साहेब, मुसलमान तो वोट बैंक ही रहेगा, आप देख लो...



उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (#UPElection2017) का दूसरा चरण भी अब पूरा होने को है लेकिन राजनीतिक दलों में असहमति के स्वर अब गाली गलौच औऱ साजिश में बदलते जा रहे हैं। बिहार चुनाव के दौरान जो हथकंडे मुस्लिम वोटों को बरगलाने के लिए अपनाए गए, यूपी में वो सारी सीमाएं लांघ गया है। कोफ्त तो तब होती है जब पढ़े-लिखे पत्रकार भी उन साजिशों की काली कोठरी में शामिल हो गए हैं। 

मेरे पत्रकार मित्रों के दायरे में आने वाले कुछ लोगों ने एक दिन पहले मुझे चाय पर निमंत्रित किया और वहां यूपी चुनाव पर चर्चा छेड़ दी। तमाम असहमतियों के बाद उनमें से दो लोग ऐसे थे जिन्होंने कहा कि मुसलमान तो वोट बैंक (#MuslimVoteBank) है, इन लोगों ने सारे चुनाव की ऐसी तैसी कर दी है। अगर ये सुधर जाएं तो भारत के कुछ राजनीतिक दलों का दिमाग ठीक हो जाए।

मैंने उनसे पूछा कि आखिर वो मुसलमानों को वोट बैंक क्यों बता रहे हैं और क्यों समझ रहे हैं। उन्होंने कहा, क्योंकि ये लोग हमेशा किसी एक ही राजनीतिक दल को चुनकर वोट करते हैं। पहले कांग्रेस (#Congress) को, फिर समाजवादी पार्टी (#SP)को तो कभी बहुजन समाज पार्टी (#BSP) को। बिहार में आरजेडी या जेडीयू को। एमपी में कांग्रेस को। मैंने उनसे कहा, इसमें बुराई क्या है...वो कहने लगे इससे गलत तरह की राजनीति (#Politics) फलती फूलती है। मैंने उनसे कहा बहुजन समाज पार्टी को कौन वोट करता है, सपा को कौन वोट करता है, उन्होंने कहा कि दलित (#Dalit) और यादव। मेरा सवाल था कि क्या ये वोट बैंक नहीं हैं, उनकी परिभाषा के हिसाब से। फिर मैंने कहा कि कुर्मी सभा, जाट महासभा, ब्राह्मण सम्मेलन, वैश्य सम्मेलनों में जो राजनीतिक दलों के नेता जाते हैं, उसका क्या मकसद होता है। 

जब उनसे कोई तर्क नहीं सूझा तो उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि मुसलमानों का कोई अपना नेता हो जैसे असाउद्दीन ओवैसी टाइप। जो उनके साथ कभी छल न करे जैसा सपा, बसपा और कांग्रेस ने किया है। मैंने कहा कि क्या आप एक और जिन्ना पैदा करना चाहते हैं। ....मुसलमानों की क्या ये एक अच्छी बात नहीं कि वो अपने धर्म (#Religion) से ऊपर उठकर किसी हिंदू (#Hindu) को औऱ उसकी पार्टी को अपना नेता मानकर उसको दिल से वोट करते हैं। ये तो उस पार्टी और नेता की समझ या नासमझी है जो वो उनके साथ छल कर रहा है।....आखिरकार उन पत्रकार मित्रों के मुंह से निकला कि मुसलमान भाजपा (#BJP) को वोट देकर तो देखें। ...मैंने कहा कि वो प्रयोग भी लखनऊ में किया जा चुका है, अटल बिहारी वाजपेयी को वोट देकर मुसलमानों ने ही उन्हें संसद में भेजा और वो पीएम बने। लेकिन भाजपा ने इस बार यूपी में नाम के लिए ही सही किसी मुसलमान को टिकट तक नहीं दिया।...दोनों पत्रकार बेचारे उठे और चुपचाप चले गए।...

...लेकिन ऐसी चर्चा आमतौर पर भाजपा की ही तरफ से चुनाव के दौरान शुरू और खत्म की जाती है। बड़ी तादाद में पत्रकार भाजपा की इस ध्रुवीकरण वाली रणनीति को आगे बढ़ाने का हिस्सा बन जाते हैं। 

कई ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो बता रही हैं कि भाजपा कितने निचले स्तर पर जाकर मतदाताओं को बरगलाने की साजिश में शामिल हो गई है। देश में सबसे ज्यादा जगहों से प्रकाशित होने वाले एक हिंदी अखबार की वेबसाइट ने पहले चरण के वोट पड़ने के बाद एग्जिट पोल (#ExitPoll) निकाला कि भाजपा को वेस्ट यूपी की 73 सीटों पर सबसे ज्यादा बढ़त मिली है। फिर भाजपा के राष्ट्रीय प्रेजीडेंट अमित शाह ने इस एग्जिट पोल के आधार पर बयान दे डाला कि भाजपा को 50 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। चुनाव आयोग (#ElectionCommissionofIndia) पहले तो चुप रहा लेकिन जब सोशल मीडिया (#SocialMedia) में उस अखबार की करतूत के खिलाफ शोर मचा तो आय़ोग को कार्रवाई करनी पड़ी। यूपी में 15 जगह उस अखबार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बता दें कि ये वही अखबार (#Newspaper) है जिसने कभी मायावती के खिलाफ अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया था। ...ये सही है कि इस सारी करतूत के पीछे किसी प्रतिबद्ध पत्रकार और कर्मचारियों का हाथ रहा होगा, शायद अखबार मालिक और संपादक ऐसा नहीं चाहते रहे होंगे लेकिन फिर भी जिम्मेदारी तो उनकी भी बनती है कि ऐसे नाकारा लोग उनके संस्थान का हिस्सा हैं।


