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मुसलमानों के नाम खुला पत्र

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बिरादरान-ए-मिल्लत अस्सलामअलैकुम, यह ख़त ज़रूरी वजह से लिखना पड़ रहा है।  अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर जो चंदा जमा हुआ, उसमें बड़े घोटाले का आरोप मंदिर के ट्रस्टी चंपत राय एंड कंपनी पर लगा है। दो करोड़ की ज़मीन बीस करोड़ में ख़रीदना दिखाया गया है।  मेरा मुस्लिम दोस्तों से निवेदन है कि वे इस मुद्दे पर टीका टिप्पणी से बचें। ये देश का नहीं असली और नक़ली सनातियों के बीच का मामला है। देखना है कि सनातन धर्म के झंडाबरदार राम के नाम पर बनने वाले मंदिर के घोटाले पर क्या कदम उठाते हैं। आप लोग तमाशा देखिए।  हो सकता है कि #आरएसएस इस मामले को पलट दे और घोटाले का आरोप लगाने वालों को ही फँसाकर ग़ैर हिन्दू करार दे दे। हमें चांस विवाद में पार्टी नहीं बनना है।  दरअसल, यह सब #यूपी_विधानसभा_चुनाव_की_तैयारी का हिस्सा है। क्या पता कोई नूरा कुश्ती हो? क्या पता योगी ने ही काग़ज़ लीक करा दिए हों या आइडिया दिया हो। क्योंकि चंपत राय सीधे मोदी का आदमी है। चंपत और #संघ का सीधा संवाद होता है, उसमें कोई योगी नहीं आता। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आप...ये सब कुल मिलाकर हिन्दूवादी पार्टियाँ हैं। इन सभी दलों के नेताओं

हागिया सोफिया और बाबरी मस्जिद ः एक जैसे हालात...बस किरदारों का है फर्क

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मेरा यह लेख द प्रिंट वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है। हिन्दीवाणी के पाठकों तक पहुंचाने के लिए उस लेख को यहां भी पेश किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां वह लेख असंपादित है। - यूसुफ किरमानी तुर्की में हागिया सोफिया म्यूजियम को फिर से मस्जिद बनाने का फैसला होने पर भारत में सेकुलरवादी दो धड़ो में बंट गए। बड़ा अटपटा है, कहां तुर्की और कहां भारत – हजारों किलोमीटर का फासला। लेकिन भारत में इस पर तीखी बहस शुरू हो गई। अब जबकि तुर्की के सुप्रीम कोर्ट ने इस म्यूजियम को मस्जिद बनाने के पक्ष में फैसला दे दिया है तो भारत में बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का मुद्दा फिर से बहस के केंद्र में आ गया है। इतना ही नहीं भारत में दक्षिणपंथी गिरोह के लोग अचानक म्यूजियम के बचाव में आ गए हैं और वे आधुनिक तुर्की के इतिहास का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि वहां के सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। अगर उस म्यूजियम को मस्जिद में बदला गया तो अनर्थ हो जाएगा। बहस दिलचस्प होती जा रही है।  भारत में सेकुलरवादियों का एक धड़ा कह रहा है – जैसे भारत में मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के

अयोध्या को लेकर फिक्रमंद नहीं हैं मुसलमान...

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मेरा यह लेख आज 6 दिसंबर 2019 को नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है। यहां  हिंदीवाणी के पाठकों के लिए पेश है...इसे एनबीटी की आनलाइन साइट पर भी पढ़ सकते हैं। उसका लिंक इस लेख के अंत में मिलेगा... अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बावजूद बिछी राजनीतिक बिसात सिमटने का नाम नहीं ले रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि 99 फीसदी मुसलमान चाहते हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जाए। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाना था जो अयोध्या में राम मंदिर का काम संभालेगी। 25 दिन से ज्यादा हो चुका है लेकिन ट्रस्ट नहीं बना। इस ट्रस्ट में जगह पाने के लिए तमाम साधु संतों के अखाड़े और कई स्वयंभू बाबा अलग तरह की राजनीति में व्यस्त हैं। यह भी ठीक है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में तटस्थ चल रहे लोगों के गले भी नहीं उतरा और उसके तमाम विरोधाभास को लेकर बहस अभी भी जारी है। लेकिन यहां जेरे बहस 99 फीसदी मुसलमानों के नाम पर दायर की