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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

साम्प्रदायिक वायरस और निज़ामुद्दीन में जमाती

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साम्प्रदायिक वायरस (Communal Virus) किसी भी कोरोना वायरस से ज्यादा ख़तरनाक है। कोरोना खत्म हो जाएगा लेकिन साम्प्रदायिक वायरस कभी खत्म नहीं होगा। सरकारी पार्कों में #नागपुरी_शाखाएँ_बंद हैं लेकिन उनके कीटाणु तमाम मीडिया आउटलेट्स में प्रवेश कर चुके हैं और उनके ज़रिए #साम्प्रदायिकवायरस को फैलाने का काम जारी है। भेड़िए को अगर इंसान का ख़ून मुँह में लग जाए तो वह रोज़ाना इंसान का शिकार करने निकलता है। तमाम #टीवी चैनल और कुछ पत्रकारों की हालत इंसानी ख़ून को पसंद करने वाले भेड़िए जैसी हो गई है। #कोरोना में साम्प्रदायिक नुक़्ता अभी तक नदारद या नजरन्दाज था। लेकिन भेड़ियों के झुंड ने आख़िरकार दिल्ली के हज़रत #निज़ामुद्दीन बस्ती के एक मरकज़ की #तबलीगी_जमात में जाकर तलाश लिया। हालाँकि #तबलीगीजमात वग़ैरह जैसी चीज़ों के मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत खिलाफ हूँ। जिन लोगों की दुनिया खुदा के #रसूल और उनके #अहलेबैत, #सूफीज्म से आगे नहीं बढ़ती वो कोई भी तबलीग कर लें, ऊँचा पाजामा पहन लें, कम से कम #इस्लाम को तो नहीं फैला रहे। अभी जो घटना हुई उससे लोगों को बचाया जा सकता था। लेकिन तबलीगी जमात मे

कविता : तुम अभी याद नहीं आओगे

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तुम अभी याद नहीं आओगे जब मुश्किल तुम पर आई है जब तुम्हारे जाने की बारी आई है तुम अभी याद नहीं आओगे तुम तब याद आओगे जब हम मुश्किल में आ जाएंगे जब जीने के लाले पड़ जाएंगे जब सेठ को याद आएगा घर बनवाना जब पानी लीक करेगा नल पुराना जब दीवारों पर सीलन आ जाएगी जब फर्नीचर बनवाने की बारी आएगी जब धूल मिट्टी बस जाएगी घर के कोने-कोने कपड़े और बर्तन पर गंदगी हो जाएगी जमा होने तुम तब याद आआगे तुम तब याद आओगे जब गाड़ी दौड़ते-दौड़ते ठहर जाएगी जब मोटे टायरों पर कील धंस जाएगी जब पैर थक जाएंगे चलते चलते जब आंखें थक जाएंगी रिक्शा तकते जब कोई बाइक से होम डिलिवरी नहीं करेगा जब दुकान से भार खुद उठाना पड़ेगा जब हरी सब्जी के लिए दिल तरस जाएगा जब घर का गार्डन जंगली घास से भर जाएगा तुम तब याद आओगे अभी तो हमने  अपनी आंखें, अपनी आत्मा क्वारंटाइन कर ली है अभी तो मास्क ने हमारी बोली बंद कर दी है अभी कैसे याद कर लें तुम्हें अभी तो अमीरों की जान एक बीमारी ने जकड़ ली है अभी तुम्हारे आंसू, तुम्हारा दर्द तुम्हारा झोला, तुम्हारी दूरियां

