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कैसे यलगार हो...Kaise Yalgaar Ho

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होशियार हो जाओ...और तैयार हो जाओ... सिम सिम खुल जा और खुल गया... उस देश की फासिस्ट सरकार ने आपको चारों तरफ से घेर कर पटक दिया है। आप कहीं के नहीं रहे... आप उस देश में या तो नौकरी करते होंगे या करते रहे होंगे या मज़दूरी करते होंगे या करते रहे होंगे। नौकरियां जा रही है...या जाने वाली होंगी।...मज़दूरी का काम तब मिलेगा जब कहीं कुछ होगा।  आप इन चीज़ों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे तो पुलिस दौड़ाकर पीटेगी... अगर आपने उस देश के अस्पतालों की हालत पर प्रदर्शन करना चाहा तो भी पीटे जाओगे। गोया आपके प्रदर्शन का हथियार भी छिन चुका है।  हरामखोरी के प्रतीक मिडिल क्लास के लिए फिर से हिन्दू मुसलमान का नैरेटिव तैयार है। वह इसी में उलझ जाएगा। बहुत होगा तो आपके लिए कैंडल लाइट लेकर खड़ा होगा। इसी मिडिल क्लास के बच्चों को फर्जी राष्ट्रवाद पढ़ा दिया गया है। (Nation First) देश पहले है - के बाद जिनकी चेतना औसत दर्जे से भी घटिया यूट्यूबर कैरी मिनाती  (CarryMinati) के “यलगार” (Yalgaar) जैसी धुनों पर ही जागती है। उसे कामगारों, मज़दूरों की भूख, उनकी तड़प, बीमारी से मतलब नहीं

कोरोनाई पत्रकार और जाहिल मुसलमान

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तबलीगी जमात की आड़ में मुसलमानों को विलेन बनाने की खबरों में अब धीरे-धीरे कमी आ रही है। ...लेकिन आप जानना नहीं चाहते कि अचानक यह कमी कैसे आ गई। दरअसल, #अयोध्या में हिंदू श्रद्धालुओं का मंदिरों में बड़ी तादाद में पहुंचना और उस वीडियो का वायरल होना। एक और वीडियो वायरल है जिसमें #भाजपा सांसद मनोज तिवारी अपने चमचों की भीड़ के साथ मास्क बांटते घूम रहे हैं। वीडियो तो और भी हैं लेकिन अयोध्या पर आए वीडियो से मुख्यधारा का #मीडिया डर गया है। इसके अलावा मीडिया का वो चेहरा भी बेनकाब हुआ, जिसमें उसने एक कैदी के थूकने की घटना का वीडियो तबलीगी जमात का बताकर प्रचारित कर दिया था। इसके अलावा एक दूसरे मौलाना सज्जाद नोमानी का फोटो मौलाना साद बनाकर जारी कर दिया था।...लेकिन मजाल है कि मीडिया के जिन भक्तों ने यह काम किया है, उन्होंने माफी मांगी हो। वाकई पत्रकार जिसे कहते हैं, वो अब कमजर्फ जमात बनते जा रहे हैं। वे खुद एक #कोरोना में तब्दील हो गए हैं। #तबलीगीजमात ने जो जाहिलपना दिखाया, उसमें उसका पक्ष नहीं लेते हुए, बात कमजर्फ पत्रकार जमात और कमजर्फ मीडिया पर करना जरूरी है। क्योंकि सीजफायर कंपनी

साम्प्रदायिक वायरस और निज़ामुद्दीन में जमाती

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साम्प्रदायिक वायरस (Communal Virus) किसी भी कोरोना वायरस से ज्यादा ख़तरनाक है। कोरोना खत्म हो जाएगा लेकिन साम्प्रदायिक वायरस कभी खत्म नहीं होगा। सरकारी पार्कों में #नागपुरी_शाखाएँ_बंद हैं लेकिन उनके कीटाणु तमाम मीडिया आउटलेट्स में प्रवेश कर चुके हैं और उनके ज़रिए #साम्प्रदायिकवायरस को फैलाने का काम जारी है। भेड़िए को अगर इंसान का ख़ून मुँह में लग जाए तो वह रोज़ाना इंसान का शिकार करने निकलता है। तमाम #टीवी चैनल और कुछ पत्रकारों की हालत इंसानी ख़ून को पसंद करने वाले भेड़िए जैसी हो गई है। #कोरोना में साम्प्रदायिक नुक़्ता अभी तक नदारद या नजरन्दाज था। लेकिन भेड़ियों के झुंड ने आख़िरकार दिल्ली के हज़रत #निज़ामुद्दीन बस्ती के एक मरकज़ की #तबलीगी_जमात में जाकर तलाश लिया। हालाँकि #तबलीगीजमात वग़ैरह जैसी चीज़ों के मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत खिलाफ हूँ। जिन लोगों की दुनिया खुदा के #रसूल और उनके #अहलेबैत, #सूफीज्म से आगे नहीं बढ़ती वो कोई भी तबलीग कर लें, ऊँचा पाजामा पहन लें, कम से कम #इस्लाम को तो नहीं फैला रहे। अभी जो घटना हुई उससे लोगों को बचाया जा सकता था। लेकिन तबलीगी जमात मे

