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इस फ़ज़ीहत का ज़िम्मेदार कौन...क्या नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार ?

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किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इतनी फ़ज़ीहत कभी नहीं हुई, वह भी मोदी के कुछ सलाहकारों   के बचकानेपन की वजह से। फ़ज़ीहत का सिलसिला अभी थमा नहीं है। भारत सरकार ने जवाब में कुछ नामी क्रिकेट खिलाड़ियों और बॉलिवुड के फ़िल्मी लोगों को उतारा लेकिन उसमें भी सरकारी रणनीति मात खा गई। हैरानी होती है कि मोदी के वो कौन से रणनीतिकार हैं जो रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग, मीना हैरिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सलाह दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर रिहाना  (Rihanna)  ने मंगलवार को किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था। लेकिन बीजेपी आईटी सेल ने अपने तुरुप के इक्के विवादास्पद बॉलिवुड एक्ट्रेस  कंगना   रानौत को रिहाना के खिलाफ ट्वीट करवाकर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच दे दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  किसान आंदोलन के समर्थन में कई हस्तियों ने ट्वीट किए।  रिहाना के समर्थन के जवाब में कंगना ने किसानों को आतंकवादी बताया और कहा कि वे किसान नहीं हैं, वे भारत को बांटना चाहते हैं। कंगना ने यह तक कह डाला कि इसका फायदा उठाकर चीन भारत पर कब्जा कर लेगा। कंगना के इस बयान पर पत्रकार अर्णब गोस्व

मदर आफ डेमोक्रेसी+टू मच डेमोक्रेसी=मोदीक्रेसी Mother of Democracy+Too Much Democracy=Modicracy

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  नीति आयोग के प्रमुख अमिताभकांत ने 8 दिसम्बर को कहा कि भारत में इतना ज्यादा लोकतंत्र (टू मच डेमोक्रेसी) है कि कोई ठीक काम हो ही नहीं सकता। इसके दो दिन बाद 10 दिसम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में नए संसद भवन का शिलान्यास करते हुए कहा कि पूरी दुनिया बहुत जल्द भारत को 'मदर आफ डेमोक्रेसी' (लोकतंत्र की जननी) कहेगी। उसके बाद मैं इन कल्पनाओं में खो गया कि आखिर दोनों महानुभावों की डेमोक्रेसी को कैसे शब्दों में अमली जामा पहनाया जाए। अमिताभकांत उस नीति आयोग को चलाते हैं जो भारत सरकार का थिंक टैंक है। जहां योजनाएं सोची जाती हैं, फिर उन्हें लागू करने का तरीका खोजा जाता है। भारत की भावी तरक्की इसी नीति आयोग में तय होती है। नरेन्द्र मोदी भारत नामक उस देश के मुखिया हैं जो नीति आयोग को नियंत्रित करता है, और बदले में मोदी के विजन को नीति आयोग लागू करता है। आइए जानते हैं कि दरअसल 'टू मच डेमोक्रेसी' और 'मदर आफ डेमोक्रेसी' के जरिए दोनों क्या कहना चाहते होंगे। शायद वो ये कहना चाहते होंगे कि देश की जीडीपी में भारी गिरावट के लिए टू मच डेमोक्रेसी जिम्मेदार है। मोदी भक्त

हमारे पैसे की जाँच इनकम टैक्स करे और पीएम केयर्स फ़ंड की जाँच प्राइवेट फ़र्म क्यों करे