कंधे पर लोकतंत्र...सरकार की नीयत और नीति

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#लॉकडाउन पर मोदी सरकार की नीति और नीयत पर कुछ खुलासा... #प्रधानमंत्री ने 26 मार्च को देश के सभी प्राइवेट #एफएम_रेडियो के जॉकी (आरजे) से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने की इच्छा जताई। प्रसार भारती ने सभी मीडिया हाउसों को संदेश भेजा। 27 मार्च यानी शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू हुई। करीब 45-46 रेडियो स्टेशनों के #आरजे , सीईओ और मालिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हो गए। #मोदी ने इन सभी को अपना भाषण पिलाया और उनके कर्तव्य बताए कि इस समय मॉस मीडिया (एफएम रेडियो) की क्या जिम्मेदारी है और उन्हें लॉकडाउन के समय सरकार के साथ चलना चाहिए। #पीएमओ में प्रधानमंत्री के सामने जो वीडियो स्क्रीन थी, उसमें सिर्फ 5 लोगों को #पीएम के सामने आने और सवाल पूछने की छूट मिली हुई थी, बाकी सारे लोग अपनी-अपनी लोकेशन पर तमाशबीन थे। जानते हैं इन पांच लोगों में जिन्हें स्क्रीन पर आने की अनुमति थी, उनमें वही #मोदी_भक्त _रजे शामिल थे। इनमें भी सबसे प्रमुख नाम #रेड_एफएम का #आरजे_रौनक था। इसके अलावा #रेडियो पर काफी चीख पुकार मचाने वाला आरजे भी था। आरज

लघु कथा : लॉकडाउन दोस्ती

लॉकडाउन अब उसे क़ैद जैसा लगने लगा था। कोई कितना मोबाइल इस्तेमाल करे।  वो अब किसी ऐसे से बात करना चाहता था,  जिससे वो अपने दिल की बात कर सके।  सोशल मीडिया का कोना कोना ढूँढा, कोई नहीं मिला।  एक था, मगर पिछले कुछ महीनों से चल रही कम्यूनल हवा के ज़हर से उनकी दोस्ती ने दम तोड़ दिया था। -मुस्तजाब किरमानी

लघु कथा: क्वारंटाइन

मोबाइल लॉक करते ही स्क्रीन पर अंधेरा छा गया। डिजिटल दुनिया क़ैद हो चुकी थी। उसकी आँखों के सामने स्क्रीन पर बाहर दुनिया की परछाईं किसी फ़िल्म सीन जैसी लगी। वह लेटी लेटी अपने बिस्तर से उठी, विंडो से बाहर देखा। बाहर के आज़ाद नज़ारों को देखकर उसकी नज़रें ललचा रही थीं। फिर यूँ ही उसके मन में ख़्याल आया कि चीज़ों की कीमत उनके खो जाने के बाद क्यों पता चलती है?  -मुस्तजाब किरमानी 

लघु कथा: लॉकडाउन

टीवी पर वो न्यूज देख रहा था। 21 दिन के लॉकडाउन ने उस पर ख़ासा असर नहीं किया। आँखों में कोई अचंभा  नहीं। दिल की धड़कनों में कोई बदलाव नहीं। दूर दूर तक कोई हड़बड़ी भी नहीं। बस, वो हल्का सा हिला, सोफ़े पर खुद को एडजस्ट करने के लिए... देश के उस हिस्से में रह रहे लोगों के लिए लॉकडाउन एक आदत बन चुकी थी। -मुस्तजाब किरमानी

लघु कथा - चाचा की दुकान

चाचा की दुकान -मुस्तजाब किरमानी वो चाचा की दुकान को जलते देख खुश हुआ था।  चाचा और उसका धर्म अलग-अलग जो थे। उसने  आग खुद नहीं लगाई थी। हाँ, दंगाइयों को राह  जरूर दिखाई थी। मगर, आज जनता कर्फ़्यू के बीच  जब उसे एक जरूरत का सामान याद आया तो उसने  खिड़की से काली राख की चादर ओढ़े उस दुकान को  हसरत से देखा। ...चाचा तो उसे उधार सामान भी दे दिया करते थे। -मुस्तजाब किरमानी #लघुकथा #चाचा_की_दुकान #जनताकर्फ्यू #दंगाई #धर्म #HindiShortStory #JantaCurfew #Rioters  #Religion #शाहीनबाग अपडेट यह लघु कथा अप्रत्यक्ष रूप से शाहीनबाग से भी जुड़ी है। इसे पढ़ने से पहले यह अपडेट लीजिए कि #करोना की आड़ में #दिल्ली_में_शाहीनबाग को दिल्ली पुलिस ने आज पूरी तरह ख़ाली करा लिया है। सारा टेंट और सामान हटा लिया गया। इस तरह 101 वें दिन इस #महिला_आंदोलन को बलपूर्वक खत्म कर दिया गया। यह कहानी शाहीनबाग से अप्रत्यक्ष रूप से इसलिए जुड़ी हुई, क्योंकि #सीएए और #एनआरसी विरोधी प्रदर्शन के दौरान ही दिल्ली के चांदबाग, #मुस्तफाबाद, #जाफराबाद, #गोकुलपुरी, #खजुरीखास, #शिवविहार वग़ै

ताली और थाली का निहितार्थ समझिए...

