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कश्मीर डायरी/ मुस्लिम पत्रकार

कांग्रेस और राहुल गांधी की हालत बेचारे मुसलमानों जैसी हो गई है।...जिन पर कभी तरस तो कभी ग़ुस्सा आता है। राहुल का आज का ट्वीट ही लें... वह फ़रमा रहे हैं कि भले ही तमाम मुद्दों पर मेरा सरकार के साथ मतभेद है लेकिन मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देने वाला देश है और वह कश्मीर में भी यही कर रहा है। राहुल के इस बयान की लाचारी समझी जा सकती है कि आरएसएस और भाजपा जिस तरह उनके पाकिस्तानी होने का दुष्प्रचार कर रहे हैं उससे आहत होकर उन्हें यह बयान देना पड़ा। हालाँकि राहुल चाहते तो बयान को संतुलित करने के लिए फिर से कश्मीर के हालात और वहाँ की जनता पर हो रहे अत्याचार पर चिंता जता देते। अपने निजी जीवन में मैं भी मुसलमानों को इस पसोपेश से जूझते देख रहा हूँ। ...किसी दफ़्तर में अगर दो या तीन मुस्लिम कर्मचारी आपस में खड़े होकर बात कर लें तो पूरे दफ़्तर की नज़र उन्हीं पर होती है। अग़ल बग़ल से निकल रहे लोग टिप्पणी करते हुए निकलेंगे...क्या छन रहा है...क्या साज़िश हो रही है...यहाँ भी एकता कर रहे हो...लेकिन ऐसे लोगों को किन्हीं सुरेश-मुकेश की

कश्मीर डायरी/ इतिहास से सीखो

कश्मीर डायरी/  बहुत पुरानी कहानी नहीं है .............................. इराक़ में सद्दाम हुसैन की हुकूमत थी। सद्दाम इराक़ के जिस क़बीले या ग्रुप से था वह अल्पसंख्यक है। इसके बावजूद उसका बहुसंख्यक शिया मुसलमानों पर शासन था। वहाबी विचारधारा से प्रभावित होने की वजह से इराक़ की बहुसंख्यक शिया आबादी पर उसका ज़ुल्म-ओ-सितम सारी हदें पार कर गया था। बहुसंख्यक होने के बावजूद शिया सद्दाम का विरोध इसलिए नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें अहिंसा के बारे में चूँकि जन्म से ही शिक्षा मिलती है तो वे सद्दाम का हर ज़ुल्म सह रहे थे। इसी दौरान अमेरिका ने सद्दाम को पड़ोस के शिया मुल्क ईरान पर हमले के लिए इस्तेमाल किया और अमेरिका की मदद से हमला कर दिया। एक साल तक लड़ाई चली। सद्दाम हार गया और पीछे हट गया। लेकिन इस बहाने अमेरिका इराक़ में जा घुसा। अमेरिका को इराक़ में जाकर यह समझ आया कि सद्दाम तो अल्पसंख्यक है, क्यों न यहाँ बहुसंख्यक शियों में से किसी को खड़ा करके उनकी कठपुतली सरकार बनाई जाए। अमेरिका ने इस नीति को लागू करना शुरू कर दिया। सद्दाम क़ैद कर लिया गया और इराक़ में बहुसंख्यक शिया हुकूमत क़ायम

गोदी मीडिया पर रवीश का चला बुलडोजर

गोदी मीडिया पर चला रवीश कुमार का बुलडोजर ................................................................... भारत आज रवीश कुमार Ravish Kumar बन गया है। भारतीय पत्रकारिता के सबसे बुरे दौर में रवीश को रेमन मैगसॉयसॉय पुरस्कार के लिए चुना जाना एक ऐसी ठंडी हवा की झोंके की तरह है जब आप डर, दबाव, आतंक के पसीने में तरबतर होते हैं। एक क्लोज ग्रुप में जिसमें रवीश भी हैं, उसमें एक मित्र ने टिप्पणी आज सुबह टिप्पणी की कि - गोदी पत्रकारों और गोदी पत्रकारिता पर बुलडोजर चल गया।...सचमुच यह टिप्पणी बताती है कि कुछ पत्रकार जिन मनःस्थितियों में गुजर रहे हैं, उनके लिए यह कितनी बड़ी खुशी का दिन है। ताज्जुब है कि प्रधानमंत्री समेत सत्तारूढ़ सरकार के किसी मंत्री संतरी को यह महसूस नहीं हुआ कि भारत का गौरव बढ़ाने के लिए वे भी रवीश को बधाई देते। हालाँकि वे हर चिंदी चोर को छोटा पुरस्कार या सम्मान पाने पर बधाई देना नहीं भूलते। हिंदी पत्रकारिता को वह सम्मान इस देश में नहीं प्राप्त है, जो अंग्रेजी या दूसरी क्षेत्रीय भाषा की पत्रकारिता को प्राप्त है। लेकिन एक अकेले बंदे ने आज तमाम मान्यताओं को ध्वस्त कर बताया कि