किसान नहीं, हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने की राजनीति

-यूसुफ़ किरमानी

किसान आंदोलन की वजह से आम जनता में अपने हिन्दू वोटबैंक को बिखरने से रोकने के लिए भाजपा और आरएसएस अपने उसी पुराने नुस्खे पर लौटते दिखाई दे रहे हैं। यूपी-एमपी की प्रयोगशाला में इस पर दिन-रात काम चल रहा है। यूपी में चल रहे घटनाक्रमों पर आपकी भी नजर होगी। वहां एक तीर से कई शिकार किए जा रहे हैं। 







बुलंदशहर के शिकारपुर कस्बे में गुरुवार को युवकों की एक बाइक रैली निकाली गई। रैली के दौरान उत्तेजक नारे लगाते हुए बाइक सवार युवक मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरे। मुस्लिम इलाके से इसकी प्रतिक्रिया नहीं आई। यूपी पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। हालांकि इस बाइक रैली का वीडियो वायरल है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने को यह रैली निकाली गई थी। 





ऐसी ही बाइक रैली पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर और कई अन्य स्थानों पर निकाली गई और मस्जिदों के आगे इस रैली को रोककर उत्तेजक नारेबाजी की गई। मस्जिदों पर जबरन भगवा झंडा लगा दिया गया। टीवी चैनलों ने इस खबर को गायब कर दिया। सिर्फ कुछ अखबारों में इन दंगों और बाइक रैली की खबर छपी।


यूपी ही नहीं देश के तमाम शहरों में ऐसी रैलियां चंदा जमा करने के लिए आयोजित की जा रही हैं, लेकिन इनका मक़सद अलग है। रैलियों का नेतृत्व आरएसएस से जुड़े उसके फ्रंटल संगठन कर रहे हैं। 

 

बड़ा प्रदेश होने की वजह से यूपी में किसी भी घटनाक्रम का असर पूरे उत्तर भारत पर जरूर पड़ता है। किसान आंदोलन जिस तरह मोदी सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है, उसे हर तरह से बर्बाद करने की साजिश कई तरीकों से की जा रही है, जिसमें बाइक रैली निकालकर धार्मिक उन्माद फैलाने का मामला भी है।


भाजपा और आरएसएस चाहते तो राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने का अभियान शांतिपूर्वक चला सकते थे लेकिन बाइक रैलियों के जरिए वे हिन्दुओं को एकजुट करने और किसान आंदोलन को देशद्रोही साबित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। उनका इरादा धार्मिक वैमनस्य फैलाकर किसान आंदोलन को बहुसंख्यक समुदाय की मिल रही हमदर्दी को रोकना है।


मोदी सरकार के पास खुफिया जानकारी है कि समाज के तमाम वर्गों और खासतौर पर शहरी मध्य वर्ग धीरे-धीरे किसान आंदोलन से हमदर्दी दिखाने लगा है। उसकी हमदर्दी को रोकने का एक ही तरीका है कि उनका ध्यान धार्मिक मुद्दे के नाम पर कहीं और केन्द्रित कराया जाए। यूपी के शहर अगर इन बाइक रैलियों के जरिए जलाए गए तो लोग किसान आंदोलन को भूलकर इस बात को ज्यादा याद रखेंगे कि राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने के अभियान में बाधा डालने की कोशिश दूसरे समुदाय के लोगों ने की।


 भाजपा इन्ही साजिशों के सहारे सत्ता में पहुंची है और इस सफल प्रयोग को वह अलग-अलग रूपों में दोहराती रहती है। 


 

यूपी में नूरा कुश्ती के चरित्र


यूपी में एक नूरा कुश्ती भी चल रही है, जो इसी प्रयोगशाला की गतिविधि का हिस्सा है। वहां अचानक ही आम आदमी पार्टी और असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी  ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लमीन सक्रिय हो गए हैं। इन दोनों की वजह से किसान आंदोलन तो कमजोर होगा ही साथ ही राजनीति के नए समीकरण भी बनेंगे। दोनों को इसी मक़सद से यूपी में खड़ा किया जा रहा है।

 

