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क्या भारतीय मीडिया पर बुलडोजर चलाने की जरूरत है... If Indian Media Should be Buldoz

 मुंबई के पत्रकार मित्र उमा शंकर सिंह ने लिखा है कि नोएडा में जितने भी न्यूज़ चैनल हैं, उनकी बिल्डिंगों पर बुलडोज़र चला दिए जाएँ। ताकि इन चैनलों को हमेशा के लिए नेस्तोनाबूद कर दिया जाए। उमा भाई की यह टिप्पणी यूँ ही नहीं आई, बल्कि इसके पीछे उनकी जो टीस छिपी हुई है, उसे समझना और उस पर बात करना बेहद ज़रूरी है। दरअसल, सबसे तेज़ चैनल और एक चावल व्यापारी के चैनल ने सिविल सर्विस के फ़ाइनल नतीजे आने के बाद ख़बरें चलाईं कि मुस्लिम युवक युवतियों को सिविल सर्विस के जरिए भारत सरकार की नौकरियों में घुसाया जा रहा है। उसमें यह भी बताया गया कि साल दर साल सिविल सेवा में परीक्षा देने वाले मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। यह चिंता की बात है। इस संबंध में सबसे पहले इंडियन पुलिस फ़ाउंडेशन ने ट्वीट करके ऐतराज़ जताया। फ़ाउंडेशन ने कहा कि यह बहुत शर्म की बात है कि मीडिया इस तरह नफ़रत फैलाकर देश में अस्थिरता पैदा करना चाहता है। फ़ाउंडेशन मे न्यूज़ चैनलों की संस्था ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड से इस संबंध में कार्रवाई को कहा। पत्रकार उमा शंकर सिंह और हमारे जैसे लोगों ने भी लश्कर

अब पछताने से फायदा क्या...

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भारतीय राजनीति का ग्रैंड तमाशा शुरू होने में कुछ घंटे बाकी हैं। बेशक आपने वोट डाला है या डालने जा रहे होंगे लेकिन आपको हक नहीं है कि आप तय करें कि किसकी सरकार केंद्र में बननी चाहिए। इसे तय करेंगे भारतीय राजनीति के कुछ उभरते तो कुछ खतरनाक किस्म की राजनीति करने वाले नेता। बस 13 मई को आखिरी दौर का मतदान और बाकी है। यानी शाम को या रात को जब टीवी पर किसी न्यूज चैनल को देख रहे होंगे तो इसकी आहट महसूस कर सकेंगे। हालांकि तमाशा कई दिन से शुरू हो चुका है लेकिन अब वह क्लाइमैक्स पर पहुंचने वाला है। इस बार टीवी चैनलों के जरिए माइंड गेम भी खेला जा रहा है। चुनाव की घोषणा के फौरन बाद भारतीय मीडिया ने यह पहले दिन ही लोगों को बता दिया था कि इस बार किसी का भी भाग्य जग सकता है। भारत उदय हो या न हो नेता उदय जरूर हो जाएगा। चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ा और बयानबाजी शुरू हुई तो यह माइंड गेम में बदल गई। कुछ नेता तो बयान ही इसलिए दे रहे थे कि देखते हैं सामने वाले पर क्या असर रहता है। माइंड गेम खेलने में कांग्रेस सबसे आगे रही और बीजेपी दूसरे नंबर पर। आतंकवाद को बीजेपी मुद्दा न बना सके, कांग्रेस ने कंधार कांड को सबस

