क्या इसे ‘रामराज्य’ कहते हैं ?
लेखक : पंकज त्रिवेदी, ગુજરાતી - हिन्दी साहित्यकार एवं संपादक - विश्वगाथा (हिन्दी साहित्य की त्रैमासिक प्रिंट पत्रिका)
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने देशभक्त और बुद्धिमान होने के लिए अपनी ही एक परिभाषा दे दी। मनोज तिवारी ने कहा – “वे लोग देशभक्त और बुद्धिमान होते हैं, जिनकी माँ छठपूजा करती हैं। सोनिया गांधी ने कभी छठ पूजा नहीं की, अगर सोनिया जी ने छठ पूजा की होंती तो बड़ा बुद्धिमान..आता.. छठ की पूजा किया करिए आप लोग.. न कर सकें तो साथ में शामिल होइए।''
महिलाओं का सम्मान नहीं करने वाला ये सड़कछाप गवैया पहले भी एक शिक्षिका को मंच से अपमानित करते हुए उतरने का आदेश देकर कार्यवाही करने की धमकी दे चूका है। बहुत से राज्यों में छठ पूजा नहीं होती। गुजरात में भी नहीं होती तो क्या मोदी जी और अमित शाह को भी मनोज तिवारी ने उस कटघरे में खड़ा कर दिया, जिसके लिए उन्हों ने व्यंग्य किया था ! बीजेपी आलाकमान के आगे पीछे चलकर ये गवैया क्या साबित करना चाहता है? जनता यदि एक कलाकार का सम्मान करते हुए उसे सांसद बनने का मौका दे रही है इसका मतलब यह तो नहीं कि घमंड सर पे चढ़कर बोले। आप अगर सांसद बन गए है तो उसकी नींव में आपकी गायकी है। जनता उस लोक गायक को चाहते थे इसलिए चुनाव में जीताया है। किसी की माँ के लिए अपशब्द बोलने वाला यह मनोज तिवारी को ये पता होना चाहिए कि कलाकार माँ की कोख़ से पैदा होते हैं, सांसद नहीं !
ऐसी ही दूसरी घटना दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के हंगामे का मामला तूल पकड़ चूका था। इस प्रकरण में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान सांसद मनोज तिवारी को स्टेज से नीचे धक्का देते हुए दिख रहे थे। ध्यान हो कि मनोज तिवारी ने सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले अपने साथ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बदसलूकी करने का आरोप लगाया था और एक पुलिसकर्मी को थप्पड़ जड़ दिया था। सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी की कड़ी आलोचना हो रही थी। दरअसल महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अगर नेता-अभिनेता बन गए तो क्या जनता पर अत्याचार करने का अधिकार मिल जाता है? जरुरी नहीं कि आप शारीरिक अत्याचार ही करें। अगर आप किसी का सरेआम अपमान करते हैं तो वो भी अत्याचार कहा जाएगा।
सलमान खान को काले हिरन और हीट एंड रन के मामले में जिस तरह से इस सरकार ने बचा लिया है, उस बात से जनता अनजान नहीं है। जब आप किसी व्यक्ति या प्राणी की जान ले लेते हैं तब अभिनेता होने के कारण सरकार बचा लेती है ! मोदी जी की सरकार ने सेलिब्रिटीज को उनकी प्रसिद्धि के अनुसार बीजेपी के गुणगान गाने के लिए रख दिया है। हो सकता है कुछ लोग खुशी से गए होंगे और कुछ लोग मजबूरन जुड़े होंगे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन राजनीति में अपने मित्र और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कारण आएं और इलाहाबाद क्षेत्र से जीत भी प्राप्त की थी। उनके पिता कवि हरिवंशराय बच्चन सम्पूर्ण कांग्रेसी थे। ‘कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में’ विज्ञापन के लिए अमिताभ जी ने पैसे नहीं लिए थे। तब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अब वो प्रधानमंत्री बन गए तो नॉटबंदी और जीएसटी के कारण देश के उद्योगपति एवं बड़े व्यापारीओं पर शिकंजा कसने के हौवा दिखाकर मोदी जी ने अपनी ओर खींच लिया है। सोचने वाली बात यह है कि कायदे का डंडा दिखाकर मजबूर किया जाता है और अगर कोई समर्पण नहीं करते तो उनको परेशान किया जाता है। अप्रत्यक्ष रूप में यह इमरजंसी तो है।
