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अक्तूबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुशीरुल हसन की आवाज सुनो

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दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 30 अक्टूबर को दीक्षांत समारोह था। प्रो. अनंतमूर्ति मुख्य अतिथि थे और दीक्षांत भाषण भी उन्ही का था। लेकिन जिस भाषण पर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है वह है वहां के वीसी मुशीरुल हसन का। मुशीरुल हसन के भाषण में जामिया का दर्द बाहर निकल आया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जामिया के छात्रों के लिए नौकरियां खत्म की जा रही हैं। उन्हें बाहर यह कहकर नौकरी देने से मना कर दिया जाता है कि जामिया यूनिवर्सिटी में तो आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है, इसलिए वहां के पढ़े छात्रों के लिए कोई नौकरी नहीं है। यहां पर प्राइवेट कंपनियों की कैब लाने से ड्राइवर यह कहकर मना कर देते हैं कि वहां तो आतंकवादी रहते हैं, इसलिए वे वहां नहीं जाएंगे। सचमुच, यह बहुत भयावह हालात हैं। किसी देश की मशहूर यूनिवर्सिटी का वीसी अगर यह बात पूरे होशहवास में कह रहा है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब इसी जामिया नगर इलाके के बटला हाउस में एक विवादित एनकाउंटर हुआ, जिसमें दो युवक और एक पुलिस वाला मारे गए। इसके बाद वहां राजनीतिक पार्टियां अपने ढ

हिंदुत्व...संस्कृति...कमेंट या बहसबाजी

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संदर्भः मोहल्ला और हिंदीवाणी ब्लॉगों पर टिप्पणी के बहाने बहसबाजी (मित्रों, आप हमारे ब्लॉग पर आते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं, मैं आपके ब्लॉग पर जाता हूं, प्रतिक्रिया देता हूं। यहां हम लोग विचारों की लड़ाई नहीं लड़ रहे। न तो मैं आपके ऊपर अपने विचार थोप सकता हूं और न ही आप मेरे ऊपर अपने विचार थोप सकते हैं। हम लोग एक दूसरे प्रभावित जरूर हो सकते हैं।) मेरे नीचे वाले लेख पर कॉमनमैन ने बड़ी तीखी प्रतिक्रिया दी है। हालांकि बेचारे अपने असली नाम से ब्लॉग की दुनिया में आने से शरमाते हैं। वह कहते हैं कि हिंदुओं को गलियाने का ठेका मेरे या मोहल्ला के अविनाश जैसे लोगों ने ले रखा है। शायद आप सभी ने एक-एक लाइन मेरे ब्लॉग पर पढ़ी होगी, कहीं भी किसी भी लाइन में ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई है। फिर भी साहब का गिला है कि ठेके हम लोगों के पास है। आप पंथ निरपेक्षता के नाम पर किसी को भी गाली दें लेकिन आप जैसे लोगों को पकड़ने या कहने वाला कोई नहीं है। अलबत्ता अगर कोई सेक्युलरिज्म की बात करता है तो आप जैसों को बुरा लगता है। अब तो बाबा साहब आंबेडकर को फिर से जन्म लेकर भारतीय संविधान का पुनर्लेखन करना पड़ेगा कि भाई हम

भारतीय संस्कृति के ठेकेदार

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कल मैं अविनाश के मोहल्ले (http://mohalla.blogspot.com)में गया था। वहां पर एक बढ़िया पोस्ट के साथ अविनाश हाजिर थे। उनके लेख का सार यह था कि किस तरह उनके मुस्लिम सहकर्मियों ने दीवाली की छुट्टी के दौरान काम करके अपने हिंदू सहकर्मियों को दीवाली मनाने का मौका दिया। यानी त्योहार पर हर कोई छुट्टी लेकर अपने घर चला जाता है तो ऐसे में अगर उस संस्थान में मुस्लिम कर्मचारी हैं तो वे अपना फर्ज निभाते हैं। यह पूरे भारत में होता है और अविनाश ने बहुत बारीकी से उसे पेश किया है। लेकिन मुझे जो दुखद लगा वह यह कि कुछ लोगों ने अविनाश के इतने अच्छे लेख पर पर भी अपनी जली-कटी प्रतिक्रिया दी। उनमें से एक महानुभाव तो कुछ ऐसा आभास दे रहे हैं कि हिंदू महासभा जैसे साम्प्रदायिक संगठन से बढ़कर उनकी जिम्मेदारी है और भारतीय मुसलमानों को पानी पी-पीकर गाली देना उनकी ड्यूटी है। यह सज्जन कई बार मेरे ब्लॉग पर भी आ चुके हैं और तमाम उलूल-जुलूल प्रतिक्रिया दे चुके हैं। इन जैसे तमाम लोगों का कहना है कि मुसलमानों ने कभी भारतीय संस्कृति को नहीं अपनाया और न यहां के होकर रहे। मैं नहीं जानता कि यह सजज्न कौन हैं और कहां रहते हैं। लेकि

हम सभी को रोशनी की जरूरत है...

