शुक्रिया मुंबई...और आप सभी के जज्बातों का
मुंबई ने फिर साबित किया है कि वह जीवट का शहर है। उसे गिरकर संभलना आता है। उस पर जब-जब हमले हुए हैं, वह घायल हुई लेकिन फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई। 1993 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के बाद मुंबई ने यह कर दिखाया और अब जब बुधवार देर रात को उस पर सबसे बड़ा हमला हुआ तब वह एक बार फिर पूरे हौसले के साथ खड़ी है। मुट्ठी भर आतंकवादी जिस नीयत से आए थे, उन्हें उसमें रत्तीभर कामयाबी नहीं मिली। उनका इरादा था कि बुधवार के इस हमले के बाद प्रतिक्रिया होगी और मुंबई में बड़े पैमाने पर खून खराबा शुरू हो जाएगा लेकिन उनके ख्वाब अधूरे रहे। मुंबई के लोग एकजुट नजर आए और उन्होंने पुलिस को अपना आपरेशन चलाने में पूरी मदद की। हालांकि मुंबई पुलिस ने इस कार्रवाई में अपने 14 अफसर खो दिए हैं लेकिन मुंबई को जिस तरह उन लोगों ने जान पर खेलकर बचाया है, वह काबिलेतारीफ है।
इस घटना को महज एक आतंकवादी घटना बताकर भुला देना ठीक नहीं होगा। अब जरूरत आ पड़ी है कि सभी समुदायों के लोग इस पर गंभीरता से विचार करें और ऐसी साजिश रचने वालों को बेनकाब करें। ऐसे लोग किसी एक खास धर्म या जाति में नहीं हैं। इनकी जड़ें चारों तरफ फैली हुई हैं। मुंबई पर इतने बड़े हमले की साजिश किसी क्षणिक आवेश में की गई घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे सोची-समझी और लंबी साजिश है। शुरुआती जांच से ही यह बात सामने आने लगी है कि जो आतंकवादी इस हमले में शामिल थे, उनके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। बेशक पाकिस्तान में लोकतंत्र आ चुका है लेकिन वहां की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई अब भी भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए हैं। वहां के हुक्मरां आसिफ अली जरदारी का यह कहना कि अब समय आ गया है कि भारत-पाकिस्तान मिलकर आतंकवाद से मुकाबला करें, उनकी बेबसी को झलकाता है। क्योंकि वह भी आतंकवाद की वजह से अपनी पत्नी बेनजीर भुट्टो को खो चुके हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पाकिस्तान पर एक बदनुमा दाग की तरह हैं, जब तक कमान इन दोनों ऐजेंसियों के पास रहेगी, तब तक वहां कठपुतली सरकारों के अलावा आप और कुछ की उम्मीद नहीं कर सकते।
बहरहाल, यह समय नहीं है कि इस घटना के बहाने हम भारत के नेताओं को भी कोसें। लेकिन गुरुवार को जो राजनीतिक घटनाक्रम रहा, उससे यही लग रहा है कि बीजेपी इस मामले को हद तक उछालेगी और समुदाय विशेष पर निशाना साधने का उसका जो तरीका है वह उस पर काबू नहीं रख पाएगी। बीजेपी लंबे समय से धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए काम कर रही है, इसलिए यकीन नहीं है कि उसके नेता अपनी जबान पर कंट्रोल रख पाएंगे, वह भी तब जह अगले कुछ महीनों में केंद्र की सरकार का फैसला होना है और उस दौड़ में उसे आगे बताया जा रहा है। हालांकि मशहूर फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने तो गुरुवार को एक इंटरव्यू में बहुत साफ लफ्जों में कह दिया कि पार्टी कोई भी हो लेकिन पब्लिक का भरोसा अब नेताओं पर से उठ चुका है। यानी पब्लिक को ही अब अपने अच्छे-बुरे के बारे में सोचना होगा कि हमे क्या चाहिए? हमे आगे जाना है या फिर तरक्की के सारे रास्ते बंदकर अपने ही घर में कैद हो जाना है। अगर कोई समुदाय यह सोचता है कि बेकसूर लोगों को जब एनकाउंटरों में मारा जाएगा और फर्जी मुकदमा चलाया जाएगा तो ऐसी ही घटनाएं होंगी, उसकी यह सोच एक व्यवस्थित समाज की सोच से मेल नहीं खाती। अच्छे और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण ऐसी सोच से नहीं हो सकता। सोचिए अगर मुंबई में लाखों लोग इतने बड़े आतंकवादी हमले के बाद बेरोजगार हो जाएं तो वह आतंकवाद से भी घातक चीज होगी। उसमें सिर्फ अकेले हिंदू या अकेले मुसलमान ही शिकार नहीं होंगे। यह उसी तरह है कि विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर हर देश पर पड़ रहा है, आर्थिक मंदी ने इस मामले में किसी देश को रियायत नहीं दी कि वह विकसित देश है या विकासशील गरीब मुल्क। इसलिए सोचिए कि यह सब बंद हो। ऐसे फिदायीन हमले किसी एक के लिए बल्कि सभी के लिए भारी पड़ते हैं।