सरकार किसी भी दल की हो, जनता का शोषण ही उनका मुख्य एजंडा रहा है। भ्रष्टाचार कांग्रेस सरकार में बहुत हुआ। जनता के गुस्से को देखकर मोदी जी के प्रति पूरे देश ने विश्वास जताया और रिकार्डब्रेक बहुमत दिलाकर प्रधानमंत्री बना दिया। इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी प्रधानमंत्री देश का मालिक बन जाएं। सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जस्टिस चेलामेश्वर ने गर्भित खुलासा किया है कि हम तीन जजों ने जो प्रेस कांफ्रेंस की थी उसका खुलासा एक वर्ष तक नहीं करूँगा । अदालतों में जजों की नियुक्ति में भी सरकार का हस्तक्षेप भी उस विवाद की जड़ में था । सीबीआई और आरबीआई के साथ सरकार की ज्यादती अब नई बात नहीं है। उत्तर कोरिया में किम जोंग-उन ने लोकतंत्र को ख़त्म करने के लिए क्रूरता का सहारा लिया था। हमारे यहाँ महंगाई, नॉटबंदी, रोजगारी और किसानों की आत्महत्या, हिन्दुत्त्व के नाम धर्म और जातिवाद से जनता के बीच असुरक्षा का खौफ़ पैदा कर दिया गया है। क्या इसे ‘रामराज्य’ कहते हैं? चुनाव से पहले मंदिर बनाने का वचन एजंडा में शामिल था। मंदिर कब बनेगा ये कोई नहीं जानता मगर 2019 का चुनाव यूपी केन्द्रित होगा। मोदी जी अपने भाषणों में जो तेवर दिखाते हैं, ‘ऐसा करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए..’ जैसे सवालों का जनता उत्साह से जवाब देती थी। अब लोग समझ गए हैं कि झूठ और ज्यादती का जवाब कैसे दिया जाएं। राहुल गांधी ने भी पिछले कुछ भाषणों में शिष्ट भाषा, संयम और मद्धम आवाज़ में जो कहा उसे जनता गौर से सुन रही है, समझ रही है। सता कभी भी पलट सकती है। आप किसी भी समय हीरो से जीरो हो सकते हो। आपके साथ चलने वाले और आपकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दो ही पल में पलटी खायेगें। फिर सत्ता नहीं तो क्या करोगे। फिर तो आपके शब्द अनुसार ‘झोला’ लेकर निकलना पड़ेगा ।” 2019 में नतीजा ऐसा आएगा कि घमंडी वाणी-विलास के सामने संयमित और मुद्दे पर बात करने वाली कांग्रेस कांटे की टक्कर देगी। देश के अन्य प्रांतीय दल भी वर्त्तमान सरकार से नाराज़ है। यूपी, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी अवांछित चुनावी परिणाम आ सकते है।
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने देशभक्त और बुद्धिमान होने के लिए अपनी ही एक परिभाषा दे दी। मनोज तिवारी ने कहा – “वे लोग देशभक्त और बुद्धिमान होते हैं, जिनकी माँ छठपूजा करती हैं। सोनिया गांधी ने कभी छठ पूजा नहीं की, अगर सोनिया जी ने छठ पूजा की होंती तो बड़ा बुद्धिमान..आता.. छठ की पूजा किया करिए आप लोग.. न कर सकें तो साथ में शामिल होइए।''
महिलाओं का सम्मान नहीं करने वाला ये सड़कछाप गवैया पहले भी एक शिक्षिका को मंच से अपमानित करते हुए उतरने का आदेश देकर कार्यवाही करने की धमकी दे चूका है। बहुत से राज्यों में छठ पूजा नहीं होती। गुजरात में भी नहीं होती तो क्या मोदी जी और अमित शाह को भी मनोज तिवारी ने उस कटघरे में खड़ा कर दिया, जिसके लिए उन्हों ने व्यंग्य किया था ! बीजेपी आलाकमान के आगे पीछे चलकर ये गवैया क्या साबित करना चाहता है? जनता यदि एक कलाकार का सम्मान करते हुए उसे सांसद बनने का मौका दे रही है इसका मतलब यह तो नहीं कि घमंड सर पे चढ़कर बोले। आप अगर सांसद बन गए है तो उसकी नींव में आपकी गायकी है। जनता उस लोक गायक को चाहते थे इसलिए चुनाव में जीताया है। किसी की माँ के लिए अपशब्द बोलने वाला यह मनोज तिवारी को ये पता होना चाहिए कि कलाकार माँ की कोख़ से पैदा होते हैं, सांसद नहीं !