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आप सभी बलॉगर्स को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। उनका भी शुक्रिया जिन्होंने मेरे लेखों को पढ़ने के बाद यहां पर या ई-मेल के जरिए प्रतिक्रिया के बहाने दीपावली की शुभकामना दी। उम्मीद है हम लोगों का यह कारवां इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा। (आमीन)

Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब

मेरे ही साथी भाई, धीरेश सैनी ने अपने ब्लॉग पर एक गांधीवादी अनुपम मिश्र के सेक्युलरिज्म का भंडाफोड़ किया है। उस पर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं भी उन्हें मिली हैं। क्यों न आप लोग भी उस लेख को पढ़ें। ब्लॉग का लिंक मैं यहां दे रहा हूं। Ek ziddi dhun: सड़ांध मार रहे हैं तालाब

प्लीज, उन्हें हिंदू आतंकवादी न कहें

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कुछ जगहों पर हुए ब्लास्ट के सिलसिले में इंदौर से हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर बहुत सख्त प्रतिक्रिया (tough reaction) देखने को मिली। इनकी गिरफ्तारी से बीजेपी और आरएसएस के लोगों ने एक बहुत वाजिब सवाल उठाया है और उस पर देशव्यापी बहस बहुत जरूरी है। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद न्यूज चैनलों और कुछ अखबारों ने जो खबर दिखाई और पढ़ाई, इनके लिए hindu terrorist यानी हिंदू आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल किया। यह ठीक वही पैटर्न था जब कुछ मुस्लिम आतंकवादियों के पकड़े जाने पर पहले अमेरिका परस्त पश्चिमी मीडिया (western media) ने और फिर भारतीय मीडिया ने उनको इस्लामी आतंकवादी (islamic terrorist) लिखना शुरू कर दिया। बीजेपी के बड़े नेता यशवंत सिन्हा ने 24 अक्टूबर को एक बयान जारी कर इस बात पर सख्त आपत्ति जताई कि हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं को हिंदू आतंकवादी क्यों बताया जा रहा है। सिन्हा ने अपने बयान में यह भी कहा कि बीजेपी के प्राइम मिनिस्ट इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यह कई बार कह चुके हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म या जाति नहीं ह

जिंदगी क्‍यों अधूरी हैं

कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि- हम दुनिया में क्‍यों आये अपने साथ ऐसा क्‍या लायें जिसके लिए घुट-घुट कर जीते हैं दिन रात कडवा घूँट पीते हैं क्‍या दुनिया में आना जरूरी हैं अगर हैं,तो फिर जिंदगी क्‍यों अधूरी हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि, बच्‍चे पैदा क्‍यों किये जाते हैं, पैदा होते ही क्‍यों छोड दिये जाते हैं, मॉं की गोद बच्‍चे को क्‍यों नहीं मिलती ये बात उसे दिन रात क्‍यों खलती क्‍या पैदा होना जरूरी हैं अगर हैं,तो फिर जिंदगी क्‍यों अधूरी हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि, हम सपने क्‍यों देखते हैं सपनों से हमारा क्‍या रिश्‍ता हैं जिन्‍हे देख आदमी अंदर ही अंदर पिसता हैं क्‍या सपने देखना जरूरी हैं अगर हैं,तो फिर जिंदगी क्‍यों अधूरी हैं। कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि, इंसान-इंसान के पीछे क्‍यों पडा हैं जिसे समझों अपना पही छुरा लिए खडा हैं अपने पन की नौटंकी क्‍यों करता हैं इंसान इंसानियत का कत्‍ल खुद करता हैं इंसान क्‍या इंसानिसत जरूरी हैं अगर हैं,तो फिर जिंदगी क्‍यों अधूरी हैं। (इस सोच का अभी अंत नही हैं) -जतिन, बी.ए.(आनर्स) प्रथम वर्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, भीमराव अंबेडकर कॉलेज, दिल्‍ली विश्विद

