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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

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यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का... अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है... शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया... मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के

शाहीनबाग का गणतंत्र...

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गणतंत्र क्या है... इसे बेहतर ढंग से दिल्ली के शाहीन बाग ने आज समझाया... मजमा...कोई गणतंत्र नहीं है जो कभी राजपथ पर तो कभी लाल किले की प्राचीर के सामने लगाया जाता है... मजमा...तमाम सुरक्षा घेरे में, तमाम सुरक्षाकर्मियों को सादे कपड़ों में बैठाकर नहीं लगाया जा सकता... मजमा...जो शाहीन बाग में स्वतः स्फूर्त है...नेचुरल है... मजमा...जो एक तानाशाह खास कपड़े वालों में देखता है... मजमा ...जो कोई इवेंट मैनेजमेंट कंपनी नहीं लगा सकती... मजमा...जो तानाशाह का न्यू यॉर्क में पैसे देकर कराया हाउडी इवेंट नहीं है... मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी गीतकार का बयान नहीं है जो उसे किसी तानाशाह में फकीरी के रूप में दिखता है... मजमा...जो किसी सरकारी फिल्मी हीरो का जुमला नहीं है जो तानाशाह के आम खाने के ढंग के रूप में देखता है... मजमा...जो उस लंपट तड़ीपार सरगना का ख्वाब है जिसे वह अपने भक्तों में तलाशता है... -यूसुफ़ किरमानी #AntiUrbanNaziDay #HappyRepublicDay #SaveConstitutionSaveIndia #ShaheenbaghRepublic #ShaheenBagh #RejectCAA #RejectNPR #RejectNR

शाहीनबाग में कहानी के किरदारों की तलाश

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कोई लेखक-लेखिका जब किसी जन आंदोलन में अपनी कहानियों और उपन्यासों के किरदारों को तलाशने पहुंच जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि शाहीन बाग का आंदोलन कहां से कहां तक पहुंच गया है। हिंदी की मशहूर उपन्यासकार औऱ कहानी लेखिका नासिरा शर्मा ऐसी ही एक रात शाहीन बाग में जा पहुंचीं और वहां बैठी महिलाओं और युवक-युवतियों में उन किरदारों को अलग-अलग रूप में पाया। वहां से लौटने के बाद उन्होंने कुछ किरदारों को कलमबंद भी किया। नासिरा शर्मा के उस रात शाहीन बाग पहुंचने के फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए थे। नासिरा वही लेखिका हैं जो ईरान में इस्लामिक क्रांति के दौरान वहां जा पहुंची थीं। वहां उस क्रांति के जनक आयतुल्लाह खुमैनी ने किसी महिला पत्रकार और लेखिका को पहला इंटरव्यू दिया था, जिसे उस समय (1982) भारत की नामी साहित्यिक पत्रिका सारिका ने प्रकाशित किया था। नासिरा शर्मा ने जेएनयू से पढ़ाई की है और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाया भी है। यहां पेश है उनका लेख जो एक महिला लेखक की नजर से इस आंदोलन को समझने की कोशिश भी है... मेरी दुनिया मेरे लोग... शाहीनबाग की वह रात मेरे लिए बोलने की नहीं, महसूस

गुंडों की पहचान

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मुँह पर साफ़ा बाँधे गुंडों की पहचान कैसे होगी वे सिर्फ जेएनयू में नहीं हैं वे सिर्फ एएमयू में नहीं हैं वे सिर्फ जामिया में नहीं हैं वे कहाँ नहीं हैं वे अब वहां भी है, जहां कोई नहीं है वे तो बिजनौर,मेरठ से लेकर मंगलौर तक में है वे चैनलों में हैं वे अखबारों में हैं वे मंत्रालयों में हैं वे एनजीओ में हैं वे कारखानों में हैं, वे रक्षा ठिकानों तक में हैं वे फिल्मवालों में हैं, गोया हर गड़बड़झाले में हैं वे नाजी राष्ट्रवाद के हर निवाले और प्याले में हैं तो क्या कपड़ों से करोगे इनकी पहचान इनके सिरों पर गोल टोपी भी नहीं इनके चेहरे पर दाढ़ी तक नहीं इनकी आंखों में सूरमा तक नहीं इन्होंने ऊंचा पायजामा भी नहीं पहना लड़कियों के चेहरे पर हिजाब भी नहीं फिर कैसे होगी इनकी पहचान सुना है आतंकी राइफल लेकर चलते हैं पर इनके हाथों में सिर्फ कुल्हाड़ी है कुछ के हाथों में लोहे के रॉड भी हैं कुछ के जबान पर उत्तेजक नारे हैं क्या कुल्हाड़ी से कोई विचार मरता है जेएनयू एक विचार है एएमयू एक विचार है जामिया एक विचार है शाहीन बाग एक विचार है विचार कुल्

कौन हैं क़ासिम सुलेमानी...एक किसान के बेटे का सैन्य सफ़र

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क़ासिम सुलेमानी अमेरिका और इस्राइल के मोस्ट वॉन्टेड की सूची में शामिल थे। ईरान इस जांबाज की शहादत को कभी भुला नहीं सकेगा। ईरान की मुख्य आर्मी ईरानी रिवोल्यू़नरी गार्ड्स (आईआरजीसी) का चीफ़ होने के बावजूद वह ईरान के सबसे प्रभावशाली शख़्स थे। ईरान में हाल ही में कराए गए एक सर्वे में वह वहाँ के राष्ट्रपति से भी आगे थे। उन्हें ईरान के अगले राष्ट्रपति के रूप में लाने का फैसला भी हो गया था। ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामनेई  की रणनीतिक बैठकों में लिए गए फ़ैसले के  ज़्यादातर आदेश उन्हीं के ज़रिए जारी होते थे। सुलेमानी पूर्वी ईरान के किरमान राज्य के कायमात-ए-मालिक गाँव में पैदा हुए थे। उन्हें 13 साल की उम्र में अपने किसान पिता के एग्रीकल्चर लोन को तत्कालीन शाह रजा पहलवी की सरकार को चुकाने के लिए मज़दूरी करनी पड़ी थी। 1979 में जब अमेरिका समर्थित शाह की हुकूमत का पतन हुआ और इस्लामिक क्रांति हुई तो वह इस क्रांति के जनक आयतुल्लाह खुमैनी के आंदोलन में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने किरमान के युवकों को जमाकर एक लड़ाकू यूनिट बनाई और यह यूनिट खुमैनी के लिए काम करने लगी। फिर जब आई