ऐसी ही दूसरी घटना दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के हंगामे का मामला तूल पकड़ चूका था। इस प्रकरण में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान सांसद मनोज तिवारी को स्टेज से नीचे धक्का देते हुए दिख रहे थे। ध्यान हो कि मनोज तिवारी ने सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन से पहले अपने साथ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बदसलूकी करने का आरोप लगाया था और एक पुलिसकर्मी को थप्पड़ जड़ दिया था। सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी की कड़ी आलोचना हो रही थी। दरअसल महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अगर नेता-अभिनेता बन गए तो क्या जनता पर अत्याचार करने का अधिकार मिल जाता है? जरुरी नहीं कि आप शारीरिक अत्याचार ही करें। अगर आप किसी का सरेआम अपमान करते हैं तो वो भी अत्याचार कहा जाएगा।
सलमान खान को काले हिरन और हीट एंड रन के मामले में जिस तरह से इस सरकार ने बचा लिया है, उस बात से जनता अनजान नहीं है। जब आप किसी व्यक्ति या प्राणी की जान ले लेते हैं तब अभिनेता होने के कारण सरकार बचा लेती है ! मोदी जी की सरकार ने सेलिब्रिटीज को उनकी प्रसिद्धि के अनुसार बीजेपी के गुणगान गाने के लिए रख दिया है। हो सकता है कुछ लोग खुशी से गए होंगे और कुछ लोग मजबूरन जुड़े होंगे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन राजनीति में अपने मित्र और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कारण आएं और इलाहाबाद क्षेत्र से जीत भी प्राप्त की थी। उनके पिता कवि हरिवंशराय बच्चन सम्पूर्ण कांग्रेसी थे। ‘कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में’ विज्ञापन के लिए अमिताभ जी ने पैसे नहीं लिए थे। तब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अब वो प्रधानमंत्री बन गए तो नॉटबंदी और जीएसटी के कारण देश के उद्योगपति एवं बड़े व्यापारीओं पर शिकंजा कसने के हौवा दिखाकर मोदी जी ने अपनी ओर खींच लिया है। सोचने वाली बात यह है कि कायदे का डंडा दिखाकर मजबूर किया जाता है और अगर कोई समर्पण नहीं करते तो उनको परेशान किया जाता है। अप्रत्यक्ष रूप में यह इमरजंसी तो है।
सरकार किसी भी दल की हो, जनता का शोषण ही उनका मुख्य एजंडा रहा है। भ्रष्टाचार कांग्रेस सरकार में बहुत हुआ। जनता के गुस्से को देखकर मोदी जी के प्रति पूरे देश ने विश्वास जताया और रिकार्डब्रेक बहुमत दिलाकर प्रधानमंत्री बना दिया। इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी प्रधानमंत्री देश का मालिक बन जाएं। सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जस्टिस चेलामेश्वर ने गर्भित खुलासा किया है कि हम तीन जजों ने जो प्रेस कांफ्रेंस की थी उसका खुलासा एक वर्ष तक नहीं करूँगा । अदालतों में जजों की नियुक्ति में भी सरकार का हस्तक्षेप भी उस विवाद की जड़ में था । सीबीआई और आरबीआई के साथ सरकार की ज्यादती अब नई बात नहीं है। उत्तर कोरिया में किम जोंग-उन ने लोकतंत्र को ख़त्म करने के लिए क्रूरता का सहारा लिया था। हमारे यहाँ महंगाई, नॉटबंदी, रोजगारी और किसानों की आत्महत्या, हिन्दुत्त्व के नाम धर्म और जातिवाद से जनता के बीच असुरक्षा का खौफ़ पैदा कर दिया गया है। क्या इसे ‘रामराज्य’ कहते हैं? चुनाव से पहले मंदिर बनाने का वचन एजंडा में शामिल था। मंदिर कब बनेगा ये कोई नहीं जानता मगर 2019 का चुनाव यूपी केन्द्रित होगा। मोदी जी अपने भाषणों में जो तेवर दिखाते हैं, ‘ऐसा करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए..’ जैसे सवालों का जनता उत्साह से जवाब देती थी। अब लोग समझ गए हैं कि झूठ और ज्यादती का जवाब कैसे दिया जाएं। राहुल गांधी ने भी पिछले कुछ भाषणों में शिष्ट भाषा, संयम और मद्धम आवाज़ में जो कहा उसे जनता गौर से सुन रही है, समझ रही है। सता कभी भी पलट सकती है। आप किसी भी समय हीरो से जीरो हो सकते हो। आपके साथ चलने वाले और आपकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दो ही पल में पलटी खायेगें। फिर सत्ता नहीं तो क्या करोगे। फिर तो आपके शब्द अनुसार ‘झोला’ लेकर निकलना पड़ेगा ।” 2019 में नतीजा ऐसा आएगा कि घमंडी वाणी-विलास के सामने संयमित और मुद्दे पर बात करने वाली कांग्रेस कांटे की टक्कर देगी। देश के अन्य प्रांतीय दल भी वर्त्तमान सरकार से नाराज़ है। यूपी, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी अवांछित चुनावी परिणाम आ सकते है।
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