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है

जिनकी दिलचस्पी साहित्य में है और जिन्हें महाभारत सीरियल के कुछ संवाद अब तक याद होंगे, उन्होंने राही मासूम रजा का नाम जरूर सुना होगा। राही साहब की एक नज्म – मेरा नाम मुसलमानों जैसा है - के बारे में मैं कई लोगों से अक्सर सुना करता था लेकिन किसी ने न तो वह पूरी नज्म सुनाई और न हीं कोशिश की कि मैं उसे पूरा पढ़ सकूं। अलीगढ़ से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका वाड्मय ने अभी राही साहब पर पूरा अंक निकाला है। जहां यह पूरी नज्म मौजूद है। मैं उस पत्रिका के संपादक डॉ. फीरोज अहमद का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने उस नज्म को तलाशा और छापा। वह पत्रिका ब्लॉग स्पॉट पर भी है। आप खुद भी वहां जाकर पूरा अंक पढ़ सकते हैं। उसी अंक में कैफी आजमी साहब की मकान के नाम से मशहूर नज्म दी गई है। वह भी मौजूदा हालात के मद्देनजर बहुत सटीक है। इसलिए उसे भी दे रहा हूं। इसके अलावा सीमा गुप्ता की भी दो रचनाएं हैं, जिन्हें आप जरूर पढ़ना चाहेंगे। मेरा नाम मुसलमानों जैसा है - राही मासूम रजा मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो। मेरे उस कमरे को लूटो जिस में मेरी बयाज़ें जाग रही हैं और मैं जिस में तुलसी की रामायण से सरगोशी कर के

आतंकवादियों को पहचानो

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मुंबई (Mumbai) जल रही है और तमाम राजनीतिक दल राज ठाकरे को हीरो बनाने में लगे हुए हैं। वह पार्टियां जो ठाकरे के खिलाफ आवाज उठा रही हैं उनके स्वर भी इतने मुखर नहीं है। पिछले एक साल से यह शख्स अपनी राजनीतिक दुकानदारी चमकाने के लिए मुंबई सिर्फ मराठियों का राग छेड़े हुए है। इस बार इसकी शुरुआत फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के घर पर पथराव करके और फिर उनकी पत्नी जया बचच्न के खिलाफ घटिया बयानबाजी से हुई। उन्हें चूंकि अभी मुंबई में अभिषेक बच्चन को स्टैंड कराना है तो वे ठाकरे खानदान से बैर मोल नहीं ले सकते, इसलिए माफी-तलाफी के बाद बात खत्म हो गई। लेकिन इसके बाद से ठाकरे खानदान की बदमाशी बढ़ गई। ठाकरे खानदान के लिए अलगाववादी आंदोलन (separatist movement )चलाना नया नहीं है। उन्हें ऐसे आंदोलनों की खेती करना आता है। बाल ठाकरे से लेकर राज ठाकरे और बीच में उद्धव ठाकरे तक इतिहास गवाह है कि इस खानदान ने मुंबई को बांटने के अलावा कुछ नहीं किया। इस बात पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है कि मुंबई सबकी है। उसकी तरक्की में यूपी-बिहार से गए लोगों का उतना ही हाथ है जितना वहां के मराठियों का। यह इसी तरह की बयानबाजी ह

मुसलमान को उसके हाल पर छोड़ दीजिए

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दिल्ली के जामिया नगर इलाके में बटला हाउस एनकाउंटर (batla house encounter) को लेकर राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। एनकाउंटर के कुछ दिनों तक तो राजनीतिक दल खामोश रहे और इस दौरान बटला हाउस और आजमगढ़ के तमाम मुसलमान आतंकवादी (muslim terrorist) और पाकिस्तानी करार दे दिए गए। अभी जब दिल्ली समेत कुछ राज्यों में चुनाव की घोषणा हुई और जिसे लोकसभा से पहले मिनी आम चुनाव कहा जा रहा है, राजनीतिक दलों ने मुसलमानों का दिल जीतने के लिए इस मुद्दे को उठा दिया। कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर सभी ने एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग कर डाली। सबसे मुखर समाजवादी पार्टी नजर आई। इसके नेता अमर सिंह ने पहले तो एनकाउंटर में मारे गए या शहीद हुए (आप जो भी कहना चाहें) दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के परिवार को दस लाख रुपये का चेक देने में अपनी फजीहत कराई। मैं समझता हूं कि समाजवादी पार्टी औऱ अमर सिंह की ओर से यह विवाद जानबूझकर पैदा किया गया, जिससे यूपी के मुसलमानों को संदेश दिया जा सके। इसके बाद अमर सिंह तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को लेकर बटला हाउस इलाके में पहुंचे और रात को एक रैली कर घटना की न्या

