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अशांति फैलाओ और नोबल पुरस्कार पाओ

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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को नोबल पुरस्कार की खबर कुछ भारतीय अखबारों के लिए लीड थी तो दूसरी तरफ कुछ अमेरिकी अखबारों में यह छप रहा था कि क्या यह आदमी नोबल पुरस्कार का हकदार है। राष्ट्रपति की कुर्सी संभाले इस आदमी को चंद महीने ही हुए हैं और किस आधार पर इसे नोबल पुरस्कार वालों ने शांति का मसीहा मान लिया। हालांकि कुछ भारतीय अखबारों ने सवाल उठाया कि क्या महात्मा गांधी इस पुरस्कार के हकदार नहीं थे जिन्होंने अहिंसा के बल पर अपने आंदोलन को कामयाब बनाया। लेकिन गांधी जी को इस पुरस्कार के देने में एक नियम आड़े आ गया...कि नोबल पुरस्कार कमिटी सिर्फ उन्हीं लोगों को इसके लिए चुनती है जो जिंदा हैं। यानी जो मर चुके हैं उनके कार्यों का मूल्यांकन संभव नहीं है। यह अजीबोगरीब नियम हैं और दुनिया में जितने भी पुरस्कार दिए जाते हैं उनमें इस तरह के नियम नहीं आड़े आते। लेकिन हम लोग क्या कर सकते हैं...पूंजीवादी देश अपनी शर्तों पर कर्ज देते हैं और अपनी ही शर्तों पर पुरस्कार भी देते हैं। नोबल के लिए यह जरूरी है कि आपका जुड़ाव अमेरिका या यूरोप की किसी यूनिवर्सिटी या संस्था से जरूर हो नहीं तो आपके काम को म