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प्रधानमंत्री मोदी जी ने आपसे आज (22 मार्च शाम 5 बजे) जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली यूं ही नहीं बजवा दिया।... संघ पोषित व िचारों की आड़ लेकर सरकार द्वारा प्रायोजित इतना बड़ा जन एकजुटता का प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था।  जिन लोगों ने इसे नहीं बजाया, उन्हें अपने उन पड़ोसियों की वजह से हीन भावना में आने की जरूरत नहीं है जिन्होंने जमकर बजाया।...और इतना जोर से बजाया कि परिंदे भी डर गए... आपके जिन पड़ोसियों ने इस मौके पर पटाखे छोड़े हैं, उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं पालें। # मोदी जी ने उनसे ताली और थाली बजाने को कहा था, बेचारों ने खुशी में पटाखे भी चला दिए। लेकिन दरअसल वे नादान ही तो थे, अनजाने में पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया जो इस वक्त # ग्लोबल_वार्मिंग से मुक्त होकर सुखद सांस ले रहा था। तो...आइए इस # ताली_और_थाली_बजाने_का_निहितार्थ समझते हैं... अगर किसी को # 1992_में_मंदिर_आंदोलन और लालकृष्ण # आडवाणी की रथ यात्रा के दिनों की कुछ घटनाएं याद हों तो वो आसानी से आज के ताली और थाली बजाने को समझ जाएंगे। लेकिन जिन्हें याद नहीं या जो उस समय नहीं पैदा हुए

शाहीनबाग के तीन महीने...हमने क्या पाया...

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दिल्ली में शाहीनबाग के शांतिपूर्ण  संघर्ष को तीन महीने पूरे हुए... सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर सूरते हाल क्या होगी, नहीं मालूम, लेकिन हमें इस बात का सुकून रहेगा कि हमने अपना ज़मीर मरने नहीं दिया... हमने इस संघर्ष में ऐसे बच्चों को तैयार कर दिया है जो आने वाली नस्लों को बताएंगे कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई के लिए बनाए गए शाहीनबाग के वो चश्मदीद हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनके सामने हमारे अतीत को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा...  हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, ब्यूरोक्रेट, जज बनने पर यह समझ होगी कि जनभावनाएं और मानवाधिकार क्या होते हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्हें किसी शाखा में ज़हरीला राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाया गया, बल्कि जिन्हें सड़क किनारे बनाई गई अभावग्रस्त लाइब्रेरी में शहीद भगत सिंह, गौरी लंकेश, बिस्मिल, आज़ाद, वीर अब्दुल हमीद, दाभोलकर, कलाम...को पढ़ाया गया... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि वो ऐसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए आगे बढ़े जब ख़ाकी पहने हुए गुंडों ने उन पर हमला बोला...

दिल्ली जनसंहार में लुटे-पिटे लोग ही अब मुलजिम हैं...

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#दिल्ली_रक्तपात या #दिल्ली_जनसंहार_2020 की दास्तान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है... अकबरी दादी (85) के बाद अब सलमा खातून दादी (70) की हत्या ने मेरे जेहन को झकझोर दिया है। मैंने गामड़ी एक्सटेंशन में तीन मंजिला बिल्डिंग में जिंदा जला दी गई 85 साल की अकबरी दादी की कहानी सोशल मीडिया पर लिखी थी...लेकिन अब एक और बुजुर्ग महिला सलमा खातून का नाम भी #दिल्ली_में_हुई_हिंसा या #जनसंहार में सामने आया है।... सोच रहा हूं कि उन इंसानों का दिमाग कैसा रहा होगा जिसने सलमा खातून और अकबरी की जान ली होगी...क्या हत्यारी #दंगाइयों_की_भीड़ को अपनी मां या दादी का चेहरा याद नहीं रहा होगा...आप लोग मेरी मदद कीजिए कि असहाय, निहत्थी महिला को  एक भीड़ अपनी आंखों के सामने कैसे कत्ल करती होगी...उस भीड़ के दिल-ओ-दिमाग में ऐसा क्या रहता होगा...उत्तेजना के वे कौन से क्षण होते हैं जब भीड़ एक असहाय महिला या पुरुष का कत्ल कर देती है।...कुछ इन्हीं हालात में दंगाइयों ने अंकित शर्मा, दलबीर नेगी और रत्नलाल का कत्ल किया होगा...क्या भीड़ नाम के आधार पर, कपड़ों के पहनावे के आधार पर कत्ल को अंजाम देती है...बताइए..

