2009 मैं तुम्हारा स्वागत क्यों करूं?



एक रस्म हो गई है जब बीते हुए साल को लोग विदा करते हैं और नए साल का स्वागत करते हैं। इसके नाम पर पूरी दुनिया में कई अरब रूपये बहा दिए जाते हैं। आज जो हालात हैं, पूरी दुनिया में बेचैनी है। कुछ देश अपनी दादागीरी दिखा रहे हैं। यह सारा आडंबर और बाजारवाद भी उन्हीं की देन है। इसलिए मैं तो नए साल का स्वागत क्यों करूं? अगर पहले से कुछ मालूम हो कि इस साल कोई बेगुनाह नहीं मारा जाएगा, कोई देश रौंदा नहीं जाएगा, किसी देश पर आतंकवादी हमले नहीं होंगे, कहीं नौकरियों का संकट नहीं होगा, कहीं लोग भूख से नहीं मरेंगे, तब तो नववर्ष का स्वागत करने का कुछ मतलब भी है। हालांकि मैं जानता हूं कि यह परंपरा से हटकर है और लोग बुरा भी मानेंगे लेकिन मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता? इसलिए माफी समेत...


अलविदा 2008, इस साल तुमने बहुत कष्ट दिए। तुम अब जबकि इतिहास का हिस्सा बनने जा रहे हो, बताओ तो सही, तुम इतने निष्ठुर हर इंसान के लिए क्यों साबित हुए। तुम्हें कम से कम मैं तो खुश होकर विदा नहीं करना चाहता। जाओ और दूर हो जाओ मेरी नजरों से। तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि तुम्हें उल्लासपूर्वक विदा करूं और तुम्हारे ही साथी २००९ का स्वागत करूं। तुमने जो अनगिनत घाव दिए हैं, क्या उनकी भरपाई तुम्हारा साथी 2009 कर पाएगा। सारे घावों को गिनाकर मैं तुम्हारा समय नहीं खराब करना चाहता क्योंकि चंद घंटे बचे हैं, जब तुम दफा हो जाआगे। फिर भी एक-दो घावों का जिक्र तो किया ही जा सकता है जिनके नतीजों से हमे 2009 में भी शायद दो-चार होना पड़ेगा। क्या तुम भूल गए कि बाजारवाद नामक जिस बुलबुले को तुम्हारे चमचों ने पिछले तीन-चार साल से जो हवा दे रखी थी उसका खोखलापन 2009 में ही तुमने जाहिर कर दिया। कहां तो तुम्हारे सबसे बड़े चमचे अमेरिका ने तुम्हें इतनी बुलंदी पर पहुंचा दिया था कि लगता था कि बस सभी को जमीन पर ही जन्नत के दर्शन होने वाले हैं। लेकिन अब 2009 में भी तुम उम्मीद के तमाम फर्जी पिटारों के साथ आ पहुंचे हो। आखिर कब तुम्हारे चमचे बाजारवाद का नाटक बंद कर धरती पर कदम रखेंगे। कहो न उनसे, लोगों की जरूरते क्या हैं? बनावटी जरूरतें न पैदा करो। लेकिन तुम और तुम्हारे चमचे तो निपट अनाड़ी साबित हुए। कुछ अर्थशास्त्रियों को तुमने इस उम्मीद से नोबल बांटे कि वे तुम्हें इस झटके से उबार लेंगे लेकिन सेमिनार में परचे पढ़ने और साम्राज्यावाद की वकालत से यह आंधी कब रुकनी थी। इसे रोकने के लिए तो तुम्हें जमीन पर आना पड़ता न, पर तुम तो ऊंची उड़ान पर हो।
और, अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल जो तुमने इस साल की या करवाई, कहीं यह मंदी उसी से जुड़ी तो नहीं है? तुम्हारे चमचों ने कई देश रौंद डाले। तुम्हारा एक चमचा स्वयंभू दरोगा बन बैठा है।
कहीं, ऐसा तो नहीं कि कुछ बेगुनाह लोगों की हाय तुमको लग गई है। उनकी लाशों पर पैर रखकर तुम्हारे चमचों ने पेट्रोल के कुंओं पर कब्जा किया। तुमने बताया कि जिन लाशों को तुमने रौंदा है, उनके रहनुमा उन्हीं लोगों पर अत्याचार कर रहे थे। इसलिए उन रहनुमाओं को खत्म करना जरूरी था। लेकिन ये तो बताओ कि एक रहनुमा को मारने के लिए तुमने लाखों के खून बहा दिए। क्या यही तुम्हारा इंसाफ है। और...तुम्हारे चमचों के चमचे इस्राइल ने अभी-अभी क्या किया? गाजा पट्टी के उन 29 बच्चों का कसूर तो बताओ, क्या वे भी हमास के आतंकवादी थे? हमास को तो फलस्तीन की जनता ने चुना था। क्या तुम्हारे चमचे चुनी हुई सरकारों को इसी तरह खत्म करते हैं? हां, तख्ता पलटवाने का तुम्हारा पुराना अनुभव है। गाहे-बगाहे इस्तेमाल करने से तुम कहां मानने वाले। फिर तुम लेबनान से पिटकर क्यों भागे? वहां तुम्हारी दाल नहीं गली।
...अब तो यह हालत है कि पाकिस्तान के जरिए तुम भारत को अपने इशारों पर नचाना चाहते हो। पर, यह देश तुम्हारे चमचे देशों के मुकाबले ज्यादा मजबूत है। हम आपस में चाहे जितना मनमुटाव और मत-भिन्नता रखें, पर तुम्हारे चमचों को यहां कामयाब नहीं होने देंगे। पूरी तरह से उसे रोकेंगे। देखो, तो जरा तुम्हारे चमचे के चमचे ने आतंकवाद के सौदागरों को किस तरह इस देश में भेजा। हर महीने कहीं न कहीं तुम सब मिलकर ब्लास्ट करा देते हो। कभी कोलकाता को निशान बनाते हो तो कभी मुंबई को। दिल्ली को लहूलुहान करने में तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी। देखो, अगर तुम हथियार बेचने के लिए ही यह सब करते हो तो क्यों नहीं कह देते कि जो तुमसे हथियार नहीं खरीदेगा, तुम उस पर हमला करा दोगे या कर दोगे।
देखो, इन सब चीजों का अंत बहुत बुरा होता है। कहीं ऐसा न हो कि तुम एक दिन अपनी गलती मानकर अफसोस करना चाहो तो वह भी न हो सकेगा। क्योंकि तब तक २०१० दस्तक दे चुका होगा और वह अपने हिसाब से फैसला करना चाहे। सोचो, रहम करो। 2009 से कहना, थोड़ा संयम से काम ले। हम दोस्ती के लिए हाजिर हैं, पर साफ नीयत से हाथ तो बढ़ाओ। अब देखें तुम्हारे एक्शन क्या रहते हैं? कुछ भी हो जाए, मैं न तो तुम्हारा स्वागत करने को तैयार हूं और न ही आंडबरपूर्ण उन एजेंडो को तय करना चाहता हूं जो साल की शुरुआत में बहुत सारे लोग शेखी बघारते हुए करते हैं। देखना है, अब तुम क्या करोगे?