कंधे पर लोकतंत्र...सरकार की नीयत और नीति

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#लॉकडाउन पर मोदी सरकार की नीति और नीयत पर कुछ खुलासा... #प्रधानमंत्री ने 26 मार्च को देश के सभी प्राइवेट #एफएम_रेडियो के जॉकी (आरजे) से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने की इच्छा जताई। प्रसार भारती ने सभी मीडिया हाउसों को संदेश भेजा। 27 मार्च यानी शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू हुई। करीब 45-46 रेडियो स्टेशनों के #आरजे , सीईओ और मालिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हो गए। #मोदी ने इन सभी को अपना भाषण पिलाया और उनके कर्तव्य बताए कि इस समय मॉस मीडिया (एफएम रेडियो) की क्या जिम्मेदारी है और उन्हें लॉकडाउन के समय सरकार के साथ चलना चाहिए। #पीएमओ में प्रधानमंत्री के सामने जो वीडियो स्क्रीन थी, उसमें सिर्फ 5 लोगों को #पीएम के सामने आने और सवाल पूछने की छूट मिली हुई थी, बाकी सारे लोग अपनी-अपनी लोकेशन पर तमाशबीन थे। जानते हैं इन पांच लोगों में जिन्हें स्क्रीन पर आने की अनुमति थी, उनमें वही #मोदी_भक्त _रजे शामिल थे। इनमें भी सबसे प्रमुख नाम #रेड_एफएम का #आरजे_रौनक था। इसके अलावा #रेडियो पर काफी चीख पुकार मचाने वाला आरजे भी था। आरज

लघु कथा: क्वारंटाइन

मोबाइल लॉक करते ही स्क्रीन पर अंधेरा छा गया। डिजिटल दुनिया क़ैद हो चुकी थी। उसकी आँखों के सामने स्क्रीन पर बाहर दुनिया की परछाईं किसी फ़िल्म सीन जैसी लगी। वह लेटी लेटी अपने बिस्तर से उठी, विंडो से बाहर देखा। बाहर के आज़ाद नज़ारों को देखकर उसकी नज़रें ललचा रही थीं। फिर यूँ ही उसके मन में ख़्याल आया कि चीज़ों की कीमत उनके खो जाने के बाद क्यों पता चलती है?  -मुस्तजाब किरमानी 

ताली और थाली का निहितार्थ समझिए...

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प्रधानमंत्री मोदी जी ने आपसे आज (22 मार्च शाम 5 बजे) जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली यूं ही नहीं बजवा दिया।... संघ पोषित व िचारों की आड़ लेकर सरकार द्वारा प्रायोजित इतना बड़ा जन एकजुटता का प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था।  जिन लोगों ने इसे नहीं बजाया, उन्हें अपने उन पड़ोसियों की वजह से हीन भावना में आने की जरूरत नहीं है जिन्होंने जमकर बजाया।...और इतना जोर से बजाया कि परिंदे भी डर गए... आपके जिन पड़ोसियों ने इस मौके पर पटाखे छोड़े हैं, उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं पालें। # मोदी जी ने उनसे ताली और थाली बजाने को कहा था, बेचारों ने खुशी में पटाखे भी चला दिए। लेकिन दरअसल वे नादान ही तो थे, अनजाने में पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया जो इस वक्त # ग्लोबल_वार्मिंग से मुक्त होकर सुखद सांस ले रहा था। तो...आइए इस # ताली_और_थाली_बजाने_का_निहितार्थ समझते हैं... अगर किसी को # 1992_में_मंदिर_आंदोलन और लालकृष्ण # आडवाणी की रथ यात्रा के दिनों की कुछ घटनाएं याद हों तो वो आसानी से आज के ताली और थाली बजाने को समझ जाएंगे। लेकिन जिन्हें याद नहीं या जो उस समय नहीं पैदा हुए