साम्प्रदायिक आतंकवाद को कैसे हराएं

एक बेटी का निकाह तय था इस महीने। #दिल्ली_के_रक्तपात में आतंकवादियों ने उनका घर लूट लिया और जला दिया। सारे ज़ेवरात और दूसरे सामान #आतंकवादी उठा ले गए। उन्हें घर छोड़ कर भागना पड़ा। बहन की बारात ग़ाज़ियाबाद से आनी थी। जहाँ शादी तय थी, उन लोगों ने निकाह से मना कर दिया। अभी वो बेटी #मुस्तफाबाद के अल हिंद हॉस्पिटल में रह रही है। उनके अब्बा को अपना घर लुटने और सब कुछ तबाह होने का उतना ग़म नहीं है जितना अपनी बेटी का #निकाह न होने का ग़म था। आख़िरकार रिश्तेदारी में ही एक होनहार नौजवान कल सामने आया। उसने उस बेटी का हाथ माँग लिया। दोनों का निकाह भी कल हो गया। आप सभी लोग उस बेटी और उसके शौहर के लिए #दुआ कर सकते हैं। #अल्लाह उन दोनों को हमशा सलामत रखे, हमेशा खुश रखे। मरहूम सरदार गुरबचन सिंह, मरहूम शायर ख़ामोश सरहदी साहब और अभी भी ज़िंदा बुज़ुर्ग पत्रकार जनाब अमरनाथ बाग़ी साहब #भारत_पाकिस्तान_बँटवारे (1947) के समय की ऐसी सच्ची कहानियाँ मुझे सुनाया करते थे। #पाकिस्तान छोड़कर #फ़रीदाबाद चले आए उन दोनों हस्तियों के बँटवारे का दर्द उनकी बातों में उभरता था। वो बताते थे कैसे पंडित जवाहर लाल #न

अफ़वाहों का शहर

अफ़वाहें आपका टेस्ट होती हैं...कल रात भी टेस्ट हुआ... देशभर में गणेश मूर्तियों को दूध पिलाया जाना याद है... क्या यह भी याद है कि वो कौन सा #अफवाहबाज_संगठन था जिसने गणेश मूर्तियों के दूध पीने की बात सुबह सुबह उड़ा दी थी... 21 सितंबर 1995...मैं तब बरेली में था। #दैनिक_जागरण नामक #हिंदूवादी_अखबार में काम करता था। हमारे #संपादक बच्चन सिंह जी और जनरल मैनेजर चंद्रकांत त्रिपाठी जी को यह सब बहुत वाहियात लगा और 11 बजे पूर्वाह्न होने वाली एडिटोरियल मीटिंग में इसकी जाँच पड़ताल का ज़िम्मा मुझे सौंपा गया। #बरेली में उस समय हरदिल अज़ीज़ और बहुत प्यारे इंसान एडीएम सिटी मंजुल जोशी जी थे। वह मित्र जैसे थे। मैं और मेरे #पत्रकार दोस्त गीतेश जौली (दैनिक आज) उनके पास पहुँचे। उसके बाद हमने उनके साथ बरेली के बड़े मंदिरों का दौरा करने का प्लान बनाया। रामपुर गार्डन बरेली के मंदिर में गेट पर अभी हम लोगों के क़दम पड़े ही थे कि जोशी जी ने कहा - ज़रा किनारे, पैरों में दूध लभेड़ उठेगा। मैंने कहा - जब #मूर्तियाँ_दूध_पी_रही_हैं तो दूध यहाँ कैसे आ सकता है? यह चावल का पानी वग़ैरह होगा। उन्होंने कहा - मैं मजा