नीलम तिवारी की खुदकुशी के बहाने

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यह पोस्ट जब मैं आज लिखने बैठा हूं तो माहौल बहुत गमगीन है। इसलिए नहीं कि मेरे साथ, मेरे परिवार, मेरे मित्रों या सहयोगियों के साथ कोई ऐसी-वैसी बात हुई है। दरअसल, कायदे से इसे तो मुझे कल ही लिखना चाहिए था लेकिन कल मैं इतने रंजो-गम (grief and sorrow)में था कि लिखने की ताकत न जुटा पाया। नीलम तिवारी, यही नाम था उसका। राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके में नीलम ने दो दिन पहले खुदकुशी (suicide)कर ली। अखबारों में खुदकुशी की खबरें कितनी जगह पाती हैं, यह आप लोगों को मालूम है। लेकिन यह खुदकुशी की खबर अलग थी और सिर्फ नवभारत टाइम्स में इसे पहले पेज पर जगह मिली थी। नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर पंकज त्यागी ने इस खबर को फाइल करते हुए लिखा था कि आर्थिक मंदी (recession) से जुड़ी राजधानी दिल्ली में खुदकुशी की यह पहली खबर है। पंकज की खबर में कहा गया था कि आईसीआईसीआई बैंक में काम करने वाली नीलम तिवारी लोन दिलाने का काम करती थीं लेकिन आर्थिक मंदी की वजह से उनका यह काम बंद हो चुका था। लोग लोन नहीं ले रहे थे। नीलम द्वारका के एक प्लैट में अपनी बूढ़ी मां और १३ साल की बेटी नेहा के साथ रह रही थीं। उनके पत

यह संकट और आज के सवाल

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अमेरिकी आर्थिक मंदी (US recession) का जिक्र इस ब्लॉग पर पहले किया जा चुका और उससे जुड़ी भारतीय कंपनियों (Indian companies) के प्रभावित होने की बात उसमें कही गई थी। जब मैं यह पोस्ट लिखने बैठा तो तस्वीर पर छाई धुंध धीरे-धीरे साफ होने लगी है और तमाम बुरी खबरों से आपका सामना भी हुआ होगा। भारत में आई आर्थिक मंदी की सबसे पहली मार उड्डयन उद्योग (aviation idustry) पर पड़ी है यानी वो कंपनियां जो हवाई जहाज उड़ाने के लिए अभी दो-चार साल पहले ही मैदान में उतरी थीं। शराब का कारखाना चलाने वाले, चिटफंड कंपनियां चलाने वाले अचानक हवाई जहाज में यात्रियों को ढोने वाली कंपनी खोलकर बैठ गए। जनता का पैसा था। इनके काम आ गया। प्राइवेट बैंक लोन देने के लिए तैयार बैठे थे। किसान को बिना घूस दिए लोन नहीं मिलता औऱ यहां प्राइवेट बैंक के ceo नई खुली कंपनियों के सीईओ को घूस खिलाने को तैयार थे कि लोन ले ले, हवाई जहाज खरीद लो। भारत के लोगों को सपने बेचो। फिर एक दिन उसको तहस-नहस कर डालो। भारत को मुट्ठी में बंद करने की जो हसीन शुरुआत देश के कुछ बड़े औद्योगिक घरानों (big industrial houses) ने की थी, उससे अंधो को भी चारो तर

तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं

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वैसे तो नीचे वाला लेख मैंने यह सोचकर लिखा था कि इसकी भावनाओं को आप लोग अच्छी तरह समंझेंगे। पर कुछ साथी कमेंट देने के दौरान भटक गए या उन्हें बात समझ में नहीं आई। इस लेख पर आए सभी कमेंट में से दो लोगों के कमेंट पर मैं भी कुछ कहना चाहता हूं। हालांकि इन दोनों लोगों ने अपनी असल पहचान छिपा रखी है और कोई इनका असली नाम नहीं जानता। एक साहब कॉमन मैन बनकर और एक साहब ने नटखट बच्चा के नाम से यहां कमेंट करके गए हैं। इनका कहना है कि मुसलमान लोग सिमी की निंदा नहीं कर रहे हैं। यह अत्यंत ही सफेद झूठ है। तमाम मुस्लिम नेताओं ने और आम मुसलमानों ने ऐसे तमाम संगठनों की निंदा की है जो आतंकवाद के पोषक हैं। दिल्ली से लेकर मुंबई में प्रदर्शन हुए हैं। शायद इन दोनों भाइयों ने भी वो खबरें चैनलों और अखबारों में फोटो देखेंगे जिसमें आम मुसलमान अपने दो खास ट्रेडमार्क दाढ़ी और टोपी के साथ नजर आ रहा है। आतंकवाद किसी भी रूप में और किसी भी धर्म का निंदनीय है। सिमी के घटनाक्रम पर अगर इन दोनों महानुभावों ने नजर डाली होगी। बैन तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर भी लग चुका है लेकिन कोई आज तक साबित नहीं कर पाया कि यह संगठन

धर्म किसका है

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अगर इधर आपने अखबारों को गौर से पढ़ा होगा तो यकीनन कुछ सुर्खियां आपकी नजरों से गुजरी होंगी, हालांकि वे बड़ी खबरें नहीं थीं लेकिन कुछ अखबारों में उनको जगह मिली। क्या थी वें खबरें - बिहार में एक मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की कोशिश करने वाले एक दलित की हत्या कर दी गई। कई लोग घायल हो गए। आंध्र प्रदेश का अदिलाबाद इलाका भयानक सांप्रदायिक हिंसा (communal violence) से झुलस रहा है। यहां दो दिनों में 15 लोगों को जिंदा जला दिया गया। मरने वाले सभी लोग मुसलमान थे। इसमें सबसे लोमहर्षक कांड जो हुआ है वह है एक ही परिवार के नौ लोगों को जिंदा जलाने का मामला। ये सारी घटनाएं दुर्गा पूजा से जुड़ी हुई हैं। बिहार की घटना नालंदा जिले में हुई। वही नालंदा जहां कभी ज्ञान की गंगा बहती थी और दुनिया को रास्ता दिखाने वाले विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। वहां के एक मंदिर में प्रसाद चढ़ाने वालों की लाइन लगी हुई थी। लाइन में दलित लोग भी लगे हुए थे। लेकिन उनका नंबर नहीं आ रहा था। लाइन में लगे कारू पासवान ने इस पर पुजारी से आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि हमने भी मंदिर में चंदा दिया है। पुजारी ने उसे धमकाया कि पहला हक सवर्णो क

आखिर ख्वाब का दर बंद क्यों है?

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मशहूर शायर शहरयार की यह रचना मुझे इतनी पसंद है कि मैं जब भी इसे पढ़ता हूं, बेहद इमोशनल हो जाता हूं। यहां मैं अपने ब्लॉग पर उस रचना को उन लोगों के लिए पेश करना चाहता हूं जिनकी नजरों से यह नहीं गुजरी है। शहरयार साहब की शायरी मौजूदा वक्त की हकीकत को बयान करती नजर आती है, आप अपने तरीके से इसके बारे में सोच सकते हैं। इस रचना का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि मौजूदा हालात में तमाम शायर और अदीब के लोगों को जो आवाज उठानी चाहिए, वह नहीं उठा रहे हैं। हिंदी और उर्दू में साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त है, इनमें से कोई रोमांटिक शायरी में डूबा हुआ है तो कोई इस कदर संवेदनशील हो गया है कि उसको आम आदमी के सरोकार नहीं दिखाई दे रहे हैं। वह अपनी मां, बहन और भाई में अपनी संवेदना के बिम्ब तलाश रहा है। कई लोग तरक्की पसंद होने का दंभ भर रहे हैं लेकिन बड़े मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत से ही फुरसत नहीं है। बहरहाल, शहरयार की कलम न रूकी है न रूकेगी...मुझे तो ऐसा ही लगता है। और हां, शहरयार की यह रचना मैं वाङमय पत्रिका से साभार सहित ले रहा हूं, जहां मूल रूप से इसका प्रकाशन हुआ है। देखिए वो क्या कह रहे हैं...

