ग़ालिब तेरे फरेब में ...ये किस मुकाम तक आ गए
मुझे एक विडियो मिला
है। भारतीय राजनीति के मुश्किल दौर में यह विडियो हम लोगों को नया रास्ता दिखाता है।
लेकिन ऐसे विडियो से कितनी बात बनेगी, खासकर जब भारतीय #राजनीति के मुश्किल दौर का
अंत भयावह नजर आ रहा है। चुनाव तो फिर आएंगे, 11 मार्च के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता
कोई न कोई दल या मिलाजुला गठबंधन संभाल ही लेगा लेकिन #हिंदूमुसलमान की जिस खाई को
चौड़ा करके इस चुनाव में खाद-पानी दिया जा रहा है। वो एक खतरनाक खेल है। इस खेल के
नतीजे अच्छे नहीं आने वाले यह तय है। आइए, पहले ये जानें कि उस विडियो में है क्या...
#मुस्लिम #उलेमा मौलाना
कल्बे सादिक उस विडियो में बता रहे हैं। ...मैं हज पर जाने के लिए तैयार हूं, पासपोर्ट
भी तैयार है। टिकट जेब में है। फिर मैंने एक रोजा भी रख लिया कि अल्लाह का शुक्र अदा
करुं कि मुझे हज पर जाना नसीब हो रहा है। इसके बाद मैंने सोचा कि क्यों न #गोमतीनदी
(#लखनऊ) के किनारे थोड़ा सा टहल लूं। फिर नमाज का वक्त हो गया। मैंने सोचा गोमती के
किनारे पढ़ लूं।...यानि मैं एकसाथ तीन इबादत कर रहा हूं – हज पर जाने की तैयारी, मेरा
एक दिन का रोजा और गोमती के किनारे नमाज। ....वो आगे बताते हैं कि नमाज की नीयत बांधी
ही थी कि इतने में एक आवाज सुनाई दी...हाय राम मुझे बचाओ।...नजर उधर गई तो देखा नदी
में पानी के बाहर दो हाथ दिख रहे हैं और आवाज वहीं से आ रही है।...जाहिर है कि वो
आवाज एक हिंदू की थी। यानी गैर मुस्लिम की। जिसके मुंह से हाय राम निकला था। ...इधर
मेरे #अल्लाह और #कुरान का आदेश है कि अगर किसी की जान इस तरह जा रही है तो तुम उसे
बचाने की पहल करो। चाहे वो काफिर (नास्तिक) ही क्यों न हो। चाहे तुम नमाज पढ़ रहे
हो या रोजा रखा है या हज पर जा रहे हो। अल्लाह और कुरान की नजर में पहले यह काम जरूरी
है कि उस आदमी की जान बचाई जाए...चाहे वो किसी भी #मजहब, #जाति या #समुदाय का हो।
....कल्बे
सादिक कहते हैं कि गैर मजहब का होने के बावजूद #इस्लाम की नजर में सबसे पहले उस इंसान
की जान बचाया जाना जरूरी है। ...उस वक्त उससे बड़ा कोई काम नहीं। बेशक आपकी #नमाज टूट
जाए। बेशक आपका #रोजा टूट जाए। बेशक आपका #हज पर जाना रह जाए।...
...इस संदेश के आगे
कुछ और नहीं है। ...लेकिन इसके आगे बहुत कुछ है।...इसके आगे #भारत है...#पाकिस्तान है।
हिंदू-मुसलमान है। ...यह संदेश जितना मुसलमानों के लिए जरूरी है उतना ही हिंदुओं के
लिए भी जरूरी है।...लेकिन हम लोग कहां उलझे हैं या उलझा दिए गए हैं... कि अगर #कब्रिस्तान
हो तो #श्मशानघाट भी होना चाहिए। #रमजान में बिजली आए तो दिवाली पर भी #बिजली आनी चाहिए।...क्या
किसी आम भारतीय ने या यूपी वालों ने इस हद तक गिरकर कभी सोचा था। ...नहीं...कभी नहीं।
लेकिन एक नेता ने याद दिलाया और एक #टीवी चैनल ने लोगों के मुंह में माइक ठूंस-ठूंस
कर पूछा कि आपकी गली में श्मशान घाट है...आपके मुहल्ले में कब्रिस्तान है।... वो यह
नहीं पूछ रहे हैं कि स्कूल-कॉलेज-सड़क-अस्पताल-कारखाना है या नहीं ...क्योंकि ये सवाल
अब अपना महत्व खो चुके हैं। जनता को कंडीशन्ड किया जा रहा है। पब्लिक के लिए श्मशान
और कब्रिस्तान उसकी मूलभूत आवश्यकताएं बना दिए गए हैं। जब वो रोटी मांगे तो उसे गाय
की सेवा के काम पर लगा दो। जब वो रोजगार मांगे तो #मंदिरमस्जिद में उलझा दो।
आमिर किरमानी (हरदोई)
के जरिए पहुंचा यह शेर इस वक्त मौजूं हो चला है...
