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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...

क्या मुसलमानों का हाल यहूदियों जैसा होगा ...विदेशी पत्रकार का आकलन

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मुसलमान भी यहूदियों की तरह साफ कर दिए जाएंगे...यह बात किसी सवाल की तरह नहीं आया है बल्कि तथ्यों के जरिए हालात की तरफ इशारा किया गया है। यह बातें उस वक्त की जा रही हैं जब कोरोना के दौरान तमाम साजिश वाली थ्योरी (conspiracy theories) पर बातें हो रही हैं। यहां मैं भी किसी conspiracy theories पर बात नहीं करूंगा बल्कि मैं जाने-मान पत्रकार सी जे वर्लमैन (C J Werleman) के उस लेख का जिक्र करना चाहता हूं जिसमें उन्होंने यहूदियों के खात्मे की तुलना मौजूदा दौर में पूरी दुनिया में मुसलमानों को खत्म किए जाने या उन्हें हाशिए पर भेजे जाने से की है। उनका यह लेख टीआरटी वर्ल्ड ने प्रकाशित किया है। वह लिखते हैं - 14वीं शताब्दी में जब #काला-जार ( #BlackPlague) ने #यूरोप को अपनी चपेट में लिया तो करीब पचास फीसदी लोग इस बीमारी से मारे गए। उसी दौरान यह अफवाह फैलाई गई कि #यहूदी लोग इस बीमारी को फैला रहे हैं। वे कुओं में पीने के पानी के जरिए इसे फैला रहे हैं। इस अफवाह का नतीजा यह निकला कि चारों तरफ यहूदियों को मारा जाने लगा। उनका #नरसंहार ( anti-Semitic pogroms ) हुआ। गांव के गांव जिनमें यहूदी आबादी रहत

फ़ैसलों का गुजराती ढोकला

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मोदी जी ने आज अपने चुनाव क्षेत्र बनारस का हाल जानने के लिए वहां के भाजपा नेताओं को फोन किया। फोन पर बातचीत के दौरान बनारस के जिला भाजपा अध्यक्ष ने मोदी से कहा कि मास्क बनवाने की जरूरत है.... मोदी जी ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा - ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है। अपने इलाके में जो तौलिया या गमछा चलता है, उसी को मुंह पर लपेटिए। वही बेहतरीन मास्क है। cheap and hot items मोदी जी के इस सुझाव में बुराई नहीं देखनी चाहिए। ...पूरे देश को मुंह पर गमछा या तौलिया बांध लेना चाहिए।...बल्कि कुछ दिन के लिए गमछे को राष्ट्रीय रूमाल घोषित कर देना चाहिए।  चाहे उसे मुंह पर बांधो और अगर पेट खाली है तो उसमें अपने आंसू भी पोंछ लो। महंगाई में इससे सस्ता जुगाड़ और कहां मिलेगा। लेकिन इन भाजपाइयों को जरा भी शर्म नहीं आती। राष्ट्रीय संकट की घड़ी में मोदी जी से मास्क मांग रहे हैं।  बहरहाल, मास्क की जगह गमछे जैसा सुझाव मैं भी देशवासियों को देना चाहता हूं। मसलन...सेनिटाइजर नहीं है...जमीन पर हाथ रगड़िए फिर पानी से हाथ धो लीजिए। वेंटिलेटर नहीं है...तो अनुलोम विलोम कीजिए.... मु

शब-ए-बरात... (शबरात) पर चंद बातें...

इस बार यह त्यौहार कल बुधवार को ऐसे मौक़े पर पड़ने जा रहा है जब हम लोग कोरोना की वजह से घरों में क़ैद हैं।  इस तरह यह त्यौहार हिंद के तमाम आलम-ए-मुसलमानों के लिए एक इम्तेहान और चुनौती लेकर आया है। इस त्यौहार पर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। क़ब्रिस्तान में जाकर मोमबत्ती या दीया जलाकर रोशनी करते हैं। घरों में हलवा बनता है और उस पर नज्र या फातिहा दिलाया जाता है।  जिनके यहाँ पिछले एक साल के अंदर किसी अपने (प्रियजन) की मौत हुई है, उनके लिए तो यह शब ए बरात और भी खास है।  क्योंकि इस #शब_ए_बरात में वो आपके साथ नहीं हैं जबकि पिछले साल वो आपके साथ थे। मैं तमाम #मुसलमानों से हाथ जोड़कर गुजारिश करता हूँ कि इस बार यह सभी काम आप अपने घरों में करें।  किसी को बाहर निकलने या क़ब्रिस्तान और मस्जिदों में जाने की ज़रूरत नहीं हैं। आपके पूर्वज आपकी मजबूरी को समझेंगे और जहाँ वे होंगे आपके लिए दुआ करेंगे।  हर फ़िरक़े के तमाम मौलानाओं, उलेमाओं से भी विनती है कि वे जहाँ भी हैं, इस बार लोगों को इन चीज़ों को घरों में करने के लिए कहें। किसी को भी बाहर निकलने के लिए न कहें।

