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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत डरावना और उन्मादी है भारत का बहुसंख्यकवाद : यूसुफ किरमानी

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  भारत में अभिव्यक्ति की आजादी बहुत जल्द बीते हुए दिनों की बातें हो जाएंगी। भारत में दो चीजों के मायने बदल गए हैं। अभिव्यक्ति की आजादी कट्टरपंथियों की आजादी से तय हो रही है और प्रेस यानी मीडिया की आजादी सरकारी मीडिया की हदों से तय की जा रही है। लेकिन दोनों की आजादी को नियंत्रित करने वाली ताकत एक है, जिस पर हमारा ध्यान जाता ही नहीं है। भारत बहुसंख्यकवाद के दंभ की गिरफ्त में है। सरकारी संरक्षण में पला-बढ़ा बहुसंख्यकवाद भारत को उस दौर में ले जा रहा है, जहां से बहुत जल्द वापसी की उम्मीद क्षीण है। मान लीजिए कल को सत्ता परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन हो जाए तो भी बहुसंख्यकवाद ने जो फर्जी गौरव हासिल कर लिया है, उसका मिट पाना जरा मुश्किल है। क्योंकि सत्ता परिवर्तन के बाद जो राजनीतिक दल सत्ता संभालेगा, वह भी कमोबेश उसी बहुसंख्यकवाद को संरक्षित करने वाली पार्टी का प्रतिरूप है।       देश में 'तांडव' के नाम पर बहुसंख्यकवाद कृत्रिम तांडव कर रहा है और उसने मध्य प्रदेश में एक कॉमेडियन को बेवजह जेल में बंद करा दिया है। तांडव के नाम पर तांडव करने वाले और कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी को जेल में बं

किसान नहीं, हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने की राजनीति

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-यूसुफ़ किरमानी किसान आंदोलन की वजह से आम जनता में अपने हिन्दू वोटबैंक को बिखरने से रोकने के लिए भाजपा और आरएसएस अपने उसी पुराने नुस्खे पर लौटते दिखाई दे रहे हैं। यूपी-एमपी की प्रयोगशाला में इस पर दिन-रात काम चल रहा है। यूपी में चल रहे घटनाक्रमों पर आपकी भी नजर होगी। वहां एक तीर से कई शिकार किए जा रहे हैं।   बुलंदशहर के शिकारपुर कस्बे में गुरुवार को युवकों की एक बाइक रैली निकाली गई। रैली के दौरान उत्तेजक नारे लगाते हुए बाइक सवार युवक मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरे। मुस्लिम इलाके से इसकी प्रतिक्रिया नहीं आई। यूपी पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। हालांकि इस बाइक रैली का वीडियो वायरल है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने को यह रैली निकाली गई थी।  ऐसी ही बाइक रैली पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर और कई अन्य स्थानों पर निकाली गई और मस्जिदों के आगे इस रैली को रोककर उत्तेजक नारेबाजी की गई। मस्जिदों पर जबरन भगवा झंडा लगा दिया गया। टीवी चैनलों ने इस खबर को गायब कर दिया। सिर्फ कुछ अखबारों में इन दंगों और बाइक रैली की खबर छपी। यूपी ही नहीं देश के तमाम शहरों म

मेरी ज़िन्दगी का शाहीनबाग़ भी कम नहीं था: अरूणा सिन्हा

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लेखिका : अरूणा सिन्हा टीवी देखने का टाइम कहां था मेरे पास। जब तक बच्चे और ‘ये’ स्कूल-ऑफिस के लिए निकल नहीं जाते तब तक एक टांग पर खड़े-खड़े भी क्या भागना-दौड़ना पड़ता था। कभी यह चाहिए तो कभी वो - मेरा रूमाल कहां है? मेरे मोजे कहां हैं? तो नाश्ता अभी तक तैयार नहीं हुआ? बस यही आवाजें कान में सुनाई देती थीं और वो भी इतनी कर्कश मानो कानों में सीसा घुल रहा हो। इस आवाज से बच्चे भी सहमे रहते थे। पापा के रहने तक तो ऐसा लगता था मानो उनके मुंह में जुबान ही न हो। शादी को दस साल हो चुके थे। पहली रात ही इनका असली रूप सामने आ गया था। मैं मन में सपने संजोए अपनी सुहागरात में अकेली कमरे में इनके आने का इंतजार कर रही थी। नींद की झपकी आने लगी तो लेट गयी। लगभग दो बजे दरवाजा खुलने की आहट सुन मेरी नींद भरी आंखें दरवाजे की ओर मुड़ गयीं। लड़खड़ाते कदमों से अंदर दाखिल होते ही पहला वाक्य एक तमाचे की तरह आया - ‘बड़ी नींद आ रही है?’ आवाज की कर्कशता की मैं उपेक्षा कर गयी। लगा बोलने का अंदाज ऐसा होगा। क्योंकि हमारा कोई प्रेम विवाह तो था नहीं। मां-बाप ने जिसके साथ बांध दिया बंधकर यहां पहुंच गयी थी। शादी के लिए मुझे द