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पीएम केयर्स फ़ंड किसका पैसा है? चूँकि कर्मचारियों से भी इसके लिए अंशदान लिया गया, इसलिए यह जनता का पैसा है। पहले तो सरकार कहती रही कि इसके हिसाब किताब की जाँच कैग यानी भारतीय महालेखा परीक्षक और नियंत्रक के दायरे में नहीं आएगी यानी कोई जाँच पड़ताल नहीं। फिर सोशल मीडिया के दबाव में आपने इसके ऑडिट का ज़िम्मा एक प्राइवेट सीए कंपनी को दे दिया। मतलब सरकार को खुद अपनी एक महत्वपूर्ण एजेंसी कैग पर भरोसा नहीं है। जिस सीए कंपनी M/s SARC & Associates को पीएम केयर्स फ़ंड के ऑडिट का काम सौंपा गया, उसके मालिक सीए सुनील कुमार गुप्ता हैं। खुद सुनील कुमार गुप्ता के मुताबिक़ यह सीए कंपनी ब्रिटेन में भी काम करती है। अब पूछेंगे कि सुनील कुमार गुप्ता कौन हैं? इनके बारे में दिलचस्प जानकारियाँ सामने आई हैं। सुनील कुमार गुप्ता जी अब खुद को अर्थशास्त्री के रूप में ज्यादा प्रचारित करवाते हैं और सीए कम। वह चाहते हैं कि उन्हें बुद्धिजीवी स्वीकार किया जाए। गुप्ता जी संघ परिवार के व्यक्ति हैं। वह 2018 में शिकागो में हुए विश्व हिन्दू सम्मेलन में मोहन भागवत का भाषण सुनने गए थे। चलिए मान लेते हैं क

फ़ैसलों का गुजराती ढोकला

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मोदी जी ने आज अपने चुनाव क्षेत्र बनारस का हाल जानने के लिए वहां के भाजपा नेताओं को फोन किया। फोन पर बातचीत के दौरान बनारस के जिला भाजपा अध्यक्ष ने मोदी से कहा कि मास्क बनवाने की जरूरत है.... मोदी जी ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा - ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है। अपने इलाके में जो तौलिया या गमछा चलता है, उसी को मुंह पर लपेटिए। वही बेहतरीन मास्क है। cheap and hot items मोदी जी के इस सुझाव में बुराई नहीं देखनी चाहिए। ...पूरे देश को मुंह पर गमछा या तौलिया बांध लेना चाहिए।...बल्कि कुछ दिन के लिए गमछे को राष्ट्रीय रूमाल घोषित कर देना चाहिए।  चाहे उसे मुंह पर बांधो और अगर पेट खाली है तो उसमें अपने आंसू भी पोंछ लो। महंगाई में इससे सस्ता जुगाड़ और कहां मिलेगा। लेकिन इन भाजपाइयों को जरा भी शर्म नहीं आती। राष्ट्रीय संकट की घड़ी में मोदी जी से मास्क मांग रहे हैं।  बहरहाल, मास्क की जगह गमछे जैसा सुझाव मैं भी देशवासियों को देना चाहता हूं। मसलन...सेनिटाइजर नहीं है...जमीन पर हाथ रगड़िए फिर पानी से हाथ धो लीजिए। वेंटिलेटर नहीं है...तो अनुलोम विलोम कीजिए.... मु

कंधे पर लोकतंत्र...सरकार की नीयत और नीति

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#लॉकडाउन पर मोदी सरकार की नीति और नीयत पर कुछ खुलासा... #प्रधानमंत्री ने 26 मार्च को देश के सभी प्राइवेट #एफएम_रेडियो के जॉकी (आरजे) से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने की इच्छा जताई। प्रसार भारती ने सभी मीडिया हाउसों को संदेश भेजा। 27 मार्च यानी शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू हुई। करीब 45-46 रेडियो स्टेशनों के #आरजे , सीईओ और मालिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हो गए। #मोदी ने इन सभी को अपना भाषण पिलाया और उनके कर्तव्य बताए कि इस समय मॉस मीडिया (एफएम रेडियो) की क्या जिम्मेदारी है और उन्हें लॉकडाउन के समय सरकार के साथ चलना चाहिए। #पीएमओ में प्रधानमंत्री के सामने जो वीडियो स्क्रीन थी, उसमें सिर्फ 5 लोगों को #पीएम के सामने आने और सवाल पूछने की छूट मिली हुई थी, बाकी सारे लोग अपनी-अपनी लोकेशन पर तमाशबीन थे। जानते हैं इन पांच लोगों में जिन्हें स्क्रीन पर आने की अनुमति थी, उनमें वही #मोदी_भक्त _रजे शामिल थे। इनमें भी सबसे प्रमुख नाम #रेड_एफएम का #आरजे_रौनक था। इसके अलावा #रेडियो पर काफी चीख पुकार मचाने वाला आरजे भी था। आरज