कोरोनाई पत्रकार और जाहिल मुसलमान

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तबलीगी जमात की आड़ में मुसलमानों को विलेन बनाने की खबरों में अब धीरे-धीरे कमी आ रही है। ...लेकिन आप जानना नहीं चाहते कि अचानक यह कमी कैसे आ गई। दरअसल, #अयोध्या में हिंदू श्रद्धालुओं का मंदिरों में बड़ी तादाद में पहुंचना और उस वीडियो का वायरल होना। एक और वीडियो वायरल है जिसमें #भाजपा सांसद मनोज तिवारी अपने चमचों की भीड़ के साथ मास्क बांटते घूम रहे हैं। वीडियो तो और भी हैं लेकिन अयोध्या पर आए वीडियो से मुख्यधारा का #मीडिया डर गया है। इसके अलावा मीडिया का वो चेहरा भी बेनकाब हुआ, जिसमें उसने एक कैदी के थूकने की घटना का वीडियो तबलीगी जमात का बताकर प्रचारित कर दिया था। इसके अलावा एक दूसरे मौलाना सज्जाद नोमानी का फोटो मौलाना साद बनाकर जारी कर दिया था।...लेकिन मजाल है कि मीडिया के जिन भक्तों ने यह काम किया है, उन्होंने माफी मांगी हो। वाकई पत्रकार जिसे कहते हैं, वो अब कमजर्फ जमात बनते जा रहे हैं। वे खुद एक #कोरोना में तब्दील हो गए हैं। #तबलीगीजमात ने जो जाहिलपना दिखाया, उसमें उसका पक्ष नहीं लेते हुए, बात कमजर्फ पत्रकार जमात और कमजर्फ मीडिया पर करना जरूरी है। क्योंकि सीजफायर कंपनी

बाजार के आस्तिकों का कोरोना युद्ध

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तेलंगाना का एक मशहूर मंदिर है, नाम है भद्राचलम मंदिर। यहां हर #रामनवमी वाले दिन यानी आज के दिन सीता-राम कल्याण समारोह होता है। वह कार्यक्रम आज भी हुआ। इसमें #कोरोना को दूर भगाने के लिए भगवान से प्रार्थना की गई।...जानते हैं इस मंदिर में इस बहुत बड़ी पूजा के दौरान #तेलंगाना के दो मंत्री भी परिवार सहित शामिल हुए। पूरा मंदिर पुजारियों, दोनों मंत्रियों के परिवारों और उनके इर्द-गिर्द के चमचों, टीवी कैमरा चलाने वाले और पत्रकारों से भरा हुआ था। मैं #भद्राचलम_मंदिर में आज हुई पूजा की आलोचना नहीं करूंगा। मैं भद्राचलम और निजामुद्दीन मरकज में हुई घटना की तुलना नहीं करना चाहता हूं। चाहे वो #निजामुद्दीन_मरकज में जमा हुए तबलीगी जमात के मुसलमान हों या फिर आज तेलंगाना के भद्राचलम मंदिर में जमा हुए लोग हैं या उस दिन #अयोध्या में योगी की गोद में #रामलला की स्थापना के समय सैकड़ों लोगों का जमावड़ा हो....ये सारे के सारे कट्टर धर्मांध लोगों का ही जमावड़ा है। ऊपर वाले ने मुझे दो ही आंखें दी हुई हैं। उन्हीं दो आंखों से मैं ये सारे दृश्य देख रहा हूं।  लेकिन बड़ा सवाल य