बोलो, अंकल सैम, पूंजीवाद जिंदाबाद या मुर्दाबाद

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एक कम्युनिस्ट देश (communist countries) के रूप में जब रूस टूट रहा था तो उस वक्त अति उत्साही लोगों ने लहगभग घोषणा कर दी थी कि पूंजीवादी देश (capitalist countries) ही लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं। अमेरिका को इस पूंजीवादी व्यवस्था (capitalism) का सबसे बड़ा रोल मॉडल बताया गया। रूस से टूटकर जो देश अलग हुए और उन्होंने कम्युनिज्म मॉडल को नहीं अपनाया, उन देशों ने कितनी तरक्की की या आगे बढ़े, इस पर कोई चर्चा नहीं की जाती। लेकिन अब अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ अमेरिका में ही आवाज उठने लगी है। वहां के प्रमुख अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इस सिलसिले में कई लेख प्रकाशित हुए जिसमें मौजूदा आर्थिक मंदी, वहां के बैंको के डूबने की वजह, इराक में जबरन दादागीरी के मद्देनजर पूंजीवादी व्यवस्था को जमकर कोसा गया है। इसके लिए जॉर्ज डबल्यू बुश की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इतना ही नहीं उसमें कहा गया है कि कहां तो हम रोल मॉडल बनने चले थे और कहां अब हमारा अपना तानाबाना ही बिखर रहा है। हमारी नीतियों की वजह से कुछ अन्य देश भी मंदी (recession) का शिकार हो रहे हैं। कल तक जो देश हमारे लिए एक आकर्षक बाजा

इस ब्लॉग पर ताजा खबरें भी

आप कुछ सोच रहे होंगे, हम जानते हैं। ब्लॉग पर ताजा खबरें (latest news) आखिर क्यों? मैं आपसे ही पूछना चाहता हूं क्यों नहीं? यह ठीक है कि ब्लॉग पर अपने विचार और यहां आने वाली टिप्पणियों का ही महत्व है तो बाकी ताम-झाम क्यों? दरअसल, मेरी कोशिश है कि आपका ब्लॉग हर नजरिए से परिपूर्ण हो, अगर कुछ पढ़ते-पढ़ते आपको ताजा खबरों की जरूरत महसूस हो तो कहीं और जाने की जरूरत नहीं है, ताजा खबरें वह भी live यहां हाजिर हैं। तमाम अंग्रेजी ब्लॉगों में इस तरह की कोशिश की गई है और उसका feedback भी बहुत बेहतर मिला है। इन खबरों को लेकर अपना कोई नजरिया (opinion)न बनाएं क्योंकि वह सिर्फ सूचना (information) भर हैं, जाहिर है कि इस तरह का डिजिटल मीडिया (digital media)अमेरिका (US) के ही साये में पल और बढ़ रहा है तो हो सकता है कि वह खबर आपके नजरिए से तालमेल न खाए। इसलिए उसे सूचना की ही नजर से देखें। उम्मीद है कि यह डिजिटल कोशिश पसंद आएगी। क्या करना हैः बस ब्लॉग के दाहिने तरफ देखिए, मेरे प्रोफाइल के ठीक नीचे तमाम विडियो दिखाई देंगे, किसी पर भी क्लिक करके आप अपनी मनपसंद खबर (या सूचना) जान सकते हैं।

...शुक्रिया...

आखिरकार काफी जांच-पड़ताल के बाद 10 अक्टूबर 2008 को blogspot.com ने मेरे ब्लॉग का ताला खोल दिया गया। मैं यही कह सकता हूं कि शुक्रिया। हालांकि उनका यह कदम एकदम फिजूल था, जिसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी है लेकिन माफ तो आप लोग ही करेंगे, जिन्हें इसके चलते असुविधा हुई। बहरहाल, सभी का शुक्रिया। तो, फिर एक बार जुटते हैं अपने काम में...

