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मेरी ज़िन्दगी का शाहीनबाग़ भी कम नहीं था: अरूणा सिन्हा

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लेखिका : अरूणा सिन्हा टीवी देखने का टाइम कहां था मेरे पास। जब तक बच्चे और ‘ये’ स्कूल-ऑफिस के लिए निकल नहीं जाते तब तक एक टांग पर खड़े-खड़े भी क्या भागना-दौड़ना पड़ता था। कभी यह चाहिए तो कभी वो - मेरा रूमाल कहां है? मेरे मोजे कहां हैं? तो नाश्ता अभी तक तैयार नहीं हुआ? बस यही आवाजें कान में सुनाई देती थीं और वो भी इतनी कर्कश मानो कानों में सीसा घुल रहा हो। इस आवाज से बच्चे भी सहमे रहते थे। पापा के रहने तक तो ऐसा लगता था मानो उनके मुंह में जुबान ही न हो। शादी को दस साल हो चुके थे। पहली रात ही इनका असली रूप सामने आ गया था। मैं मन में सपने संजोए अपनी सुहागरात में अकेली कमरे में इनके आने का इंतजार कर रही थी। नींद की झपकी आने लगी तो लेट गयी। लगभग दो बजे दरवाजा खुलने की आहट सुन मेरी नींद भरी आंखें दरवाजे की ओर मुड़ गयीं। लड़खड़ाते कदमों से अंदर दाखिल होते ही पहला वाक्य एक तमाचे की तरह आया - ‘बड़ी नींद आ रही है?’ आवाज की कर्कशता की मैं उपेक्षा कर गयी। लगा बोलने का अंदाज ऐसा होगा। क्योंकि हमारा कोई प्रेम विवाह तो था नहीं। मां-बाप ने जिसके साथ बांध दिया बंधकर यहां पहुंच गयी थी। शादी के लिए मुझे द

पुलिस के कंधे पर लोकतंत्र का जनाजा

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Coffin of Democracy on Police's Shoulder -यूसुफ़ किरमानी दो दिन पहले एक बच्ची से मुलाकात हुई जो दूसरी क्लास में पढ़ती थी, बहुत बातूनी थी। भारतीय परंपरा के अनुसार मैंने उससे सवाल पूछा, बेटी बड़ी होकर क्या बनोगी...बच्ची ने तपाक से जवाब दिया, पुलिस। अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं डॉक्टर, इंजीनियर, खिलाड़ी, पायलट, आईएएस जैसे किसी जवाब के इंतजार में था। क्योंकि ज्यादातर बच्चे इसी तरह के जवाब देते रहे हैं। मैंने अपनी जिज्ञासा को बढ़ाते हुए उससे पूछा कि बेटी, पुलिस क्यों बनना चाहती हो। उसने कहा, क्योंकि पुलिस ही तो हमको बचाती है। अब जैसे कोरोना में पुलिस ही तो हमको बचा रही है। मैं हैरानी से काफी देर उसके जवाब पर मनन करता रहा। अभी कल यानी शुक्रवार को तमिलनाडु के तूतीकोरिन से यह दहलाने वाली खबर आई कि पुलिस वहां एक मोबाइल शॉप से बाप-बेटे ( #Jeyaraj and #Fenix ) को इसलिए पकड़कर ले गई, वो अपनी दुकान तय समय से पांच मिनट देर तक क्यों खोले हुए थे। पुलिस ने थाने में उनकी जमकर इतनी पिटाई की थी कि वे जब घर आए तो उनके गुप्तांगों से खून बह रहा था। बाद में दोनों की मौत हो गई। इस घटना स

हमारे बाद अंधेरा नहीं, उजाला होगा...