सुनों औरतों...हिन्दू राष्ट्र में शूद्र और मलेच्छ गठजोड़ पुराना हैः ज़ुलैख़ा जबीं

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“ हिन्दूराष्ट्र में औरतों की ज़िन्दगी के अंधेरों को शिक्षा के नूर से शूद्र और मलेच्छ (मुसलमान) ने मिलकर जगमग उजियारा बिखेरा है....." तमाम (भारतीय) शिक्षित औरतों , आज के दिन एहतराम से याद करो, उन फ़रिश्ते सिफ़त दंपति जोड़ों (सावित्रीबाई-जोतिबा फुले , फ़ातिमा शेख़- उस्मान शेख़) को जिनकी वजह से तुम सब पिछले डेढ़ सौ बरसों से देश और दुनियां में कामयाबी और तरक़्क़ी के झंडे लहराने लायक़ बनी हो... 1 जनवरी 1848  में पुणे शहर के गंजपेठ वर्तमान नाम फुलेवाड़ा में लड़कियों के लिए पहला स्कूल उपरोक्त दोनों जोड़ों के प्रयासों से उस्मान-फ़ातिमा शेख़ के घर में खोला गया था। ऐ औरतों, भारत के इतिहास में हमारे लिए - तुम्हारे लिए जनवरी खास महीना है। जिसमें फ़ातिमा शेख़ नो जोतिबा फुले के सपनों को परवान चढ़ाया।   हालांकि आप में से बहुतों को ये बात आश्चर्यचकित करनेवाली लगेगी...आप में से ज़्यादातर लोग सोचेंगे कि...."हमारी कही बात अगर सच होती तो आपके इतिहास में ज़रूर दर्ज होती , और आपको बताई भी जाती"... ?  आपका ये सोचना सही है कि आपको बताया नहीं गया..... लेकिन सवाल ये है के इतनी बड़ी

मध्य वर्ग को कपिल गूर्जर में जो एडवेंचर दिखता है वो बिल्कीस दादी में नहीं

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भारत का मध्यम वर्ग भारत का दुर्भाग्य बनता जा रहा है... -यूसुफ किरमानी भारत का मध्यम वर्ग दिवालिया होने के कगार पर पहुंचने के बावजूद हसीन सपने देख रहा है। उसकी याददाश्त कमजोर हो चुकी है लेकिन देशभक्ति का टॉनिक उसकी मर्दाना कमजोरी को दूर किए हुए है। साल 2020 के खत्म होते-होते पूरी दुनिया में भारत के फोटो जर्नलिस्टों के कैमरों से निकले दो फोटो की चर्चा हो गई लेकिन मध्यम वर्ग इसके बावजूद नींद से जागने को तैयार नहीं है। शाहीनबाग में सरेआम गोली चलाने वाले कपिल गूर्जर को जिस दिन बीजेपी में शामिल करने के लिए इस फर्जी राष्ट्रवादी पार्टी की थू-थू हो रही थी, ठीक उसी वक्त अमेरिका की वंडर वुमन बिल्कीस दादी का फोटो जारी कर उन्हें सबसे प्रेरणादायक महिलाओं में शुमार कर रही थी।  हालांकि बीजेपी ने छह घंटे बाद कपिल गूर्जर को पार्टी से बाहर निकालकर आरोपों से अपना पीछा छुड़ाया। लेकिन दुनियाभर में तब तक शाहीनबाग में फायरिंग करते हुए कपिल गूर्जर की पुरानी फोटो एक बार फिर से वायरल हो चुकी थी लेकिन तब उसके साथ वंडर वुमन की वो सोशल मीडिया पोस्ट भी वायरल हो चुकी थी, जिसमें उसने दादी का फोटो लगाया था।