टिप्पणियाँ

sarita argarey ने कहा…
उम्मीद पर दुनिया कायम है । बाज़ारवाद के खतरों से तो कब से आगाह किया जा रहा था , वो तो हम ही थे जो उपभोक्तावाद को ही जीवन का सुख मान कर बाकी खतरों को नज़र अंदाज़ किए थे । खैर अब भी कुछ नहीं बिगडा " देर आयद दुरुस्त आयद " की तर्ज़ पर सब कुछ सुधारने की सोचें तो तय मानिए नया साल खुशहाली का पैगाम लेकर ज़रुर आएगा । अंग्रेज़ियत का नया साल हिन्दुस्तानी अंदाज़ में मुबारक ।
राज भाटिय़ा ने कहा…
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद
राज भाटिय़ा ने कहा…
अजी हम सब मिल कर खुशियां भी मनायेगे, ओर लडेगे भी अपने दुशमन के साथ, मत रुठ के बेठो, इस दुनिया को बत दो हम किसी से कम नही, हम से ज्यादा ओर किसी के दम नही, हमारे ही कुछ जयचंद ( जो हमारे ही निक्कमे भाई है) हमे थोडी देर के लिये कमजोर तो कर सकते है, लेकिन हमे जीत नही सकते, आओ ओर लड कर दिखाओ...
आओ पहले नये साल का स्वागत करे.
Aruna Kapoor ने कहा…
आपके विचारों से मै सहमत हूं।.... लेकिन क्या करें?... जब हम रात को सोते है तो, आने वाला दिन खुशगवार हो .....यही सोच दिमाग में होती है।... जानते भी है कि कोई नया बदलाव संभव नहीं है।.... पढकर बहुत अच्छी अनुभूति हुई।... नया साल आपको ढेरों नई खुशियां उपहार में दें।
Unknown ने कहा…
आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

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