#गालिब तेरे फ़रेब में ये किस मुक़ाम तक आ गये !
घुट घुट के जिये ऐसे कि "श्मशान" तक आ गये !
घुट घुट के जिये ऐसे कि "श्मशान" तक आ गये !
...यकीन मानिए...हमें
इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि हम अपने मूलभूत अधिकार और मूलभूत आवश्यकताएं भूल
जाएं और उसकी जगह कब्रिस्तान, श्मशान, #डिजिटल मनी, #एटीएम कार्ड, ई-वैलेट याद रखें।
जैसे जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत यही चीजें हैं। दिल्ली के #अपोलो अस्पताल में हर नेता
इलाज के लिए पहुंचता है लेकिन उस अस्पताल के सामने बने फ्लाईओवर की सड़क टूटी-फूटी
है...उसकी मरम्मत हमारी जरूरत नहीं है। क्योंकि नेताजी इस तरह की कार में वहां से
आते-जाते हैं, उन्हें उस कार में झटके नहीं लगते। उस सड़क की जरूरत बाइक वाले को,
साइकल वाले को, सार्वजनिक परिवहन की बसों को, सामान ढोने वाले ट्रकों को है लेकिन
अगर उन्हें रोजाना झटके लगेंगे तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि उसकी
मूलभूत आवश्यकताओं को नेताजी पहले ही बदल चुके हैं। नेताजी ने उसे सड़क की जगह डिजिटल
मनी का झुनझुना पकड़ा दिया है।
...जाहिर है कि सामने वाला नेता जनता को मुद्दों से भटकाकर हिंदू-मुसलमान में उलझा रहा है तो आप भी गधे की बात कहकर एक वर्ग की सहानुभूति का वोट बटोरना चाहते हैं।...क्योंकि वह वर्ग फिलहाल गधे को अपना दुश्मन नंबर 1 मान बैठा है तो वो आपकी ताली बजाकर वोट डालेगा। ...आप तो जीतने के बाद गधे की सवारी फिर से कर लेंगे...भले ही वो आपको दुलत्ती मारे।...लेकिन गधे की दुलत्ती खाकर माल मिलता रहे तो क्या हर्ज है।
संयुक्त राष्ट्र की
एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 50 फीसदी आबादी अभी भी खुले में शौच के लिए जाती
है। लेकिन उसे #शौचालय देने की बजाय आप या तो श्मशान देना चाहते हैं या फिर कब्रिस्तान। #संयुक्तराष्ट्र की रिपोर्ट में इस आबादी को हिंदू-मुसलमान में नहीं बांटा गया है,
क्योंकि गरीबी का कोई धर्म तो होता नहीं है।
...तो पता यह चलता है
कि किसी की नीयत साफ नहीं है। ...लेकिन जनता की नीयत साफ लग रही है। उम्मीद है कि
उसे अपने मूलभूत आवश्यकताओं की जानकारी जरूर होगी और इस चुनाव से यह पता चलेगा कि
वो कितनी समझदार या बेवकूफ है। वो नेताओं की बातों में आकर कंडीशन्ड नहीं होगी यानी
उनके हिसाब से वोट नहीं करेगी। लेकिन अगर उसने वाकई नेताओं के कहने के मुताबिक श्मशान-कब्रिस्तान
या गधों में बंटकर वोट दिया तो यही नेता इसी जनता को हमेशा के लिए बेवकूफ मान लेंगे
और उसी के अनुसार व्यवहार करेंगे। इसीलिए मैं इसे भारतीय राजनीति का सबसे मुश्किल
दौर मान रहा हूं। #यूपीकाचुनाव कई चीजों को तय करेगा। इसमें नेताओं या राजनीतिक दलों
से ज्यादा जनता की इज्जत दांव पर लगी है। 20 दिन और...बहुत कुछ बदल जाएगा।...
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