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तैना शाह आ रहा है...

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 तैना शाह आ रहा है .............................. जनता, बजाओ ताली की तैना शाह आ रहा है हाँ, ख़ाली है थाली, पर धर्म तो जगमगा रहा है बिछाओ मसनद, सजाओ राजमुकुट उसका धर्म की आग में झुलसेगा अब हर तिनका तुम्हें समन्दर क्यों चाहिए, जब दरिया छोड़ दिया है प्यासे न मरोगे, उसने चुल्लू भर पानी छोड़ा दिया है ख़ूब चाटो बाबा की किताब, जनतंत्र मर चुका जब हिटलर ही धर्मतंत्र का ऐलान कर चुका हमने दरिया में लाशें देखीं और तैना शाह के तराने देखे खबरें बनाती रहीं तमाशा हमारा, एंकर ऐसे सयाने देखे कहीं से अब कोई सदा नहीं आती यूसुफ ए किरमानी ज़रा ज़ोर से बजाओ बिगुल, सुनाओ कोई नई कहानी @YusufKirmani January 22, 2024

भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...

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...भूकंप....बाढ़, सूखा, महामारी...बीमारी, ग़रीबी मुल्कों की सरहदें नहीं देखतीं...यहाँ भी भूकंप-वहाँ भी भूकंप... ...देखो...अब भूकंप अल्लाह ने भेजा या भगवान ने...हम नहीं जानते...उसने न देखा हिंदुस्तान और न पाकिस्तान... ...नफ़रतों की सरहदें तो हम बनाते हैं...कभी लाहौर में ...तो कभी कासगंज में... ...क़सम से यहाँ दिल्ली के लुटियन ज़ोन में आपस में तमाम जानी दुश्मन मरदूदों को हमने अपनी आँखों से बगलगीर होते देखा है... ...वो आपस में तुम्हारी नफ़रतों की फ़सल काटकर ख़ुश होते हैं...तुम लोग अकेले भूकंप, बाढ़, ग़रीबी से लड़ते रहते हो... ...तुम ख़ूब लड़ो...इतना लड़ो की एक और कासगंज बन सके और लुटियन ज़ोन के मरदूद तुम्हारी नादानी पर हंस सकें एक विद्रूप हंसीं.. ...भूकंप की परवाह किए बिना तुम आपस में इतनी नफ़रतें बोओ, ताकि वो काट सकें इस पर वोटों की फ़सल... और धान-गेहूँ की जगह उग सकें लाशें और कराहते लोग...

बापू...तिरंगे की आड़ में

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...बापू तुम भूले नहीं होगे वह 30 जनवरी ...आज का ही दिन ...जब तुमको एक मानसिकता ने गोलियों से छलनी किया था... ...बापू तुम्हें रंज भी होगा...उस मानसिकता ने अब असंख्य गोडसे पैदा कर दिए हैं... ...बापू गोडसे की संतानें तुम्हारी अहिंसा से ज़्यादा ताक़तवर हो गई हैं...वह तिरंगा लेकर हर कृत्य कर रहे हैं... वो रोज़ाना उस मानसिकता का क़त्ल कर रहे जो तुम छोड़कर गए थे... ...बापू गोडसे की संतानों के लिए बेरोज़गारी, भुखमरी, ग़रीबी, नस्लीय हिंसा, अल्पसंख्यकों का नरसंहार, आदिवासियों का दमन, कॉरपोरेट की लूट, छुआछूत, दलित उत्पीड़न आदि कोई मुद्दे नहीं हैं।  ...और बापू क्या तुम राष्ट्रभक्त न थे। ...गोडसे की संतानें जो फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद लेकर आईं हैं क्या हम उसे मान लें...उनका हर मुद्दा इसी पर शुरू और इसी पर खत्म हो जाता है। ...बापू यह देश भूल गया कि अंग्रेज़ों को भगाने के बाद दूसरी लड़ाई अंग्रेज़ों के पिट्ठुओं से होनी थी...होनी थी उन असंख्य गोडसे से जो आज गली-गली एक अलग झंडा और डंडा लेकर घूम रहे हैं। ....बापू उन्होंने तिरंगे की आड़ ले रखी है। वह अपना हर जुर्म तिरंगे की आड़ में छिप

मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं...

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मैं उन्माद हूं, मैं जल्लाद हूं मैं हिटलर की औलाद हूं मैं धार्मिक व्यभिचार हूं मैं एक चतुर परिवार हूं मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं मैं ट्रकों में पहलू खान खोजता हूं मैं घरों में सभी का फ्रिज देखता हूं मैं हर बिरयानी में बीफ सोचता हूं मैं एक खतरनाक अवतार हूं मैं नफरतों का अंबार हूं मैं दोधारी तलवार हूं मैं दंगों का पैरोकार हूं मैं आवारा पूंजीवाद का सरदार हूं मैं राजनीति का बदनुमा किरदार हूं मैं तमाम जुमलों का झंडाबरदार हूं मैं गरीब किसान नहीं, साहूकार हूं मुझसे यह हो न पाएगा, मुझसे वह न हो पाएगा और जो हो पाएगा, वह नागपुरी संतरे खा जाएगा फिर बदले में वह आम की गुठली दे जाएगा  मेरे मन को जो सुन पाएगा, वह "यूसुफ" कहलाएगा  ........कवि का बयान डिसक्लेमर के रूप में........ यह एक कविता है। लेकिन मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूं। इस कविता का संबंध किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष से नहीं है। हालांकि कविता राजनीतिक है। हम लोगों की जिंदगी अराजनीतिक हो भी कैसे सकती है। आखिर हम लोग मतदाता भी हैं। हम आधार कार्ड वाले लोगों के आस