क्षमा चाहता हूं

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पता नहीं ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम (BLOGSPOT.COM) वालों को क्या लगा कि उन्होंने मेरे ब्लॉग को लॉक कर दिया है। इस दौरान कई लोग आए और यूं ही लौट गए, कुछ ने वहां संदेश पढ़ने के बाद ब्लॉग को explore किया। माजरा क्या है – ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम को लग रहा है कि इस ब्लॉग पर spaming करने के लिए लिंक दिए गए हैं, क्योंकि सारे लिंक एक ही साइट पर जा रहे थे। दरअसल, यह चिट्ठाजगत की वजह से हुआ, जिसके कई सारे लिंक मेंने यहां अलग-अलग वजहों से दिए थे लेकिन अब एक लिंक को छोड़कर बाकी सब हटा लिया है। ब्लॉग स्पॉट को भी इस बारे में सूचित किया गया है, अब देखना है कि भाई लोग कब ताला खोलते हैं जिससे आपको यहां आने में हो रही असुविधा खत्म हो। बहरहाल, मैं उन तमाम मित्रों का आभारी हूं जिन्होंने मुझे इसके लिए ईमेल किए और रजिया राज़ ने तो असुविधा के बाद भी टिप्पणी लिखी। कृपया सहयोग बनाए रखें। एक और बात – इस ब्लॉग पर अगर कोई कुछ लिखना चाहता है तो उसका स्वागत है। आप मुझे अपना लेख ईमेल के जरिए भेज सकते हैं। लेख के लिए कोई नीति तय नहीं की गई है लेकिन एक बात जो मैं साफ करना चाहूंगा कि कृपया सामाजिक सरोकार (social concerns)को अगर

बच्चे और दम तोड़ती संवेदनहीनता

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बच्चों को लेकर समाज संवेदनहीन (Emotionless)होता जा रहा है। बच्चे घर से निकलते हैं स्कूल जाने के लिए और बुरी संगत में पडक़र या तो नशा (Drug Addict) करने लगते हैं या फिर अपराधी गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं। शहरों में मां-बाप पैसा कमाने के चक्कर में बच्चों पर नजर नहीं रख पाते जबकि वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन समय नहीं है। दफ्तर से घर और घर से दफ्तर, बीच में कुछ देर के लिए टीवी पर थर्ड क्लास खबरों और प्रोग्राम से समय काटना, बस यही रोजमर्रा की जिंदगी हो गई है। पत्नी अगर वर्किंग नहीं है तो घर के तमाम काम के अलावा बच्चों को संभालना सिर्फ उसके अकेले की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों इस तरह की कुछ समस्याओं पर एक समाजशास्त्री (Sociologist) से बात होने लगी। उसका कहना था कि अगर आपकी लाइफ में आटा-दाल-चावल और नौकरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है तो भूल जाइए कि आप अपने बच्चे को किसी मुकाम तक पहुंचा सकेंगे। परिवार नामक संस्था को जिंदा रखना है तो बच्चे का ध्यान रखा जाना सभी की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। बच्चा स्कूल जाता है, वहां कभी उसके चेहरे को लेकर तो कभी उसके बाल को लेकर, कभी धर्म और भाषा को लेकर दूसरे बच्चे भद्

कंझावला के किसान

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राजधानी दिल्ली में एक गांव है जिसका नाम कंझावला है। यहां के किसनों की जमीन (Farmers Land) काफी पहले डीडीए ने अपनी विभिन्न योजनाओं के लिए Aquire कर ली थी। उस समय के मूल्य के हिसाब से किसानों को उसका मुआवजा भी दे दिया गया था। अब दिल्ली सरकार जब उसी जमीन पर कई योजनाएं लेकर आई और जमीन का रेट मौजूदा बाजार भाव से तय कर कई अरब रुपये खजाने में डाला लिए तो किसानों की नींद खुली और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। पहले तो ये जानिए कि दिल्ली के किसान (नाम के लिए ही सही) की स्थिति बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा के किसान जैसी नहीं है, जहां के किसान पर काफी कर्ज है और उसे मौत को गले लगाना पड़ता है। दो जून की रोटी का जुगाड़ वहां का किसान मुश्किल से कर पाता है और धन के अभाव में उसके फसल की पैदावार भी अच्छी नहीं होती है। दिल्ली के किसान तो आयकर देने की स्थिति में हैं, यह अलग बात है कि देते नहीं। आप दिल्ली के किसी भी गांव में चले जाइए, आपको जो ठाठ-बाट वहां दिखेगा, वैसा तो यूपी-बिहार से यहां आकर कई हजार कमाने वालों को भी नसीब नहीं है। सरकार से अपनी जमीन का मुआवजा लेने के बाद दिल्ली के किसान न

