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मुस्लिम ब्रदरहुड लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग़ाज़ा: प्रतिरोध न बचा तो क्या बचेगा मेरी जान

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लोकतंत्र, मानवाधिकार, समानता, वसुधैव कुटुम्बकम इनको किसी म्यूज़ियम में सजा देना चाहिए। चंद अहम बातें। अमेरिका लोकतंत्र, मानवाधिकार और समानता की इतनी दुहाई देता है कि कई बार लगता है कि इस जैसा देश दुर्लभ है। हमारे बच्चों में  ग्रेट अमेरिकन ड्रीम की जो बातें भरी जाती है, उसमें इन दुर्लभ चीजों को गिनाया जाता है। लेकिन अब क्या हो रहा है? वहाँ की किसी भी यूनिवर्सिटी में फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले छात्रों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। उनको यूनिवर्सिटी से निकाला जाएगा। इसके बावजूद छात्र-छात्राएँ मान नहीं रहे। यूएस, यूके, कनाडा में लोग स्टारबक्स, केएफसी, मैकडोनाल्ड, डोमीनोज, प्यूमा आदि के आउटलेट में नहीं जा रहे हैं। अघोषित बहिष्कार। इसमें किसी ख़ास समुदाय या धर्म विशेष के लोग शामिल नहीं हैं। ये लोग सिर्फ़  फ़िलिस्तीन के समर्थन में हैं। फ़िलिस्तीन का संघर्ष किसी ख़ास समुदाय का संघर्ष नहीं है। यह उस तानाशाही और जायनिस्ट क़ब्ज़ाधारियों के विरोध का प्रतीक है जो फ़िलिस्तीन को मसल देना चाहते हैं।  अमेरिका में  जायोनीवाद लॉबी मज़बूत है। जैसे कनाडा में सिख लॉबी इतनी मज़बूत हैं

‘मुस्लिम साहित्य’ से धर्मांतरण सरकार का नया शिगूफ़ा

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मेरे घर में गीता है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास घर में बाल्मीकि रामायण है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है?  मेरे पास सत्यार्थ प्रकाश भी है तो क्या यह हिन्दू साहित्य है? क्या इनसे मेरा धर्मांतरण कराया जा सकता है? मुझे हिन्दू बनाया जा सकता है। इन किताबों में कहीं नहीं लिखा है कि इसके पढ़ने से किसी का धर्मांतरण हो जाएगा या उसका धर्मांतरण कराया जा सकता है। धार्मिक पुस्तकों के आधार पर  हिन्दू साहित्य और मुस्लिम साहित्य की नई परिभाषा यूपी की पुलिस गढ़ रही है। यूपी पुलिस ने दिल्ली के जामिया नगर से धर्मांतरण कराने के आरोप में जिन दो लोगों को पकड़ा है, उनके पास मुस्लिम साहित्य बरामद होने की बात कही गई है। ये खबर पुलिस ने अख़बारों में छपवाई है और ताज्जुब है कि मीडिया ने बिना सवाल किये उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर दिया है। क्या किसी मुस्लिम का अपने घर में क़ुरान, हदीस और दुआओं की किताब रखना अब इस देश में अपराध माना जाएगा? क्या क़ुरान, हदीस और दुआ की किताबें मुस्लिम साहित्य हैं?  यह सरकार अफ़ग़ानिस्तान में खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए दोहा कतर में तालिबानी लड़ाकों से बात कर रही है

