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एक महीने बाद फराज का बांग्लादेश

...मेरा ये लेख आज के नवभारत टाइम्स लखनऊ संस्करण में प्रकाशित हो चुका है। ईपेपर का लिंक लेख के अंत में है।... बांग्लादेश में एक महीने बाद भी लोग ढाका के रेस्तरां में हुए हमले से उबर नहीं पाए हैं। 1 जुलाई 2016 को यहां आतंकवादियों के हमले में 28 लोग मारे गए थे। इन्हीं में था बांग्लादेशी स्टूडेंट फराज हुसैन, जिसने अपने साथ पढ़ने वाली भारतीय लड़की को बचाने के लिए जान दे दी। फराज का परिवार दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली आतंकी घटना पर अभी भी सिहर उठता है। फराज के बड़े भाई जरेफ हुसैन ने फोन पर ढाका से एनबीटी से कहा कि ...लगता है कि आईएस के आतंकियों ने इस्लाम का अपहरण कर लिया है और वो कोई पुराना बदला चुकाने के लिए लोगों को मार रहे हैं। जरेफ हुसैन कहते हैं कि जब हमसे हमारी सबसे प्यारी चीज ही छीन ली गई तो बताइए ऐसे आतंकियों के लिए हम क्यों दिल में साफ्ट कॉर्नर रखें। इन आतंकियों ने सिर्फ हमारे परिवार को मुश्किल में नहीं डाला है बल्कि पूरे इस्लाम को ही खतरे में डाल दिया है। आईएस आतंकियों का मकसद लोगों को मार कर धर्म को मजबूत करना नहीं है बल्कि वो इसकी आड़ में इस्लाम को ही बर्बाद कर द

सोशल मीडिया का अनसोशल खेल

जिस सोशल मीडिया (Social Media) की बदौलत सरकारें गिराने और बदलने के दावे कल तक किए जा रहे थे, वो दावे अब खाक होते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म की लगभग सारी साइटों को चूंकि बिजनेस करना है, इसलिए उन्हें अलग-अलग देशों में वहां की सरकार के सामने घुटने टेकने पड़ रहे हैं। हाल ही में फेसबुक (Facebook) और ट्विटर ने अपनी साइट से 70 फीसदी ऐसा कंटेंट हटाया है जो इस्राइल के खिलाफ फलस्तीन के संघर्ष को बताता है। इस्राइल (Twitter) की कानून मंत्री आयलेट शाकेड ने वहां की संसद में हाल ही में घोषणा की कि आखिरकार हम अपने मकसद में कामयाब हो गए। फेसबुक और ट्विटर 70 फीसदी फलस्तीनी कंटेंट हटाने को राजी हो गए हैं। उन्होंने संसद में जो लाइन पढ़ी , उसमें कहा इस्राइल को फेसबुक, ट्विटर और गूगल (Google) से काफी सहयोग मिला है और हमें ये कहते हुए खुशी हो रही है कि तमाम सोशल मीडिया साइटों से इस्राइल विरोधी लाखों पोस्ट, अकाउंट, विडियो हटा दिए गए हैं। आयलेट की घोषणा से पहले ये आऱोप लगते रहे हैं कि फेसबुक, ट्विटर के अलावा गूगल पर इस बात का दबाव है कि वो अपने-अपने प्लैटफॉर्म औऱ सर्च इंजन (Search Engine) से

पैकेज किसी और का, जाकिर नायक सिर्फ सेल्स एजेंट

नोट ः मेरा यह लेख आज (12 जुलाई 2016) नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। हिंदीवाणी के पाठकों के लिए इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है... कुछ आतंकवादी घटनाओं के बाद सरकारी एजेंसियों और मीडिया की नजर इस्लाम की वहाबी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने वाले कथावाचक टाइप शख्स जाकिर नायक की तरफ गई है। उनके खिलाफ जांच भी शुरू हो चुकी है, जिसका नतीजा आना बाकी है। हालांकि जाकिर नायक ने ढाका की आतंकी घटना के कई दिन बाद मक्का में उसकी निंदा की और कहा कि इस्लाम किसी की जान लेने की इजाजत नहीं देता है। जाकिर नायक ने अपने बचाव में उसी इस्लाम और धार्मिक पुस्तक कुरान का सहारा लिया जिसकी आयतों की मीमांसा (तफसीर) को वो अभी तक तोड़ मरोड़कर पेश करते रहे और तमाम युवक-युवतियां उसे सुन-सुनकर उसी को असली इस्लाम मान लेने में यकीन करते रहे। हर धर्म के युवक-युवतियों के साथ ऐसा छल उस धर्म के कथावाचक पिछले कई दशक से कर रहे हैं, जिसमें धर्म तो कहीं पीछे छूट गया लेकिन खुद के बनाए सिद्धांत को आगे रखकर किसी खास विचारधारा का प्रचार प्रसार करना उसका मुख्य मकसद हो गया। कुरान अरबी में है। भारत

जिहाद का गेटवे

नोट ः नवभारत टाइम्स, दिल्ली में  03 जून 2016 के अंक में प्रकाशित मेरा आलेख अमेरिका के अरलैंडों, फ्लोरिडा से लेकर इस्तांबुल के अतातुर्क एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट का नाम सामने बार-बार आया है। अमेरिका में 9 /11 के बाद वहां के बारे में दावा किया गया था कि अमेरिका ने अपनी सुरक्षा इतनी मजबूत कर ली है कि वहां अब कुछ भी होना नामुमकिन है। लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं ने इस सुरक्षा कवच की धज्जियां उड़ा दीं। आखिर कैसे आईएस इतना मजबूत होता जा रहा है और दुनिया की सारी सुरक्षा एजेंसियां उसके सामने बौनी साबित हो रही हैं।     अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी आफ ह्यूमन राइट्स के डायरेक्टर डेविड एल. फिलिप्स ने एक रिसर्च पेपर जारी किया है, जिसमें कुछ कड़ियों को जोड़ते हुए जवाब तलाशने की कोशिश की गई है। डेविड अमेरिकी विदेश मंत्रालय में बतौर विदेशी मामलों के विशेषज्ञ के रूप में नौकरी भी कर चुके हैं। वह कई थिंक टैंक से भी जुड़े हुए हैं। उनके रिसर्च पेपर के मुताबिक तुर्की का बॉर्डर आईएस और दूसरे आतंकी संगठनों के बीच जिहाद का गेटवे के रूप में जाना जा