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लाल बत्ती से पब्लिक को क्या लेना - देना

वीआईपी गाड़ियों से लाल बत्ती वापस लेकर क्या केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है...दरअसल, यह शहरी मध्यम वर्गीय लोगों की एक पुरानी मांग थी, जिस पर सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। ...वरना गांव के किसानों...गरीबों...रोज की दिहाड़ी कमाने वाले मजदूरो...को इन लाल बत्तियों से लेना-देना नहीं था। उन्हें इस बात से रत्ती भर फर्क पड़ने वाला नहीं है कि उनके सामने या पास से कौन #लालबत्ती से गुजरा। ...नरेंद्र #मोदी समेत तमाम असंख्य मंत्रियों और उनकी पार्टी के नेताओं को अच्छी तरह मालूम है कि जब तक ये लोग सत्ता से बाहर रहे तो इन्होंने शहरी मध्यम वर्गीय लोगों के बीच एक माहौल बनाया कि लाल बत्ती एक #वीआईपी कल्चर है और इसे खत्म होना चाहिए। क्योंकि तब #कांग्रेस सत्ता में थी और उसका छुटभैया नेता भी लाल बत्ती लगाए घूमता था। मेरा खुद का अनुभव है कि शहरी मध्यम वर्ग लाल बत्ती को बहुत अच्छी निगाह से नहीं देखता। कई ऐसे मामले भी सामने आए, जब लाल बत्ती वाली गाड़ियां तमाम तरह के अपराधों में लिप्त पाई गईं।...#भारतीयजनतापार्टी अभी भी शहरी मध्यम वर्गीय लोगों की पार्टी है।...इसलिए इस वर्ग को खुश करने के लिए उसने यह कदम

पैकेज किसी और का, जाकिर नायक सिर्फ सेल्स एजेंट

नोट ः मेरा यह लेख आज (12 जुलाई 2016) नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। हिंदीवाणी के पाठकों के लिए इसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है... कुछ आतंकवादी घटनाओं के बाद सरकारी एजेंसियों और मीडिया की नजर इस्लाम की वहाबी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने वाले कथावाचक टाइप शख्स जाकिर नायक की तरफ गई है। उनके खिलाफ जांच भी शुरू हो चुकी है, जिसका नतीजा आना बाकी है। हालांकि जाकिर नायक ने ढाका की आतंकी घटना के कई दिन बाद मक्का में उसकी निंदा की और कहा कि इस्लाम किसी की जान लेने की इजाजत नहीं देता है। जाकिर नायक ने अपने बचाव में उसी इस्लाम और धार्मिक पुस्तक कुरान का सहारा लिया जिसकी आयतों की मीमांसा (तफसीर) को वो अभी तक तोड़ मरोड़कर पेश करते रहे और तमाम युवक-युवतियां उसे सुन-सुनकर उसी को असली इस्लाम मान लेने में यकीन करते रहे। हर धर्म के युवक-युवतियों के साथ ऐसा छल उस धर्म के कथावाचक पिछले कई दशक से कर रहे हैं, जिसमें धर्म तो कहीं पीछे छूट गया लेकिन खुद के बनाए सिद्धांत को आगे रखकर किसी खास विचारधारा का प्रचार प्रसार करना उसका मुख्य मकसद हो गया। कुरान अरबी में है। भारत

सिर्फ परंपरा निभाने के लिए मत मनाइए बकरीद

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आपकी नजर से वह तस्वीरें जरूर गुजरी होंगी, जिनमें कुरबानी (Sacrifice) के बकरे काजू, बादाम और पिज्जा (Pizza)खाते हुए नजर आ रहे होंगे। यह सिलसिला कई साल से दोहराया जा रहा है और हर साल यह रिवाज बढ़ता ही जा रहा है। जिसके पास जितना पैसा (Money)है, वह उसी हिसाब से कुरबानी के बकरे की सेवा करता है और उसके बाद उसे हलाल कर देता है। यह अब रुतबे का सबब बन गया है। जिसके पास जितना ज्यादा पैसा, उसके पास उतना ही शानदार कुरबानी का बकरा और उसकी सेवा के लिए उतने ही इंतजाम। इस्लाम के जिस संदेश को पहुंचाने के लिए इस त्योहार का सृजन हुआ, उसका मकसद कहीं पीछे छूटता जा रहा है। इस त्योहार (Festival)की फिलासफी किसी हलाल जानवर की कुरबानी देना भर नहीं है। इस्लाम ने इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा सिर्फ इसलिए नहीं बनाया कि लोग खुश होकर खूब पैसा लुटाएं और उसका दिखावा भी करें। हजरत इब्राहीम से अल्लाह ने अपनी सबसे कीमती चीज की कुरबानी मांगी थी। उन्होंने काफी सोचने के बाद अपने बेटे की कुरबानी का फैसला किया। उनके पास एक विकल्प यह भी था कि वह किसी जानवर की बलि देकर अपनी भक्ति पूरी कर लेते, लेकिन उन्होंने वह फैसला किया जिसके

भजन और अजान को मधुर और विनम्र होना चाहिए

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अजान की आवाज आपने कभी न कभी जरूर सुनी होगी। इसमें एक तरह का निमंत्रण होता है नमाजियों के लिए कि आइए आप भी शामिल हो जाएं ईश्वरीय इबादत में। अजान का उद्घोष आपका रुख ईश्वर की ओर मोडऩे के लिए होता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने अपने समय में हजरत बिलाल को खास तौर पर अजान देने का निर्देश दिया था। हजरत बिलाल का उस समय अरब समाज में जो स्टेटस था, वह बाकी लोगों के मुकाबले बहुत निम्न स्तरीय था। वह ब्लैक थे और एक यहूदी के यहां गुलाम थे। उन्हें पैगंबर मोहम्मद साहब ने ही आजाद कराया था। उन्होंने अजान के लिए हजरत बिलाल का चयन बहुत सोच समझकर किया था। इस्लाम की तारीख में पैगंबर के इस फैसले को इतिहासकारों ने सामाजिक क्रांति का नाम दिया है। अजान में जो बात पढ़ी जाती है, उसका मतलब है इबादत के लिए बुलाना। इसमें इस बात को भी दोहराया जाता है कि और कोई ईश्वर नहीं है। अरब में जब इस्लाम फैला और अजान की शुरुआत हुई, उन दिनों लाउडस्पीकर नहीं थे। सुरीली आवाज में अजान का प्रचलन सिर्फ इसलिए शुरू हुआ कि लोगों तक यह सूचना सुखद ढंग से पहुंचे कि नमाज का वक्त हो चुका है। जब लाउडस्पीकर - माइक का आविष्कार हो गया तो लोगों त