ईरान में आ रहे हैं रईसी, परेशान हैं पूँजीवादी मुल्क और उनके पिट्ठू

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मुस्लिम राष्ट्रों में पाकिस्तान के बाद ईरान के चुनाव पर पूरी दुनिया की नज़र रहती है। ...तो वहाँ के नतीजे आ रहे हैं और तस्वीर साफ़ हो चुकी है। ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान भारत और पाकिस्तान में हैं। इसलिए इन दोनों देशों के मुसलमानों की नज़र भी ईरान के आम चुनाव पर है।  ईरान में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहीम रईसी को सबसे ज़्यादा वोट मिले हैं और उनका राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। वो सरकार के आलोचक रहे हैं और उन्हें सिद्धांतवादी माना जाता है। यानी एक शिया हुकूमत में लोकतंत्र कैसे चलाया जाना चाहिए, उन्हें सिद्धांतवादी या उसूली माना जाता है।ईरान में जिस तरह अल्पसंख्यकों (यहूदियों, सुन्नियों, सिखों) को अधिकार प्राप्त हैं, उसके वो प्रबल समर्थक हैं। वह करप्शन के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। पाकिस्तान में बीच बीच में सैन्य शासन भी आ जाता है लेकिन ईरान में 1978-79 की इस्लामिक क्रांति के दौरान शाह रज़ा पहलवी को उखाड़ फेंकने के बावजूद वहाँ कभी सेना ने सत्ता पर क़ब्ज़ा नहीं किया। ईरान में उस समय भी चुनाव हुए और आज भी जारी है। कौन हैं इब्राहीम रईसी ———————— इब्राहीम रईसी ईरान की सुप्रीम कोर्ट के चीफ़

मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त, जैसे उसे कोई सरोकार ही न हो

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उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ग्लेशियर फट गया। उत्तराखंड वालों को ही फ़िक्र नहीं। वहाँ की भाजपा सरकार को चिन्ता नहीं। सरकार और उत्तराखंड की जनता अयोध्या में मंदिर के लिए चंदा जमा करने में जुटी है। उसे ग्लेशियर से क्या मतलब?  पर्यावरण की चिंता करने वाली ग्रेटा थनबर्ग का मजाक उड़ाने से उत्तराखंड वाले भी नहीं चूके थे। ... बाकी भारत के लोगों का सरोकार भी अब पर्यावरण या ऐसे तमाम मुद्दों से कहाँ रहा।  जैसे इन्हें देखिए।... मुसलमानों, बहुजनों और ओबीसी को उन पर मंडरा रहे ख़तरे की चिन्ता ही नहीं है।  भाजपा-आरएसएस ने बहुजनों और ओबीसी आरक्षण को बहुत होशियारी से ठिकाने लगा दिया है। फिर भी ओबीसी, दलित भक्ति में लीन हैं... लेकिन मुसलमान भी कम लापरवाह नहीं हैं। मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त है। ख़ैर...हमारा मुद्दा आरक्षण नहीं है। कल यानी 6 फ़रवरी 2021 को किसानों ने चक्का जाम किया था।  चक्का जाम की ऐसी ही अपील शाहीनबाग़ आंदोलन के दौरान छात्र नेता और जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर शारजील इमाम ने पिछले साल भी की थी। लेकिन हुकूमत ने शारजील को देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया। जबकि उसने साफ़ साफ़ कहा था कि बिना

मुस्लिम ब्रदरहुड से बड़ी चुनौती है आरएसएस की

-विकास नारायण राय, पूर्व आईपीएस राहुल गाँधी की आरएसएस की मुस्लिम ब्रदरहुड से तुलना सटीक होते हुए भी ऐतिहासिक सतहीपन का शिकार नजर आती है| सबसे पहले, उन्होंने वैश्विक शांति के नजरिये से आकलन में वही गलती की है जो 2013 में मिश्र में मोहम्मद मोरसी की सरकार का तख्ता पलट होने देने में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की थी| पॉलिटिकल इस्लाम को अरब समाज के लोकतान्त्रिक परिदृश्य से ओझल नहीं किया जा सकता; न पॉलिटिकल हिंदुत्व को भारतीय समाज के! दूसरे, भारतीय समाज को आरएसएस के खतरे से चेताने के लिए उन्हें देशी जमीन का इस्तेमाल करना चाहिये था क्योंकि आरएसएस विश्व शांति को नहीं भारतीय समाज की शांति को खतरा है| आज मिश्र में ब्रदरहुड के साठ हजार लोग जेलों में हैं जबकि भारत में आरएसएस अपने आप में कानून बना हुआ है; इस लिहाज से आरएसएस कई गुना बड़ी चुनौती कहा जाएगा| अमेरिका में इसी महीने मिश्र में ब्रदरहुड सत्ता पलट पर न्यूयॉर्क टाइम्स के कैरो में ब्यूरो प्रमुख रहे डेविड किर्कपैट्रिक की किताब ‘इनटू द हैंड्स ऑफ़ द सोल्जर्स’ का प्रकाशन हुआ है| उनकी थीसिस के अनुसार, ब्रदरहुड शासन में अंततः लोकतान्त्रिक