कर्नाटक वाले निरे मूर्ख निकले...



आरएसएस - भाजपा के मंदिर आंदोलन पर इतना शोर शराबा किया जा रहा है...कि कर्नाटक में पार्टी को चार सीटें हारना पड़ीं। अगर यह शोर नहीं होता तो अपनी पार्टी की जीत तय थी। 

पिछले पाँच साल में कोई ऐसा दिन बताइए जब हमारी पार्टी और पिता तुल्य संगठन इस धंधे से पीछे हटे हों...यह उनकी ईमानदारी है। ...

ख़ैर, कर्नाटक में जो हुआ सो हुआ।अब तो उनको अपना काम करने दीजिए...उन्हें हर शहर में श्रीराम की मूर्ति लगाने और हर शहर में राम मंदिर बनाने में सब लोगों को मदद करनी चाहिए...

हम लोगों के लिए मूर्ति और मंदिर पहले होना चाहिए...रोटी, रोज़गार बाद मे देखेंगे...अगर समय मिला तो। वरना भूखे पेट भी तो भजन किया जा सकता है। 

कथित सेकुलर जमात के बदमाश यूसुफ़ किरमानी जैसों  से कोई पूछे कि भाजपा - आरएसएस के ख़िलाफ़ शोर मचाकर उन्होंने अब तक क्या तीर मार लिया...कितनी नालायक है यह सेकुलर जमात कि रोटी - रोज़ी की तुलना मंदिर और मूर्ति से कर रही है।

...जब हर शहर और गाँव में आंबेडकर की मूर्ति हो सकती है तो श्रीराम की क्यों नहीं? आंबेडकर को हर कोई नहीं मानता...राम को तो सब मानते हैं...बेचारे आंबेडकर वाले और दलित चिंतक भी राम को मानते हैं। क्या कांशीराम के नाम में नाम नहीं लगा था। आंबेडकर वाले सच्चे हैं, मौक़ा मिलते ही हमारी पार्टी को वोट देते हैं। हम राष्ट्रवादियों का जब तब मन होता है तो उनको लतिया भी देते हैं। बेचारे कुछ दिन नाराज़ रहने के बाद हमारे पाले में लौट आते हैं। 
...इनके कुछ चिंतक तो हमारे टुकड़ों पर पलते हैं। लतियाये जाने के बावजूद बेचारे सेवाभाव से लगे रहते हैं।...असली ख़तरा यह सेकुलर जमात है जो लाल झंडे वालों के साथ मिलकर सारे प्रपंच करती रहती है और हमारी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी करती रहती है। 


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