कैसे कहें खुशियों वाली ईद

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इस बार की ईद (Eid) कुछ खास थी, इस मायने में नहीं कि इस बार किसी मुल्ला-मौलवी (Clergy) ने इसे खास ढंग से मनाने का कोई फतवा जारी किया था। खास बात जो तमाम लोगों ने महसूस की कि लोग ईद की मुबारकबाद देने के बाद यह पूछना नहीं भूलते थे कि खैरियत से गुजर गई न? पिछले साल की ईद में यह बात नहीं थी। इस बार मस्जिद में ईद की नमाज पढ़ने गए लोग इस जल्दी में थे कि किस तरह जल्द से जल्द घर पहुंच जाएं, दिल्ली की जामा मस्जिद (Jama Masjid) में पहले के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं थी। जामा मस्जिद, चांदनी चौक, दरियागंज इलाके के व्यापारियों का कहना था कि ईद से तीन दिन पहले वे जो Business करते थे, वह इस बार नहीं हुआ। यानी बिजनेस के नजरिए से नुकसान सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं बल्कि हिंदू व्यापारियों का भी हुआ है। साजिश रचने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि एसी घटनाएं किसी एक समुदाय की खुशी या नाखुशी का बायस नहीं बनतीं बल्कि उसकी मार चौतरफा होती है और उस आग में सभी को जलना पड़ता है। कुछ नतीजे जरा देर से आते हैं। बहरहाल, दोपहर होते-होते तमाम गैर मुस्लिम मित्र घर पर ईद की मुबारकबाद देने आए। ये तमाम मित्र जो विचारधारा से कांग

नई दुनिया का शुरू होना

देश में चुनावी माहौल धीरे-धीरे अपने रंग में आ रहा है। कई शहरों में serial blast हो चुके हैं और हिंदू-मुसलमानों के बीच गलतफहमी पैदा करने की कोशिशें परवान चढ़ने लगी हैं। यह सब voting के वक्त फसल काटने की तैयारी का ही हिस्सा है। कुछ इन्हीं हालात में नई दिल्ली New Delhi से एक नए newspaper नई दुनिया का शुरू होना कुछ सुखद अहसास करा गया है। मैं नवभारत टाइम्स में काम करता हूं और आमतौर पर journalism के मक्का दिल्ली में इसका चलन कम ही है कि किसी दूसरे तारीफ की जाए। मैं अपने hawker को बहुत पहले ही कह चुका था कि मुझे २ अक्टूबर से ही नई दुनिया अखबार चाहिए। eid का त्यौहार होने के बावजूद सुबह सबसे पहले अखबार पढ़ने से ही की। हॉकर ने अपना वादा पूरा किया था। सबसे पहले नई दुनिया ही उठाया। पहले ही पेज पर प्रधान संपादक आलोक मेहता देश के कुछ अन्य जानी-मानी शख्सियतों के साथ अखबार के पत्रिका की प्रति हाथ में लिए हुए खड़े नजर आए। साथ में गुलजार, जावेद अख्तर, राजेंद्र यादव भी थे। मुझे लगा कि लगता है किसी मंत्री वगैरह ने टाइम नहीं दिया इसलिए किसी बड़े नेता की तस्वीर नहीं लगी है। लेकिन जैसे-जैसे बाकी पन्ने पलटे त

हम हिंदी ब्लॉगर्स

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हिंदी में ब्लॉगिंग (blogging in hindi) न करने का अफसोस मुझे लंबे अरसे से रहा है। तमाम मित्रों ने मेरे कहने पर ब्लॉग शुरू किए और काफी बेहतर ढंग से अब भी कर रहे हैं लेकिन मैं उनसे किए गए वायदे के बावजूद इसके लिए वक्त नहीं निकल पा रहा था। बहरहाल, अब किसी लापरवाही की आड़ न लेते हुए मैंने फैसला किया कि अपनी मातृभाषा में तो ब्लॉगिंग करना ही पड़ेगी। हिंदी में जिस तरह से रोजाना नए-नए ब्लॉग आ रहे हैं, उससे हिंदी काफी समृद्ध हो रही है और मेरी कोशिश भी उसमें कुछ योगदान करने है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर हिंदी के ब्लॉगों में लिखा क्या जाए? कुछ बहुत बेहतर ब्लॉग हैं जहां तमाम राजनीतिक.सामाजिक और धार्मिक विषयों पर बहस होती है लेकिन कतिपय पत्रकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं इन ब्लॉगों का क्या कुल मकसद यही है। आखिर English में विभिन्न विषयों में जो ब्लॉग हैं और जिनको खूब पढ़ा भी जाता है, वैसा कुछ हिंदी में क्यों नहीं है? हालांकि हिंदी में कुछ अच्छी पहल हुई है जिसमें आर. अनुराधा (लिंक – http://ranuradha.blogspot.com) का कैंसर पर पहला एसा ब्लॉग है जो हिंदी में है और कैंसर के मरीजों को संघर्ष की प्रेरण