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पुलिस के कंधे पर लोकतंत्र का जनाजा

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Coffin of Democracy on Police's Shoulder -यूसुफ़ किरमानी दो दिन पहले एक बच्ची से मुलाकात हुई जो दूसरी क्लास में पढ़ती थी, बहुत बातूनी थी। भारतीय परंपरा के अनुसार मैंने उससे सवाल पूछा, बेटी बड़ी होकर क्या बनोगी...बच्ची ने तपाक से जवाब दिया, पुलिस। अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं डॉक्टर, इंजीनियर, खिलाड़ी, पायलट, आईएएस जैसे किसी जवाब के इंतजार में था। क्योंकि ज्यादातर बच्चे इसी तरह के जवाब देते रहे हैं। मैंने अपनी जिज्ञासा को बढ़ाते हुए उससे पूछा कि बेटी, पुलिस क्यों बनना चाहती हो। उसने कहा, क्योंकि पुलिस ही तो हमको बचाती है। अब जैसे कोरोना में पुलिस ही तो हमको बचा रही है। मैं हैरानी से काफी देर उसके जवाब पर मनन करता रहा। अभी कल यानी शुक्रवार को तमिलनाडु के तूतीकोरिन से यह दहलाने वाली खबर आई कि पुलिस वहां एक मोबाइल शॉप से बाप-बेटे ( #Jeyaraj and #Fenix ) को इसलिए पकड़कर ले गई, वो अपनी दुकान तय समय से पांच मिनट देर तक क्यों खोले हुए थे। पुलिस ने थाने में उनकी जमकर इतनी पिटाई की थी कि वे जब घर आए तो उनके गुप्तांगों से खून बह रहा था। बाद में दोनों की मौत हो गई। इस घटना स

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...

शाहीनबाग के तीन महीने...हमने क्या पाया...

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दिल्ली में शाहीनबाग के शांतिपूर्ण  संघर्ष को तीन महीने पूरे हुए... सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर सूरते हाल क्या होगी, नहीं मालूम, लेकिन हमें इस बात का सुकून रहेगा कि हमने अपना ज़मीर मरने नहीं दिया... हमने इस संघर्ष में ऐसे बच्चों को तैयार कर दिया है जो आने वाली नस्लों को बताएंगे कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई के लिए बनाए गए शाहीनबाग के वो चश्मदीद हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनके सामने हमारे अतीत को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा...  हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, ब्यूरोक्रेट, जज बनने पर यह समझ होगी कि जनभावनाएं और मानवाधिकार क्या होते हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्हें किसी शाखा में ज़हरीला राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाया गया, बल्कि जिन्हें सड़क किनारे बनाई गई अभावग्रस्त लाइब्रेरी में शहीद भगत सिंह, गौरी लंकेश, बिस्मिल, आज़ाद, वीर अब्दुल हमीद, दाभोलकर, कलाम...को पढ़ाया गया... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि वो ऐसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए आगे बढ़े जब ख़ाकी पहने हुए गुंडों ने उन पर हमला बोला...

मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

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यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का... अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है... शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया... मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के

यौन शुचिता के मिथकों को ध्वस्त करती है 'देह ही देश'....जेएनयू में परिचर्चा

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 ' देह ही देश ' को एक डायरी समझना भूल होगा। इसमें दो सामानांतर डायरियां हैं , पहली वह जिसमें पूर्वी यूरोप की स्त्रियों के साथ हुई ट्रेजडी दर्ज है और दूसरी में भारत है। यह वह भारत है जहाँ स्त्रियों के साथ   लगातार मोलस्ट्रेशन होता है और उसे दर्ज करने की कोई कार्रवाई नहीं होती। सुप्रसिद्ध पत्रकार और सी एस डी एस के भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक अभय कुमार दुबे ने   कहा कि हमारे देश में मोलस्ट्रेशन की   विकृतियों की भीषण अभियक्तियाँ निश्चय ही   चौंकाने और डराने वाली हैं , जिनकी तरफ हमारा ध्यान ' देह ही देश ' को पढ़ते हुए जाता है।   जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के   भारतीय भाषा केंद्र में " कड़ियाँ " संस्था द्वारा क्रोएशिया प्रवास पर आधारित प्रो . गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक " देह ही देश " पर आयोजित परिचर्चा में प्रो दुबे ने हिंसा और बलात्कार की घटनाओं पर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने को भीषण सामाजिक विकृति बत