...बिजनौर में हाल ही में एक जाट (#JAT) युवक की हत्या कर दी गई और उसके पिता को घायल कर दिया गया। सभी अखबारों ने यह खबर छापी और यह भी लिखा कि हमले के पीछे कुछ मुसलमान थे। कुछ के खिलाफ नामजद रिपोर्ट भी है। लेकिन बिजनौर के लोकल अखबारों के अलावा किसी अखबार या टीवी ने वो रिपोर्ट नहीं दिखाई कि उस युवक का पिता चीख-चीख कर बता रहा है कि उस पर हमला करने वाले मुसलमान नहीं थे। ....लेकिन इस घटना को भाजपा ने रंग दिया और सारे पत्रकार उसमें नहा उठे। पड़ताल किसी ने नहीं की।

बागपत में एक घटना हुई। जिसका बयान अपने आप में आपको एक खास सवाल का जवाब दे देगा। छपरौली गांव में वहां के एक सर्राफ ने खुलकर भाजपा को वोट दिया। अगले दिन रात में कुछ युवक उसके घर पहुंचे। घर पर पथराव किया। भाजपा को वोट देने के लिए गालियां दीं और जाते वक्त घर के बाहर लिखा ...और दो भाजपा को वोट। उस सर्राफ ने जाकर पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि गांव के फलां-फलां जाट युवकों ने यह सब किया और वे कई दिन से उस पर दबाव बना रहे थे कि वो और उसका परिवार भाजपा को वोट न दे। 

हालांकि यह घटना इस मायने में निंदनीय है कि आप किसी मतदाता के साथ इस तरह का सलूक नहीं कर सकते। उसकी मर्जी वो चाहे जिसको वोट दे। ....बहरहाल, अधिकांश अखबारों ने इस खबर को दबा दिया लेकिन कुछ ने इसे छाप भी दिया। उस खबर का सबसे दिलचस्प हिस्सा यह था कि गांव के जाट युवकों ने कहा कि वे पहले भाजपा के बहकावे में आकर कई गलत हरकतें कर चुके हैं और इस कारण गांव में हिंदू-मुस्लिम भाईचार खत्म हो गया। अब वो ऐसा नहीं होने देंगे और जो भाजपा को वोट देगा, उसका विरोध हर तरह से करेंगे। ...यानी वेस्ट यूपी में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत और उससे पहले चौधरी चरण सिंह के समय में जाट-मुसलमानों का जो गठजोड़ था, उसे भाजपा ने तरह-तरह की साजिश कर तोड़ने का काम किया। जिन्होंने टिकैत के किसान आंदोलन के बारे में पढ़ा होगा, वो जानते होंगे कि उस आंदोलन में वेस्ट यूपी के मुसलमानों की कितनी बड़ी साझेदारी थी। लेकिन आज की तारीख में वेस्ट यूपी का किसान आंदोलन दम तोड़ चुका है। लोकल जाट नेता इसे भांप चुके हैं और वे उसी गठजोड़ को फिर से जिंदा करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। भाजपा इसे किसी भी कीमत पर रोकने को आमादा है।

खैर, आगे बढ़ते हैं...

गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू का ताजा बयान इसी रणनीति का हिस्सा है। रिजिजू ने कहा कि चूंकि हिंदू धर्मातरण नहीं कराते इसलिए उनकी आबादी घट रही है। उनके इस बयान को सच मानने वाले पत्रकार भी हैं। लेकिन रिजिजू ने कभी यह नहीं बताया कि क्या भारत में कोई मुस्लिम संगठन संगठित रूप से धर्मातरण का कोई अभियान चलाता है। क्योंकि उन्हें जरूरत नहीं है। ...जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि उनकी आबादी बढ़ तो रही है लेकिन उनके घरों में भी एक या दो बच्चों का ही चलन है। बड़े शहरों में खुले फर्टिलिटी (प्रजनन) सेंटरों पर आधारित रिपोर्ट बताती है कि हिंदुओं में इनफर्टिलिटी रेट मुसलमानों से कम है। सरल शब्दों में कहें तो तमाम हिंदू पुरुषों में बच्चा पैदा करने की क्षमता मुस्लिमों के मुकाबले थोड़ी सी कम पाई गई है। हालांकि इसके तमाम सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक कारण भी हो सकते हैं लेकिन फर्टिलिटी सेंटर चलाने वाले विशेषज्ञ  तो यही कहते हैं कि खान-पान विशेषकर नॉन वेज खाने की वजह से मुस्लिमों में फर्टिलिटी रेट बेहतर है। बहरहाल, मैं खुद इन तथ्यों को विवादास्पद मानता हूं। लेकिन मैंने यह जरूर नोट किया है कि मुस्लिमों में भी अब परिवार छोटे हो रहे हैं। मेरे अधिकांश जानकार मुस्लिम परिवारों में एक या दो ही बच्चे हैं। 


....कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि मुसलमान वोट बैंक हैं। रहेंगे। ...बकौल सरकारी आंकड़ों के उनकी आबादी भी बढ़ रही है।....अब साहेब आप देख लो, इन हालात में क्या करना है।...साजिश कर लो या हाथ मिला लो...हाथ मिलाने में सभी का फायदा है। भारत तो तेजी से तरक्की करेगा ही, आपकी तरक्की भी होती रहेगी, क्योंकि तब आपके पास भी इस वोटबैंक में शेयर होगा। पूरे विश्व में किसी भी मुस्लिम देश के मुकाबले भारत में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। ऐसे में उसे एक औऱ जिन्ना चुनने या पैदा करने की ओर धकेलने की बजाय उसके साथ मिलजुलकर, उसके बैंक में कुछ शेयर लेकर रहना ज्यादा अक्लमंदी है।...है ना।

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