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नफरतों का संगठित कारोबार...बल्लभगढ़ से श्रीनगर तक

Organized Hate Business from Ballabhgarh to Srinagar चिदंबरम ने बतौर होम मिनिस्टर कभी कहा था कि देश में भगवा आतंकवाद फैल रहा है।...मैंने उस वक्त उनके उस बयान की बड़ी निंदा की थी, क्योंकि वह सच नहीं था।...लेकिन अभी अपने देश में जिस तरह एक भीड़ किसी को घेर कर इसलिए मार देती है कि उसने दाढ़ी रखी है... सिर पर टोपी है...और वह लोग मीट खाते हैं...तो इस अपराध को आप किस श्रेणी में रखना चाहेंगे।... मेरे एक अभिन्न संघी मित्र घटना से आहत हैं और बार-बार लिख रहे हैं कि वह बल्लभगढ़ में ट्रेन में कुछ मुस्लिम युवकों पर हुए हमले और एक की हत्या से बहुत आहत हैं...लेकिन उनका आग्रह है कि इसे हिंदू आतंकवाद न कहा जाए....मैंने अपने मित्र से कहा कि न तो आपकी पोस्ट पर किसी ने ऐसा कमेंट किया और न ही मैंने आपसे ऐसा कहा...फिर आप परेशान क्यूं हैं....संघी मित्र का कहना है कि देर-सवेर यह मामला यही रूप लेगा और हिंदू आतंकवाद शब्द फिर से कहा जाने लगेगा। कम से कम उदार हिंदू जो हमारे काम से प्रभावित होकर हमारे साथ जुड़े हैं वे फिर छिटक जाएंगे... ....मैं नहीं जानता कि देश के बाकी मुसलमान बल्लभगढ़ की घटना को किस

मुस्लिम वोट बैंक किसे डराने के लिए खड़ा किया गया ?

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मेरा यह लेख आज (16 मार्च 2017)  नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है। अखबार में आपको इस लेख का संपादित अंश मिलेगा, लेकिन सिर्फ हिंदीवाणी पाठकों के लिए उस लेख का असंपादित अंश यहां पेश किया जा रहा है...वही लेख नवभारत टाइम्स की अॉनलाइन साइट एनबीटी डॉट इन पर भी उपलब्ध है। कृपया तीनों जगह में से कहीं भी पढ़ें और मुमकिन हो तो अन्य लोगों को भी पढ़ाएं... यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जिस तरह मुस्लिम राजनीति को हाशिए पर खड़ा कर दिया है, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। इन सवालों पर गंभीरता से विचार के बाद संबंधित स्टेकहोल्डर्स को तुरंत एक्टिव मोड में आना होगा, अन्यथा अगर इलाज न किया गया तो उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए मुस्लिम राजनीति पर चंद बातें करना जरूरी हो गया है। एक लंबे वक्त से लोकसभा, राज्यसभा और तमाम राज्यों की विधानसभाओं में मुस्लिम प्रतिनिधित्व लगातार गिरता जा रहा है। तमाम राष्ट्रीय और रीजनल पार्टियों में फैले बहुसंख्यक नेतृत्वकर्ताओं ने आजम खान, शाहनवाज खान तो पैदा किए और ओवैसी जैसों को पैदा कराया लेकिन एक साजिश के तहत कानून बनाने वाली संस्थाओं में मुस्लिम प्रतिनिधि

पैकेज किसी और का, जाकिर नायक सिर्फ सेल्स एजेंट

नोट ः मेरा यह लेख आज (12 जुलाई 2016) नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। हिंदीवाणी के पाठकों के लिए इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है... कुछ आतंकवादी घटनाओं के बाद सरकारी एजेंसियों और मीडिया की नजर इस्लाम की वहाबी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने वाले कथावाचक टाइप शख्स जाकिर नायक की तरफ गई है। उनके खिलाफ जांच भी शुरू हो चुकी है, जिसका नतीजा आना बाकी है। हालांकि जाकिर नायक ने ढाका की आतंकी घटना के कई दिन बाद मक्का में उसकी निंदा की और कहा कि इस्लाम किसी की जान लेने की इजाजत नहीं देता है। जाकिर नायक ने अपने बचाव में उसी इस्लाम और धार्मिक पुस्तक कुरान का सहारा लिया जिसकी आयतों की मीमांसा (तफसीर) को वो अभी तक तोड़ मरोड़कर पेश करते रहे और तमाम युवक-युवतियां उसे सुन-सुनकर उसी को असली इस्लाम मान लेने में यकीन करते रहे। हर धर्म के युवक-युवतियों के साथ ऐसा छल उस धर्म के कथावाचक पिछले कई दशक से कर रहे हैं, जिसमें धर्म तो कहीं पीछे छूट गया लेकिन खुद के बनाए सिद्धांत को आगे रखकर किसी खास विचारधारा का प्रचार प्रसार करना उसका मुख्य मकसद हो गया। कुरान अरबी में है। भारत

धर्म गुरुओं की राजनीतिक चाहतें

भारत के धर्मगुरुओं की राजनीतिक चाहतें छिपी नहीं हैं। पर, वे लोग जब यही काम कौम के नाम पर करने लगें तो उन पर तरह-तरह के संदेह पैदा होते हैं। फिर अगर इस खेल में धार्मिक संस्थाएं भी शामिल हो जाएं तो कौम बेचारी बेवकूफ बनती रहती है। मेरा यह लेख नवभारत टाइम्स की आनलाइन साइट पर उपलब्ध है। पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - नवभारत टाइम्स