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- ज़ुलेखा जबीन आजका दौर भारतीय नारीवाद के गुज़रे स्वर्णिम इतिहास पे चिंतन-मनन किए जाने का है... यक़ीनन ये वक़्त ठहर कर ये सवाल पूछने का भी है कि भारत के नारीवादी आंदोलन का वर्ग चरित्र हक़ीक़त में क्या और कैसा रहा है....! हालांकि इन बेहद ज़रूरी सवालों को कई तरह के "प्रतिप्रश्नों" के ज़रिए "उड़ा" दिए जाने की भरसक कोशिशें की जाएंगी लेकिन फ़िर भी असहज कर दिए जाने वाले सवाल उठाना जम्हूरियत की असली ख़ूबसूरती तो है ही, लोकतंत्र में जी रहे तमाम आम नागरिकों के नागरिक होने का इम्तिहान भी है।... पिछले कुछ दिनों से जामिया यूनिवर्सिटी की स्कालर और ग़ैर संवैधानिक #CAA, #NRC #NPR  पर एक नौजवान नागरिक #सफ़ूरा जरगर की गिरफ़्तारी, उस पर राजद्रोह से लेकर हत्या करने, हथियार रखने, दंगे भड़काने जैसी गतिविधियों सहित 18 धाराएं लगाई गई हैं।  इसके साथ ही जेल में की गई मेडिकल जांच में उसके प्रेग्नेंट होने की ख़बर सामने आने के बाद भारत के बहुसंख्यक समाज के लुंपन एलिमेंट्स की तरफ़ से सोशल मीडिया में जो शाब्दिक बवाल मचाया गया वो तो अपेक्षित था। जो अनापेक्षित रहा वो इ

शिकार की तलाश में सरकार

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शिकार की तलाश में सरकार सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है... जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है... ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है। इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।  कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है। रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...

शाहीनबाग के तीन महीने...हमने क्या पाया...

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दिल्ली में शाहीनबाग के शांतिपूर्ण  संघर्ष को तीन महीने पूरे हुए... सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर सूरते हाल क्या होगी, नहीं मालूम, लेकिन हमें इस बात का सुकून रहेगा कि हमने अपना ज़मीर मरने नहीं दिया... हमने इस संघर्ष में ऐसे बच्चों को तैयार कर दिया है जो आने वाली नस्लों को बताएंगे कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई के लिए बनाए गए शाहीनबाग के वो चश्मदीद हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनके सामने हमारे अतीत को शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा...  हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, ब्यूरोक्रेट, जज बनने पर यह समझ होगी कि जनभावनाएं और मानवाधिकार क्या होते हैं... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जिन्हें किसी शाखा में ज़हरीला राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाया गया, बल्कि जिन्हें सड़क किनारे बनाई गई अभावग्रस्त लाइब्रेरी में शहीद भगत सिंह, गौरी लंकेश, बिस्मिल, आज़ाद, वीर अब्दुल हमीद, दाभोलकर, कलाम...को पढ़ाया गया... हमने ऐसे बच्चे तैयार किए जो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि वो ऐसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए आगे बढ़े जब ख़ाकी पहने हुए गुंडों ने उन पर हमला बोला...

60 दिन का आंदोलनबाग - शाहीनबाग

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शाहीनबाग आंदोलन 60 दिन पुराना हो गया है। जहरीले चुनाव से उबरी दिल्ली में किसी आंदोलन का दो महीने जिंदा रहना और फिलहाल पीछे न हटने के संकल्प ने इसे आंदोलनबाग बना दिया है। ऐसा आंदोलनबाग जिसे तौहीनबाग बताने की कोशिश की गई, लेकिन शाहीनबाग की हिजाबी महिलाओं ने तमाम शहरों में कई सौ शाहीनबाग खड़े कर दिए हैं। बिना किसी मार्केटिंग के सहारे चल रहे महिलाओं के इस आंदोलन को कभी धार्मिक तो कभी आयडेंटिटी पॉलिटिक्स (पहचनवाने की राजनीति) बताकर खारिज करने की कोशिश की गई। लेकिन आजाद भारत में मात्र किसी कानून के विरोध में हिजाबी महिलाओं का आंदोलन इतना लंबा कभी नहीं चला।  #शाहीनबाग_में_महिलाओं_का_आंदोलन  15 दिसंबर  2019  से शुरु हुआ था। आंदोलन की शुरुआत शाहीनबाग के पास #जामिया_मिल्लिया_इस्लामिया में समान नागरिकता कानून (#सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (#एनआरसी) के खिलाफ छात्र-छात्राओं के आंदोलन पर पुलिस लाठी चार्ज के खिलाफ हुई थी। शाहीनबाग की महिलाओं के नक्श-ए-कदम पर #बिहार में गया , उत्तर प्रदेश में #लखनऊ, #इलाहाबाद और #कानपुर तो पश्चिम बंगाल में कोलकाता में इसी तर्ज पर महिलाएं इसी मुद्दे पर ध

मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

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यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का... अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है... शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया... मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के