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आतंकवाद के बीज से आतंकवाद की फसल ही काटनी पड़ेगी

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- स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर, सलाहकार संपादक, द इकोनॉमिक टाइम्स   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी आतंकवाद को नियंत्रित करने और इसे खत्म करने पर काफी कुछ कहते रहते हैं। लेकिन आतंकवाद की सही परिभाषा क्या है ? डिक्शनरी में इसकी परिभाषा बताई गई है – अपना राजनीतिक मकसद पूरा करने के लिए खासतौर पर नागरिकों के खिलाफ हिंसा और धमकी का गैरकानूनी इस्तेमाल। इस परिभाषा के हिसाब से जो भीड़ बीफ ले जाने की आशंका में लोगों को पीट रही है और जान से मार रही है, वह लिन्चिंग मॉब (जानलेवा भीड़) दरअसल आतंकवादी ही हैं। कश्मीर में भी जो लोग इस तरह पुलिसवालों की हत्या कर रहे हैं वह भी वही हैं। जान लेने वाली यह सारी भीड़ अपने धार्मिक-राजनीतिक मकसदों के लिए नागरिकों के खिलाफ गैरकानूनी हिंसा का सहारा ले रही है। यह सभी लोग आतंकवादी की परिभाषा के सांचे में फिट होते हैं। हालांकि बीजेपी में बहुत सारे लोग इससे सहमत नहीं होंगे। वह कहेंगे कि हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं और बीफ विरोधी हिंसा को समझने की जरूरत है। कश्मीर में हुर्रियत भी मारे गए पुलिसवालों की मौत पर घड़ियाली आंसू बहाएगी और कहेगी कि भारतीय स

एक महीने बाद फराज का बांग्लादेश

...मेरा ये लेख आज के नवभारत टाइम्स लखनऊ संस्करण में प्रकाशित हो चुका है। ईपेपर का लिंक लेख के अंत में है।... बांग्लादेश में एक महीने बाद भी लोग ढाका के रेस्तरां में हुए हमले से उबर नहीं पाए हैं। 1 जुलाई 2016 को यहां आतंकवादियों के हमले में 28 लोग मारे गए थे। इन्हीं में था बांग्लादेशी स्टूडेंट फराज हुसैन, जिसने अपने साथ पढ़ने वाली भारतीय लड़की को बचाने के लिए जान दे दी। फराज का परिवार दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली आतंकी घटना पर अभी भी सिहर उठता है। फराज के बड़े भाई जरेफ हुसैन ने फोन पर ढाका से एनबीटी से कहा कि ...लगता है कि आईएस के आतंकियों ने इस्लाम का अपहरण कर लिया है और वो कोई पुराना बदला चुकाने के लिए लोगों को मार रहे हैं। जरेफ हुसैन कहते हैं कि जब हमसे हमारी सबसे प्यारी चीज ही छीन ली गई तो बताइए ऐसे आतंकियों के लिए हम क्यों दिल में साफ्ट कॉर्नर रखें। इन आतंकियों ने सिर्फ हमारे परिवार को मुश्किल में नहीं डाला है बल्कि पूरे इस्लाम को ही खतरे में डाल दिया है। आईएस आतंकियों का मकसद लोगों को मार कर धर्म को मजबूत करना नहीं है बल्कि वो इसकी आड़ में इस्लाम को ही बर्बाद कर द

जिहाद का गेटवे

नोट ः नवभारत टाइम्स, दिल्ली में  03 जून 2016 के अंक में प्रकाशित मेरा आलेख अमेरिका के अरलैंडों, फ्लोरिडा से लेकर इस्तांबुल के अतातुर्क एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट का नाम सामने बार-बार आया है। अमेरिका में 9 /11 के बाद वहां के बारे में दावा किया गया था कि अमेरिका ने अपनी सुरक्षा इतनी मजबूत कर ली है कि वहां अब कुछ भी होना नामुमकिन है। लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं ने इस सुरक्षा कवच की धज्जियां उड़ा दीं। आखिर कैसे आईएस इतना मजबूत होता जा रहा है और दुनिया की सारी सुरक्षा एजेंसियां उसके सामने बौनी साबित हो रही हैं।     अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी आफ ह्यूमन राइट्स के डायरेक्टर डेविड एल. फिलिप्स ने एक रिसर्च पेपर जारी किया है, जिसमें कुछ कड़ियों को जोड़ते हुए जवाब तलाशने की कोशिश की गई है। डेविड अमेरिकी विदेश मंत्रालय में बतौर विदेशी मामलों के विशेषज्ञ के रूप में नौकरी भी कर चुके हैं। वह कई थिंक टैंक से भी जुड़े हुए हैं। उनके रिसर्च पेपर के मुताबिक तुर्की का बॉर्डर आईएस और दूसरे आतंकी संगठनों के बीच जिहाद का गेटवे के रूप में जाना जा