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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्सव शर्मा...हर शहर से निकल कर आएंगे

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उत्सव शर्मा का यह दूसरा हमला है ऐसे लोगों पर, जिन पर आरोप है कि उन्होंने बेटियों को मरने पर मजबूर किया या फिर उन्हें मार दिया। मैं यहां उत्सव के समर्थन में खड़ा हूं। मैं जानता हूं कि ऐसा कह कर मैं भारतीय संविधान और यहां की अदालतों की तौहीन कर रहा हूं लेकिन अगर अब उत्सव के लिए लोग न उठ खड़े हुए तो आगे स्थितियां और भयावह होने वाली हैं। अभी बिनायक सेन को अदालत द्वारा सजा सुनाने के बाद भारतीय मीडिया और यहां के तथाकथित बुद्धिजीवियों की जो सांप-छछूंदर वाली स्थिति रही है, उसे देखते हुए बहुत जल्द बड़ी तादाद में उत्सव और बिनायक पैदा होंगे। इस समर्थन को इस नजरिए से न देखा जाए कि मेरे जैसे लोग हिंसा को अब कारगर हथियार मानने लगे हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। यह हिंसा नहीं, उन असंख्य भारतीय के जज्बातों का समर्थन है जो इन दिनों तमाम वजहों से बहुत आहत महसूस कर रहा है। इधर आप लोग इस तरह की खबरें भी पढ़ रहे होंगे कि काफी संख्या में पढ़े-लिखे बेरोजगार युवक अपराध की तरफ मुड़ रहे हैं। ऐसे युवक जब खद्दरधारी नेताओं और उनसे जुड़े बेईमान अफसरों को जनता के पैसे को लूटते हुए देखते हैं तो इस व्यवस्था से उनका मोह भंग ह

पाकिस्तान में कट्टरपंथी पुराने अजेंडे पर ही चल रहे हैं

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पाकिस्तान में चंद दिन पहले वहां के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी गई। वह पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून (ब्लासफेमी) के गलत इस्तेमाल व इसमें से सजा-ए-मौत की धारा को खत्म किए जाने के प्रमुख पैरोकार थे। बीना सरवर पाकिस्तान की जानी-मानी पत्रकार और डॉक्युमेंटरी फिल्ममेकर हैं। वह इस समय वहां के प्रमुख समचारपत्र जंग ग्रुप में संपादक – स्पेशल प्रोजेक्ट्स (अमन की आशा) हैं। उन्होंने ब्राउन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी आफ लंदन के अलावा हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है। बीना सरवर से पाकिस्तान के मौजूदा हालत पर मैंने बातचीत की है...यह इंटरव्यू नवभारत टाइम्मस अखबार में 20 जनवरी,2011 को प्रकाशित हुआ है और उसकी वेबसाइट पर आनलाइन भी उपलब्ध है... पाकिस्तान में उदारवादी नेता व पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या को आप राजनीतिक या कट्टरपंथियों की करतूत मानती हैं? दोनों ही। जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की है, वह दिखता तो कट्टरपंथी है लेकिन दरअसल इस हत्या का मतलब और मकसद कुछ और भी है। हत्यारे मलिक मुमताज कादरी की ड्यूटी एलीट फोर्स में सिर्फ पंजाब के गवर्नर की सुरक्षा के लिए लगाई गई। हालांकि इससे पहले उसे

तेरा जाना

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रुपया-पैसा, बड़ा कारोबार होने के बावजूद वह मौत से हार गए। मौत को वह चुनौती नहीं दे सके। हालांकि उन्होंने समय-समय पर न जाने कितनों को चुनौती दी और हर लड़ाई को जीतते रहे लेकिन मौत से हुई इस लड़ाई में उन्हें पराजित होना पड़ा। 3 जनवरी की दोपहर जब मैं जीटी रोड पर ड्राइव कर रहा था और मेरा मोबाइल एसएमएस झेलते-झेलते शायद गुस्से में गरम हो चुका था, तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने ध्यान सड़क से कहीं और भटका दिया। उन्हीं की मौत की खबर थी। हतप्रभ...कहां पुष्टि हो, क्या किया जाए। एक मित्र को रिंग किया तो उन्होंने पुष्टि की। तमाम यादें,मुलाकातें एक-एक कर याद आने लगीं। उनका सिगरेट के हर कश के साथ कुछ कहने का बेलौस अंदाज, फिर फैसला लेने का ऐलान होंठ काटकर ऐसे बयान करना मानों इसे बदल पाना मुश्किल होगा।...कुछ गलत फैसले, कुछ सही फैसले... पता नहीं उनकी नेतृत्व करने की क्षमता से मैं इस कदर क्यों प्रभावित था कि मित्र लोग इसे चाटुकारिता तक मानते रहे। हालांकि उनसे मुझे निजी लाभ या अन्य किसी तरह का लाभ कभी नहीं मिला। लेकिन जिस तरह कंपनी की बैठकों में वह मेरी ईमानदारी का प्रचार करते तो मुझे लगता कि इतना बड़ा पूंजीपत