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अमेरिका की हकीकतः गरीब अमेरिका और युद्ध का धंधा

American Realty:  Poor America and War of Business अमेरिका दरअसल क्या है...एक ऐसा देश जहां दुनिया के हर कोने का बाशिंदा जाना चाहता है। अमेरिका की जो तस्वीर हमारे आपके जेहनों में उभरती है वह एक अति आधुनिक विकसित देश की है। तमाम आर्थिक मंदी (economic crisis) और वहां के बैंकों के डूबने के बावजूद, इराक-अफगानिस्तान में बुरी तरह पिटने या मात खाने के बावजूद वहां की मीडिया अमेरिका (US Media) की अभी भी जो तस्वीर पेश करता है, वह वहां तरक्की, दादागीरी, दूसरे देशों की जबरन मदद करने वाली है।...पर यह मिथक टूट रहा है। भारत और अमेरिकन मीडिया हालांकि चीजों को जबर्दस्त ढंग से छिपाते हैं लेकिन फिर भी कुछ चीजें तो बाहर निकल कर आ ही जाती है। मेरे पास इधर दो ताजा विडियो क्लिक अमेरिका के ही कुछ जागरूक मित्रों ने यह कहते हुए भेजी कि अमेरिका के बारे में जो मिथ है, उसको इन्हें देखने के बाद दूर कर लीजिए। इसमें एक विडियो तो बीबीसी ने गरीब अमेरिका (Poor America a film by BBC) के नाम से बनाया है जो हमें अमेरिका की असलियत से रूबरू कराता है। दूसरा विडियो क्लास वॉर फिल्म (Class War Films) ने बनाया है। इस वि

न लिखने के खूबसूरत बहाने

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ऐसा क्यों होता है कि जब हम लोग लिखने से जी चुराने लगते हैं और दोष देते हैं कि क्या करें समय नहीं मिला, क्या करें व्यस्ततता बहुत बढ़ गई है, क्या करें दफ्तर में स्थितियां तनावपूर्ण हैं इसलिए इस तरफ ध्यान नहीं है, क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या लिखें...कुछ ऐसे ही बहाने या इससे भी खूबसूरत बहाने हम लोग तलाश लेते हैं। कुछ और लोगों ने इसमें यह भी जोड़ दिया है कि अरे ब्लॉग पर लिखने के लिए इतना क्या गंभीर होना या ब्लॉग ही तो है जब अपना लिखा खुद पढ़ना और खुश होना है तो फिर कभी भी लिख लेंगे... लेकिन यह तमाम बातें सही नहीं हैं। मुझे इसका आभास इन दिनों तब हुआ जब मैंने ब्लॉग पर लिखना बिल्कुल बंद कर दिया और ईमेल पर और फोन तमाम लोगों के उलहने सुनने को मिले। कुछ लोगों ने तो उम्र के साथ कलम में जंग लगने तक का ताना मार दिया। ...यह सच है कि जो लिखने वाले हैं उन्हें लिखना चाहिए फिर वह चाहे खुद के परम संतोष के लिए लिखना हो या फिर दूसरों तक अपनी बात पहुंचाने की बात हो। अब देखिए न लिखने से मैंने क्या-क्या इन दिनों मिस किया...जैसे देश के तमाम घटनाक्रमों पर कलम चलाने की जरूरत थी। खासकर दिल्ली में ज

हिंदुत्व...संस्कृति...कमेंट या बहसबाजी

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संदर्भः मोहल्ला और हिंदीवाणी ब्लॉगों पर टिप्पणी के बहाने बहसबाजी (मित्रों, आप हमारे ब्लॉग पर आते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं, मैं आपके ब्लॉग पर जाता हूं, प्रतिक्रिया देता हूं। यहां हम लोग विचारों की लड़ाई नहीं लड़ रहे। न तो मैं आपके ऊपर अपने विचार थोप सकता हूं और न ही आप मेरे ऊपर अपने विचार थोप सकते हैं। हम लोग एक दूसरे प्रभावित जरूर हो सकते हैं।) मेरे नीचे वाले लेख पर कॉमनमैन ने बड़ी तीखी प्रतिक्रिया दी है। हालांकि बेचारे अपने असली नाम से ब्लॉग की दुनिया में आने से शरमाते हैं। वह कहते हैं कि हिंदुओं को गलियाने का ठेका मेरे या मोहल्ला के अविनाश जैसे लोगों ने ले रखा है। शायद आप सभी ने एक-एक लाइन मेरे ब्लॉग पर पढ़ी होगी, कहीं भी किसी भी लाइन में ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई है। फिर भी साहब का गिला है कि ठेके हम लोगों के पास है। आप पंथ निरपेक्षता के नाम पर किसी को भी गाली दें लेकिन आप जैसे लोगों को पकड़ने या कहने वाला कोई नहीं है। अलबत्ता अगर कोई सेक्युलरिज्म की बात करता है तो आप जैसों को बुरा लगता है। अब तो बाबा साहब आंबेडकर को फिर से जन्म लेकर भारतीय संविधान का पुनर्लेखन करना पड़ेगा कि भाई हम