डालो जो आप का इस देश का भला सोचता है, वो चाहे हिन्दु हो, मुस्लिम हो, किसी भी जात का हो लेकिन अच्छा हो उस का रिकार्ड अच्छा हो, अगर धर्म ,जात पात पर ही आप सब नेता चुनते रहै तो यह सब हमे लडायेगे ही,तो जागो ओर मिल कर बदलो इस देश की तस्वीर, यह देश मेरा भी उतना ही है जितना आप का.
धन्यवाद
इन सब को वोट चाहिए इन्हे मुसलमानों की तरक्की से कोई लेना देना नही,अच्छा लिखा

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