कोई चिट्ठी से न मारो...मेरे मोदी दीवाने को

अरे बाबा...बड़ा डर लगता है रे...अपने मोदी जी की कुछ सिरफिरे हत्या करना चाहते हैं।...सब मिलकर उनकी सलामती के लिए दुआ करो भाइयों-बहनों... कौन हैं ये लोग...कोई शहरी नक्सली बताए जाते हैं। ...मतलब शहर में रहने वाले कुछ सिरफिरे हैं जो यह करना चाहते हैं।...पुलिस ने किसी सादे काग़ज़ पर लिखी चिट्ठी बरामद की है जिसमें किसी ने मोदी जी की हत्या के बारे में लिखा है... मतलब कितने कमअक्ल हैं ये बदमाश की चिट्ठी लिखकर यह बात बताते हैं...बहुत दुर्दिन चल रहे हैं नक्सलियों के...हरामजादों चिट्ठी लिखकर मोदी जी को भला कैसे मारने देंगे हम लोग, तुम लोगों को...जिस देश ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या देखी...इंदिरा गांधी की हत्या देखी...राजीव गांधी की हत्या देखी...न कोई चिट्ठी ...न संदेश...न तारीख़ पर तारीख़...धायं- धायं की और उड़ा दिया...ये कौन बदमाश है जो चिट्ठी लिखकर मोदी जी को मारने चला है...सवा सत्यानाश हो उसका... अपना मोदी तो सवा सेर है।...पट्ठा खुली जीप में रोडशो करता है।...कश्मीर चला जाता है...जैसे कोई मसीहा आया हो.... सारा प्रोग्राम मीडिया चार दिन पहले बता देता है कि देश का प्रध

लालकिले की आड़ में डालमिया का पीआर

मोदी सरकार ने लालकिला अगर डालमिया ग्रुप को 25 करोड़ रुपये में गोद दे दिया है तो इसमें हर्ज क्या है...देख रहा हूं सुबह से इसी पर सारे लोग ज्ञान बघार रहे हैं... बात सिर्फ इतनी सी है कि ब्यूरोक्रेसी और कॉरपोरेट मिलकर इस तरह का खेल करते रहते हैं। ये सारी चीजें विशुद्ध संपर्क बढ़ाने या पीआर के लिए की जाती हैं।... डालमिया ग्रुप के लिए 25 करोड़ कुछ नहीं है...लेकिन इसके बदले इसके मालिक उन सारी सरकारी मीटिंगों में बैठेंगे, मंत्रियों से बात करेंगे...प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिचेंगी। ... अगर डालमिया ग्रुप का मालिक सीधे प्रधानमंत्री के पास जाएगा तो शायद मुलाकात भी न हो सके...लेकिन लालकिले को खूबसूरत बनाने के नाम पर यह मुलाकात संभव है.... हो सकता है कि वह मोदी को तरकीब बताए कि इस बार 15 अगस्त पर जब आप आखिरी भाषण देंगे तो आपके बगल में मिशन 2019 का एक गुब्बारा लहराता रहेगा, ताकि देश के करोड़ों लोगों तक आपका संकेत सीधे पहुंच जाए और मोदी जी डालमिया ग्रुप के मालिक के लिए फौरन पद्मश्री वगैरह का इंतजाम कर दें... क्या आपको वित्त मंत्रालय का वह कार्यक्रम याद है जि