बाजीगरों के खेल से होशियार रहिए

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संसद में तमाम बाजीगर फिर एकत्र हो गए हैं और हमारे-आपके जेब से टैक्स का जो पैसा जाता है, वह इन्हें भत्ते के रूप में मिलेगा। जाहिर है एक बार फिर इन सबका मुद्दा आतंकवाद ही होगा। मीडिया के हमले से बौखलाए इन बाजीगरों में इस बार गजब की एकजुटता दिखाई दे रही है। चाहे वह आतंकवाद को काबू करने के लिए किसी केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने का मामला हो या फिर एक सुर में किसी को शाबासी देने की बात हो। प्रधानमंत्री ने मुंबई पर हमले के लिए देश से माफी मांग ली है और विपक्ष के नेता व प्रधानमंत्री बनने के हसीन सपने में खोए लालकृष्ण आडवाणी ने सरकार द्वारा इस मुद्दे पर अब तक की गई कोशिशों पर संतोष का भाव भी लगे हाथ जता दिया है। आडवाणी ने केंद्रीय जांच एजेंसी बनाने पर भी सहमति जता दी है। आडवाणी यह कहना भी नहीं भूले कि राजस्थान और दिल्ली में बीजेपी की हार का मतलब यह नहीं है कि हमारे आतंकवाद के मुद्दे को जनता का समर्थन हासिल नहीं है। तमाम बाजीगर नेता जनता का संदेश बहुत साफ समझ चुके हैं और उनकी इस एकजुटता का सबब जनता का संदेश ही है। यह हकीकत है कि मुंबई का हमला देश को एक कर गया है। इतनी उम्मीद बीजेपी और मुस्लिम कट्टर

शर्म मगर उनको नहीं आती

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आज तक इस पर कोई शोध नहीं हुआ कि दरअसल नेता नामक प्राणी की खाल कितनी मोटी होती है। अगर यह शोध कहीं हुआ हो तो मुझे जरूर बताएं - एक करोड़ का नकद इनाम मिलेगा। अब देखिए देश भर में इस मोटी खाल वाले के खिलाफ माहौल बन चुका है लेकिन किसी नेता को शर्म नहीं आ रही। कमबख्त सारे के सारे पार्टी लाइन भूलकर एक हो गए हैं और गजब का भाईचारा दिख रहा है। क्या भगवा, क्या कामरेड, क्या लोहियावादी और क्या दलितवादी एक जैसी कमेस्ट्री एक जैसा सुर। एक और खबर ने नेताओं की कलई खोल दी है और सारे के सारे पत्रकारों से नाराज हो गए हैं। वह खबर यह है कि एनएसजी के 1700 जवान वीआईपी ड्यूटी में 24 घंटे लगे हुए हैं। इन पर हमारे-आपकी जेब से जो पैसा टैक्स के रूप में जाता है, उसमें से 250 करोड़ रुपये इनकी सुरक्षा पर खर्च किए जा रहे हैं। इसमें अकेले प्रधानमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही नहीं बल्कि लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, मुरली मनोहर जोशी, एच.डी. देवगौड़ा, अमर सिंह जैसे नेता शामिल हैं। इसमें किसी कम्युनिस्ट नेता का नाम नहीं है। इसके अलावा बड़े नेताओं को पुलिस जो सिक्युरिटी कवर देती है , वह अलग है। एनएसजी के इन 17

नेता का बेटा नेता बने, इसमें समस्या है

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- स्वतंत्र जैन ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस में तूफान आया हुआ है। आरोप है कि पार्टी में टिकट बेचे गए हैं। आरोप पार्टी की ही एक महासचिव ने लगाया है। इस पूरे विवाद पर गौर करें तो इसमे दो छोर साफ नजर आते हैं। एक तरफ आधुनिकता है तो दूसरी तरफ परंपरावादी। एक तरफ भारतीय पॉलटिक्स के ओल्ड गार्ड हैं तो दूसरी तरफ युवा नेता। जमे जमाए और खुर्राट नेता जहां यह कह रहे हैं कि 'जब डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और वकील का बेटा वकील बन सकता है तो नेता का बेटा नेता क्यों नहीं हो सकता, तो राहुल गांधी जैसे युवा नेता कह रहे हैं पॉलटिक्स में एंट्री कैसे हो इसका भी एक तरीका होना चाहिए। नेता का बेटा नेता बने इसमें किसी को क्या बुराई हो सकती है, आखिर जार्ज बुश सीनियर के पुत्र जार्ज बुश जूनियर भी तो आठ साल तक लोकतंत्र के मक्का माने जाने वाले अमेरिका के प्रेसीडेंट रहे। पर इस स्टेटमेंट में जो बात झलकती उससे वंशवाद की बू आती है, कि नेतागीरी पर पहला हक नेता के बेटे का है। यह वही वंशवाद की बीमारी है जिसका आरोप कभी कांग्रेस पर लगा करता था और जो अब महामारी बनकर लगभग हर पार्टी को अपनी चपेट में ले चुकी है। नेता का बेटा नेतागी