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हिंदुत्व की धारणा विकास विरोधी क्यों है

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- टी.के. अरुण नरेंद्र मोदी इस समझ को सिरे से खारिज करते हैं कि हिंदुत्व के साथ विकास की कोई संगति नहीं बैठ सकती। गुजरात की प्रगति को वे अपनी बात के सबूत के तौर पर पेश करते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि गुजरात का प्रशासन गतिशील है और यह भारत के सबसे तेजी से आगे बढ़ रहे राज्यों में एक है। भारतीय उद्यमी जगत के कई प्रमुख नाम तो मोदी को एक दिन भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। फिर विकास को मुद्दा बनाकर हिंदुत्व के बारे में खामखा की एक बहस खड़ी करने का भला क्या औचित्य है? औचित्य है, क्योंकि हिंदुत्व विकास की मूल प्रस्थापना का ही निषेध करने वाली अवधारणा है। हिंदुत्व निश्चय ही हिंदू धर्म से पूरी तरह अलग चीज है। हिंदू धर्म एक सर्व-समावेशी, वैविध्यपूर्ण, बहुदेववादी धर्म और संस्कृति है, जिसका अनुसरण भारत के 80 प्रतिशत लोग करते हैं। इसके बरक्स हिंदुत्व भारतीय समाज को गैर-हिंदुओं के प्रति शत्रुता के आधार पर संगठित करना चाहता है और भारतीय राष्ट्रवाद को कुछ इस तरह पुनर्परिभाषित करना चाहता है कि धार्मिक अल्पसंख्यक इसमें दूसरे दर्जे के नागरिक बन कर रह जाएं। क्या यह घिसा-पिटा आरोप नहीं है?