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फ़रवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देवताओं का वॉर रस प्रवचन

देवता आसमान से पुष्प वर्षा कर रहे हैं...आज वॉर रस पर प्रवचन का दिन है... देवता वॉर वाणी (War Sermons) कर रहे हैं...बच्चा जीवन में टाइमिंग का ही महत्व है।...कुछ कार्य का समय चुन लो...वॉर रस से मंत्रमुग्ध जनता को अगर शांति पाठ करने को कहोगे तो तुम्हें कच्चा चबा जाएगी लेकिन वॉर रस में अगर उसे पबजी गेम में भी अटैक बोलोगे तो वह ख़ुश हो जाएगी। टाइमिंग की कला जिसको आती है, वही वीर है। अच्छे टाइमिंग का ताजा उदाहरण देखो...कल वॉर मेमोरियल (War Memorial) का उद्घाटन हुआ, आज यानी 26 फ़रवरी को  भारतवर्ष की सेना ने अपने पड़ोस में जाकर कई किलो बम गिरा दिए...नोमैंस लैंड में क़रीब तीन सौ लोग मारे गए...कई आतंकी शिविर हमेशा के लिए तबाह हो गए। यही टाइमिंग है...वॉर रस में डूबी जनता को अपना टॉपिक और टॉनिक मिल गया है। सीआरपीएफ़ जवानों की तेरहवीं के दिन किए गए इस अटैक से संबंधित पक्षों ने कई हसरतें पूरी कर ली हैं। वॉर रस में डूबी जनता जश्न मोड में आ चुकी है। स्कूलों में पढ़ाई की जगह बच्चों में भी नारे लगवा कर वॉर रस का संचार किया जा रहा है। जब तक इस वॉर रस का ख़ुमार उतरेगा तो धर्म का रस तैयार है।

पुलवामा पर तमाम प्रयोगशालाओं की साजिशें नाकाम रहीं

पुलवामा ने हमें बहुत कुछ दिया। जहां देश के लोगों ने सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत पर एकजुट होकर अपने गम-ओ-गुस्से का इजहार किया, वहां तमाम लोगों ने नफरत के सौदागरों के खिलाफ खुलकर मोर्चा संभाला। पुलवामा की घटना के पीछे जब गुमराह कश्मीरी युवक का नाम आया तो कुछ शहरों में ऐसे असामाजिक तत्व सड़कों पर निकल आए जिन्होंने कश्मीरी छात्रों को, समुदाय विशेष के घरों, दुकानों को निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन सभी जगह पुलिस ने हालात संभाले। लेकिन इस दौरान सोशल मीडिया के जरिए भारत की एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसकी कल्पना न तो किसी राजनीतिक दल के आईटी सेल ने की थी न किसी नेता ने की थी। उन्हें लगा था कि नफरत की प्रयोगशाला में किए गए षड्यंत्रकारी प्रयोग इस बार भी काम कर जाएंगे। देश की जानी-मानी हस्तियों ने, लेखकों ने, इतिहासकारों ने, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने, पत्रकारों ने, कुछ फिल्म स्टारों ने और सबसे बढ़कर बहुत ही आम किस्म के लोगों ने अपील जारी कर दी कि अगर किसी जगह किसी कश्मीरी या समुदाय विशेष के लोगों को नफरत फैलाकर निशाना बनाया जा रहा है तो उनके दरवाजे ऐसे लोगों को शरण देने के

एक कविता शहीदों के नाम...

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पुलवामा की बर्फीली सड़क और छद्म युद्ध

जब आप इस वक्त गहरी नींद में हैं, तब कश्मीर के पुलवामा में उन जवानों की लाशों के टुकड़े जमा किए जा रहे हैं, जिन्हें आतंकी हमले में मार दिया गया... मेरी नींद भी गायब है...मैं उन 42 नामों की सूची को पढ़ रहा हूं, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। शहीदों की सूची में दूसरा ही नाम निसार अहमद का है... थोड़ा तसल्ली सी हुई कि चलो, भक्तों और भगवा ब्रिगेड को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा...कि मरने वाले एक ही धर्म या बिरादरी के थे...या इस्लामिक आतंकवाद ने सिर्फ एक ही धर्म वालों को मार दिया... जैश-ए-मोहम्मद या हिजबुल मुजाहिदीन सिर्फ एक ही धर्म या देश के दुश्मन नहीं है। दरअसल, वह मुसलमान और कश्मीरियत के दुश्मन हैं। ...जानते हैं इस हमले से कश्मीरी अवाम की आवाज कमजोर कर दी गई है। उनके साथ अब लिबरल लोग खड़े होने से छिटक जाएंगे।... हर हिंसक हमला बड़े आंदोलन को कमजोर कर देता है। खैर, ऐसे बहुत सारे निसार अहमद आज उन 42 लोगों में हो सकते थे, लेकिन बेचारे जब भर्ती किए जाएंगे, तभी तो ढेर सारे निसार अहमद ऐसी कुर्बानी देने को मिलेंगे।...यह एक शिकवा है, निसार अहमदों को जब भर्ती नहीं क