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आखिर ख्वाब का दर बंद क्यों है?

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मशहूर शायर शहरयार की यह रचना मुझे इतनी पसंद है कि मैं जब भी इसे पढ़ता हूं, बेहद इमोशनल हो जाता हूं। यहां मैं अपने ब्लॉग पर उस रचना को उन लोगों के लिए पेश करना चाहता हूं जिनकी नजरों से यह नहीं गुजरी है। शहरयार साहब की शायरी मौजूदा वक्त की हकीकत को बयान करती नजर आती है, आप अपने तरीके से इसके बारे में सोच सकते हैं। इस रचना का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि मौजूदा हालात में तमाम शायर और अदीब के लोगों को जो आवाज उठानी चाहिए, वह नहीं उठा रहे हैं। हिंदी और उर्दू में साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त है, इनमें से कोई रोमांटिक शायरी में डूबा हुआ है तो कोई इस कदर संवेदनशील हो गया है कि उसको आम आदमी के सरोकार नहीं दिखाई दे रहे हैं। वह अपनी मां, बहन और भाई में अपनी संवेदना के बिम्ब तलाश रहा है। कई लोग तरक्की पसंद होने का दंभ भर रहे हैं लेकिन बड़े मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत से ही फुरसत नहीं है। बहरहाल, शहरयार की कलम न रूकी है न रूकेगी...मुझे तो ऐसा ही लगता है। और हां, शहरयार की यह रचना मैं वाङमय पत्रिका से साभार सहित ले रहा हूं, जहां मूल रूप से इसका प्रकाशन हुआ है। देखिए वो क्या कह रहे हैं...