हमारा धर्म है झूठ बोलना
कोई नेता जब सत्ता हासिल करने के लिए पहला कदम बढ़ाता है तो उसकी शुरुआत झूठ से होती है। हर बार चुनाव में यही सब होता है और देश चुपचाप यह सब होते हुए देखता है। चुनाव आयोग एक सीमा तक अपनी जिम्मेदारी निभाकर चुप हो जाता है। यहां पर हम बात उन प्रत्याशियों की कर रहे हैं जो दलितों की मसीहा पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से टिकट हासिल कर चुनाव मैदान में उतरे हैं। बात देश की राजधानी दिल्ली की ही हो रही है।
दिल्ली के महरौली विधानसभा क्षेत्र से कोई वेद प्रकाश हैं जिनके पास 201 करोड़ की संपत्ति है। यह बात उन्होंने चुनाव आयोग में जमा कराए गए हलफनामे में कही है। दूसरे नंबर पर बीएसपी के ही छतरपुर (दिल्ली) विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर हैं जिनके पास 157 करोड़ की संपत्ति है। इसके अलावा दिल्ली में कम से कम उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके पास एक करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है। चुनाव आयोग के पास जमा यह सब दस्तावेजों में दर्ज है। यह सभी 153 प्रत्याशी बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी के ही हैं। सिर्फ पांच प्रत्याशी ऐसे हैं जिन्होंने अपनी संपत्ति शून्य (जीरो) दिखाई है।
लेकिन इनमें से जिन वेद प्रकाश का जिक्र यहां किया गया है, दरअसल वह उनकी एक ही संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा है। यानी संपत्ति इससे कहीं ज्यादा है। यही हाल दूसरे नंबर के कंवर सिंह का है। यह सभी लोग प्रॉपर्टी के धंधे से जुड़े हुए हैं। संसद या विधानसभा में कैसे लोग चुनकर भेजे जाएं, इस पर काफी कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है। लेकिन यह सब चुनाव तक ही सीमित रहता है औऱ भूलने की आदत की गुलाम भारतीय मानस सब कुछ बिसरा देता है और फिर पूरे पांच साल हम लोग रोना रोते हैं कि हमारा एमपी या एमएलए यह नहीं कर रहा और वह नहीं कर रहा।
यहां हम कांग्रेस की बात नहीं करेंगे, क्योंकि जिस पार्टी ने भ्रष्ट संस्कृति को फैलाने में कोई कसर नहीं रखी, उसकी बात क्या की जाए। हां, हम उन दोनों पार्टियों बीजेपी और बीएसपी की बात जरूर करेंगे जो केंद्र की सत्ता पर कब्जा करने की तरफ तेजी से बढ़ रही हैं।
बीजेपी के दिग्गज प्रमोद महाजन की हत्या के बाद इस पार्टी के रणनीतिकर अब अरुण जेटली हैं। वह आडवाणी से भी बड़े रणनीतिकार माने जाते हैं, वकील हैं। अभी जब बीजेपी दिल्ली के टिकट बांट रही थी तो एक ओ. पी. शर्मा उर्फ ओमी नामक व्यक्ति को विश्वासनगर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिला। इनकी खासियत यह है कि यह साहब जेटली के पीए हैं और दिल्ली और एनसीआर में इनके ४० से ज्यादा शोरूम हैं। इनके टिकट पर बीजेपी में विद्रोह हो गया। विद्रोहियों ने एक श्वेत पत्र जारी कर सारी कहानी बीजेपी आलाकमान तक पहुंचाई। जिसमें साफ-साफ लिखा गया कि किसी भी राज्य में चुनाव जब होता है तो उस चुनाव के बाद ओमी का एक शोरूम एनसीआर या दिल्ली में खुल जाता है। यहां एनसीआर से मतलब है दिल्ली के आसपास के शहर जिसमें गुड़गांव, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद शामिल हैं। बहरहाल, विद्रोहियों की एक नहीं सुनी गई और ओमी को टिकट दे दी गई।
इस लघु कथा के बाद क्या यह सवाल बाकी रह जाता है कि ऐसे लोग जब विधानसभा या लोकसभा में पहुंचेंगे तो किन नीतियों को लागू करेंगे और किस ऐजेंडे पर काम करेंगे। जिस पार्टी ने राजीव गांधी को भ्रष्ट साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसने सोनिया गांधी के स्विस बैंक खाते का आरोप लगाया। यह उस पार्टी का हाल है जो राजनीति में ईमानदारी, शुचिता और समरसता की बात करती है। अभी आडवाणी ने देश के दिग्गज उद्योगपतियों की एक बैठक बुलाई जिसमें उन्होंने यह जाना कि देश के आर्थिक हालात क्या हैं। मतलब कि जब तक उद्योगपति नहीं बताएगा कि देश के आर्थिक हालात क्या हैं, एक राष्ट्रीय पार्टी को समझ में नहीं आएगा। यानी हम उद्योगपतियों के चश्मे से देश की हालत जानना चाहते हैं। जरा इसका औऱ बारीक विश्लेषण करें। छह महीने बाद लोकसभा चुनाव होंगे, उद्योगपतियों को भी यह बात पता है। संदेश क्या है- मतलब तुम हमारा चश्मा पहनो और हम तुम्हारा चश्मा पहने। देश की तरक्की तेजी से होगी। अब बताइए इसमें भारत का आम मतदाता कहां आता है। उसने तो सारी ताकत किसी आडवाणी, किसी सोनिया गांधी, किसी मुलायम सिंह या मायावती को दे दी है, वे अपना-अपना चश्मा लगाकर उद्योगपतियों से चाहे जितनी बार चश्मा बदलें। इन्हीं तमाम नामों में से किसी एक की पार्टी को सत्ता में आना है।
इसीलिए झूठ से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले कभी देश या यहां के आम आदमी के बारे में नहीं सोच सकते। इन लोगों ने बड़ी चालाकी से तमाम तरह की चीजों में हम लोगों को उलझा दिया है औऱ हम लोग मरने-मारने पर उतारू हैं। पता नहीं कब लोग इन चालाकियों को समझेंगे।
टिप्पणियाँ
लगे रहो युसुफ मियाँ ..........
इधर मतदाता बँटा हुआ है. धर्म, जाति, भाषा, दलित-सवर्ण, अमीर-गरीब, आरक्षित-अनारक्षित, न जाने कितने वर्गों में बँटा है मतदाता. जब तक मतदाता एक नहीं होता, नेताओं की लामबंदी के सामने हारता रहेगा.
धन्यवाद
sorry to say in englisn agaain
Very valid question Yusuf Jee you have raised.More interesting will be an investigation about wht actually happens when power and wrong/unreal/ untrue join hands and go side by side. Whether wrong gets power or power becomes wrong and unreal and thereby loose its sanctity and this gives birth to a pseudo, unreal and anarchic system.
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shukriya ...
लोकतंत्र का यह रूप कुछ अभिशप्त सा लगता है [
aapki tippni ke liye aabhar aage bhi protsahit karte rahiyega