सभी ब्लॉगर्स का भी धन्यवाद
मुंबई में घटी इतनी बड़ी घटना पर तमाम ब्लॉगर्स ने जिस तरह संतुलित प्रतिक्रिया दी, वह भी कम काबिलेतारीफ नहीं है। मेरे इस ब्लॉग नीचे वाले लेख पर आई प्रतिक्रियाओं और ईमेल से कम से कम यही बात साबित होती है। जो ब्लॉगर्स पत्रकार हैं, उनकी प्रतिक्रिया के तो कई आयाम होते हैं लेकिन ऐसे ब्लॉगर्स जो गैर पत्रकार हैं, उनकी संतुलित प्रतिक्रिया वाकई बहुत राहत पहुंचाने वाली है। इसी ब्लॉग पर आई प्रतिक्रियाओं में से शिक्षण कार्य में लगे लोग, वास्तुकला विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं बड़ी ही स्वाभाविक हैं। मैं ऐसे तमाम लोगों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं जिन्होंने अमन का पैगाम दिया है। चंद सिरफिरे लोगों की बातों पर हम सब को ध्यान देने की जरूरत नहीं है।
(यह पोस्ट लिखे जाने तक मुंबई में आतंकवादियों के खिलाफ सभी सुरक्षा एजेंसियों का संयुक्त आपरेशन जारी था। नरीमन हाउस में एनएसजी और आतंकवादियों में आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो चुकी थी,उम्मीद है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।)
हालात को बयां करते कुछ चित्र
(http://ibnlive.com )
-आतंकवादी का चेहरा...किसने धकेला इनको इस राह पर
हमले के दौरान प्रसिद्ध ताज होटल के एक हिस्से में आग लग गई, शायद किसी आतंकवादी ने ग्रेनेड फेंका था
एनएसजी द्वारा मुक्त कराई गई विदेशी महिला खुशी के आंसू बहाती हुई
-पोजिशन संभाले हुए सुरक्षाकर्मी
इसमें चार तस्वीरे हैं। सबसे ऊपर मुंबई पुलिस का वाहन जिसे आतंकवादियों ने छीना और फिर कोलाबा में सरेआम गोलियां बरसाईं। घायल को ले जाता उसका साथी। ताज के बाहर मुंबई पुलिस का जमावड़ा। यह नक्शा बताता है कि मुंबई को कहां-कहां निशाना बनाया गया।
इस घटना को महज एक आतंकवादी घटना बताकर भुला देना ठीक नहीं होगा। अब जरूरत आ पड़ी है कि सभी समुदायों के लोग इस पर गंभीरता से विचार करें और ऐसी साजिश रचने वालों को बेनकाब करें। ऐसे लोग किसी एक खास धर्म या जाति में नहीं हैं। इनकी जड़ें चारों तरफ फैली हुई हैं। मुंबई पर इतने बड़े हमले की साजिश किसी क्षणिक आवेश में की गई घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे सोची-समझी और लंबी साजिश है। शुरुआती जांच से ही यह बात सामने आने लगी है कि जो आतंकवादी इस हमले में शामिल थे, उनके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। बेशक पाकिस्तान में लोकतंत्र आ चुका है लेकिन वहां की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई अब भी भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए हैं। वहां के हुक्मरां आसिफ अली जरदारी का यह कहना कि अब समय आ गया है कि भारत-पाकिस्तान मिलकर आतंकवाद से मुकाबला करें, उनकी बेबसी को झलकाता है। क्योंकि वह भी आतंकवाद की वजह से अपनी पत्नी बेनजीर भुट्टो को खो चुके हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पाकिस्तान पर एक बदनुमा दाग की तरह हैं, जब तक कमान इन दोनों ऐजेंसियों के पास रहेगी, तब तक वहां कठपुतली सरकारों के अलावा आप और कुछ की उम्मीद नहीं कर सकते।
बहरहाल, यह समय नहीं है कि इस घटना के बहाने हम भारत के नेताओं को भी कोसें। लेकिन गुरुवार को जो राजनीतिक घटनाक्रम रहा, उससे यही लग रहा है कि बीजेपी इस मामले को हद तक उछालेगी और समुदाय विशेष पर निशाना साधने का उसका जो तरीका है वह उस पर काबू नहीं रख पाएगी। बीजेपी लंबे समय से धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए काम कर रही है, इसलिए यकीन नहीं है कि उसके नेता अपनी जबान पर कंट्रोल रख पाएंगे, वह भी तब जह अगले कुछ महीनों में केंद्र की सरकार का फैसला होना है और उस दौड़ में उसे आगे बताया जा रहा है। हालांकि मशहूर फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने तो गुरुवार को एक इंटरव्यू में बहुत साफ लफ्जों में कह दिया कि पार्टी कोई भी हो लेकिन पब्लिक का भरोसा अब नेताओं पर से उठ चुका है। यानी पब्लिक को ही अब अपने अच्छे-बुरे के बारे में सोचना होगा कि हमे क्या चाहिए? हमे आगे जाना है या फिर तरक्की के सारे रास्ते बंदकर अपने ही घर में कैद हो जाना है। अगर कोई समुदाय यह सोचता है कि बेकसूर लोगों को जब एनकाउंटरों में मारा जाएगा और फर्जी मुकदमा चलाया जाएगा तो ऐसी ही घटनाएं होंगी, उसकी यह सोच एक व्यवस्थित समाज की सोच से मेल नहीं खाती। अच्छे और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण ऐसी सोच से नहीं हो सकता। सोचिए अगर मुंबई में लाखों लोग इतने बड़े आतंकवादी हमले के बाद बेरोजगार हो जाएं तो वह आतंकवाद से भी घातक चीज होगी। उसमें सिर्फ अकेले हिंदू या अकेले मुसलमान ही शिकार नहीं होंगे। यह उसी तरह है कि विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर हर देश पर पड़ रहा है, आर्थिक मंदी ने इस मामले में किसी देश को रियायत नहीं दी कि वह विकसित देश है या विकासशील गरीब मुल्क। इसलिए सोचिए कि यह सब बंद हो। ऐसे फिदायीन हमले किसी एक के लिए बल्कि सभी के लिए भारी पड़ते हैं।
सभी ब्लॉगर्स का भी धन्यवाद
मुंबई में घटी इतनी बड़ी घटना पर तमाम ब्लॉगर्स ने जिस तरह संतुलित प्रतिक्रिया दी, वह भी कम काबिलेतारीफ नहीं है। मेरे इस ब्लॉग नीचे वाले लेख पर आई प्रतिक्रियाओं और ईमेल से कम से कम यही बात साबित होती है। जो ब्लॉगर्स पत्रकार हैं, उनकी प्रतिक्रिया के तो कई आयाम होते हैं लेकिन ऐसे ब्लॉगर्स जो गैर पत्रकार हैं, उनकी संतुलित प्रतिक्रिया वाकई बहुत राहत पहुंचाने वाली है। इसी ब्लॉग पर आई प्रतिक्रियाओं में से शिक्षण कार्य में लगे लोग, वास्तुकला विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं बड़ी ही स्वाभाविक हैं। मैं ऐसे तमाम लोगों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं जिन्होंने अमन का पैगाम दिया है। चंद सिरफिरे लोगों की बातों पर हम सब को ध्यान देने की जरूरत नहीं है।
(यह पोस्ट लिखे जाने तक मुंबई में आतंकवादियों के खिलाफ सभी सुरक्षा एजेंसियों का संयुक्त आपरेशन जारी था। नरीमन हाउस में एनएसजी और आतंकवादियों में आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो चुकी थी,उम्मीद है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।)
हालात को बयां करते कुछ चित्र
(http://ibnlive.com )
-आतंकवादी का चेहरा...किसने धकेला इनको इस राह पर
हमले के दौरान प्रसिद्ध ताज होटल के एक हिस्से में आग लग गई, शायद किसी आतंकवादी ने ग्रेनेड फेंका था
एनएसजी द्वारा मुक्त कराई गई विदेशी महिला खुशी के आंसू बहाती हुई
-पोजिशन संभाले हुए सुरक्षाकर्मी
इसमें चार तस्वीरे हैं। सबसे ऊपर मुंबई पुलिस का वाहन जिसे आतंकवादियों ने छीना और फिर कोलाबा में सरेआम गोलियां बरसाईं। घायल को ले जाता उसका साथी। ताज के बाहर मुंबई पुलिस का जमावड़ा। यह नक्शा बताता है कि मुंबई को कहां-कहां निशाना बनाया गया।
टिप्पणियाँ
मुंबई जेहादियों की मानसिकता के कारण बिलख रही है |
भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाने से पहले मध्य युग मे ले जाने वाले
फ़तवों पर लिखें तो बेहतर है, आपकी भाषा मुसलमानो का नाम आते ही सेक्युलर हो जाती है |
कडवी ही सही पर यही सच्चाई है
अपने ब्लॉग पर ये लाइन लिख कर आप जिस आतंकवादी को मासूम बताने की कोशिश कर रहे है.. ज़रा उस से पहले ये लिंक भी देखे..
http://josh18.in.com/showstory.php?id=354691
जिसमे भारतीय नौसेना के कमांडो दस्ते ‘मार्कोस’ के एक अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि हमलावर आतंकवादी बहुत क्रूर और पूरी तरह प्रशिक्षित हैं।
"आतंकवादी का चेहरा...किसने धकेला इनको इस राह पर" इन शब्दों से आपके चेहरे का मुलम्मा उतर जाता है
इन इस्लामी दहशतगर्दों को इस राह पर इनके पाकिस्तानी आकाओं ने ढकेला है. हम ढकेलते तो इन्हें सीधे दोजख में ढकेलते.