यूपी चुनाव अभी थोड़ा दूर है लेकिन यूपी की राजनीति में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को रेस से बाहर करने के लिए दोनों को सक्रिय किया गया है। आम आदमी पार्टी दिल्ली का प्रयोग यूपी में करना चाहती है। दिल्ली से आप का विधायक सोमनाथ भारती महज स्कूल देखने जाए और योगी आदित्यनाथ की पुलिस उसे गिरफ्तार करके काजू-बादाम खिलाए तो सारा खेल समझा जा सकता है। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह आए दिन छोटे-छोटे मुद्दों पर गिरफ्तारी देते रहते हैं।


 आम आदमी पार्टी दिल्ली में किए गए अपने थर्ड क्लास विकास कार्यों का ढिंढोरा पीटकर यूपी में राजनीतक बिसात पर बैटिंग करना चाहती है। लेकिन एक तरह से वो भाजपा के तलवे चाटकर उसकी मदद के लिए ही यूपी में पहुंची है। उसे अच्छी तरह पता है कि अगर वह अपने कथित विकास के एजेंडे के जरिए यूपी के दो फीसदी मतदाताओं को भी अपनी तरफ मोड़ ले गई तो इससे कांग्रेस पार्टी का खात्मा होकर भाजपा को मदद मिलेगी। इसीलिए अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को जो राजनीतिक विश्लेषक भाजपा-आरएसएस की बी टीम बताते हैं वो गलत नहीं हैं। 


बीजेपी की बी टीम का हिस्सा असद्दुदीन ओवैसी भी हैं। हालांकि ओवैसी समर्थक इस आरोप को सिरे से खारिज कर देते हैं। बहरहाल, ओवैसी यह तो भूल ही गए कि भारत में अगर सिर्फ मुस्लिम राजनीति के सहारे किसी पार्टी को बढ़त मिली होती तो मुस्लिम लीग भारत में स्थापित हो चुकी होती।


 मुस्लिम लीग की राजनीति से तो उल्टा मुस्लिम वोट ही बंटा और उसकी वजह से कभी हिन्दू महासभा तो कभी भाजपा मजबूत होती रही। अब ओवैसी का अवतार हुआ है। उनसे भी भाजपा को ही मदद मिल रही है।



बिहार में ओवैसी फैक्टर अपना खेल दिखा चुका है। बिहार में ओवैसी की मुस्लिम राजनीति से किसे फ़ायदा हुआ? बेवकूफ से बेवकूफ शख़्स बता देगा कि ओवैसी की वजह से नीतीश कुमार और भाजपा ने हारी हुई बाज़ी जीत ली।


 

बिहार में ओवैसी ने बीएसपी से समझौता कर सीमांचल की मात्र पांच सीटें जीतीं थीं लेकिन कई सीटों पर तेजस्वी यादव की आरजेडी को बढ़त लेने से रोक दिया था। बिहार के बाद ओवैसी ने बंगाल का रूख किया है। वहाँ बीजेपी किसी भी क़ीमत पर ममता बनर्जी को हराना चाहती है। बंगाल में मुसलमान ममता के साथ है। ओवैसी बंगाल में बिहार पार्ट 2 खेलने गए हैं। अगर बंगाल में ओवैसी दस सीटें भी ले गए तो ममता बंगाल की लड़ाई हार जाएंगी। तो जीतेगा कौन...इस सवाल का जवाब मुश्किल नहीं है।


दरअसल, ओवैसी का हर प्रयोग भाजपा को मदद पहुंचाता है। ओवैसी ने आजतक कांग्रेस या कम्युनिस्टों से समझौता नहीं किया और न पहल की। ओवैसी में अगर हिम्मत है तो वो केरल में बिहार-बंगाल-यूपी जैसी पहल करके दिखाएं। वहां भी तो मुसलमानों की बड़ी आबादी रहती है। लेकिन ओवैसी को मालूम है कि जब वहां भाजपा की दाल नहीं गली तो भला ओवैसी की दाल केरल के पढ़े-लिखे मुस्लिम कैसे गलने देंगे।

 

बहरहाल, आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि आम आदमी पार्टी और ओवैसी अपनी राजनीतिक चालों को भाजपा के लिए कितना कारगर बना देंगे। हालांकि कांग्रेस का पतन उसकी अपनी खुद की वजहों से भी हो रहा है लेकिन ओवैसी और आप की राजनीति उसे यूपी में बढ़ने से रोक जरूर देंगे। 











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