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एक सावधान कवि की बात

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मुद्दे बहुत सारे हैं लेकिन बीच-बीच में हम लोगों को कविता और कवियों की बात भी कर लेनी चाहिए। जिन्हें कविताएं या गजलें पसंद नहीं है, उनकी संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लग जाते हैं। खैर, यह तो एक बात थी जो मुझे कहनी थी और मैंने कही। मैं खुद कोई बहुत बड़ा या छोटा-मोटा भी कवि नहीं हूं। हां, जो पसंद आता है, पढ़ता जरूर हूं। इसी सिलसिले में मैंने पिछले दिनों इस ब्लॉग पर राही मासूम रजा की कुछ कविताएं पोस्ट की थीं जो मुझे बेहद पसंद हैं। उसी कड़ी में कैफी आजमी और सीमा गुप्ता की कविताएं भी पोस्ट कीं। लेकिन इस बार मैं जिस कवि के बारे में आपसे बात कर रहा हूं उनका नाम मनमोहन है। उनके बारे में आपको साहित्यिक पत्रिकाओं में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिलेगा, खुद मैंने भी उनको बहुत ज्यादा नहीं पढ़ा है और पहली बार अपने ही एक साथी धीरेश सैनी से उनका नाम सुना। धीरेश की धुन बजी और उन्होंने मनमोहन की कई कविताएं मुझे सुनाईं। फिर एक दिन धीरेश के जरिए धीरेश के मोबाइल पर उनसे बात भी की। हिंदी साहित्य में जब खेमेबाजी और आरोपबाजी अपने चरम पर है, ऐसे मनमोहन जैसा कवि खुद को आत्मप्रचार से बचाए हुए है, हैरत होती है। हिंदी साह