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भारतीय लोकतंत्र पर जॉर्ज सोरोस की टिप्पणी को समझिए

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Decoding George Soros comment on Indian Democracy  - यूसुफ किरमानी  अडानी मुद्दे के बहाने भारत में लोकतंत्र पुनर्जीवित हो सकता है यह बात एक विदेशी पूँजीपति सोचता है। उनका नाम है जॉर्ज सोरोस (George Soros)।  जबकि हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि अडानी समूह भारत को व्यवस्थित ढंग से लूट रहा है। एक मुद्दा, दो विदेशी विचार। पूँजीपति जॉर्ज सोरोस का बयान आने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे भारत पर हमला बताया। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह ने भी यही कहा था कि उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट आने का मतलब भारत पर हमला है। तो, इस बात पर अडानी समूह (Adani Group) और केंद्र की मोदी सरकार सहमत हैं कि भारत पर विदेशी लोग हमला कर रहे हैं। लेकिन हमले के केंद्र में अडानी समूह है। कौन किसका बचाव कर रहा है। इस पर माथापच्ची न करते हुए आगे जॉर्ज सोरोस पर बात करते हैं। जॉर्ज सोरोस पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने पार्टी की ओर से यह कहने की कोशिश की है कि यह हमारा अपना मामला है, आप क्यों बीच में कूद पड़े। लेकिन जयराम रमेश या उनकी कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे हैं।  जॉर्ज सोरोस खुद पूँज

आज़म खान के भरोसे मुसलमान !!!

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आज़म खान आज (20 मई 2022) जेल से छूट गए हैं। मुसलमान ख़ुशियाँ मना रहा है, यह जाने बिना की #आज़म_खान का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा? देश नफरत की आग में जल रहा है। मुसलमान तय नहीं कर पा रहा है कि उसे क्या करना चाहिए। ऐसे में किसी आज़म खान में उम्मीद तलाशना खुद को धोखा देना है। हालाँकि आज़म खान से पूरी हमदर्दी है। किसी पर 89 केस बना दिए जाएँ तो उसके महत्व को समझा जा सकता है।  बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की हरकतों, बयानों को भुलाया नहीं जा सकता। आज़म खान उस वक्त मुलायम के साथ थे। उस वक्त आज़म का क्या फ़र्ज़ बनता था? इसका इतिहास लिखा जाएगा। अयोध्या आंदोलन को चरम पर ले जाने के दाग से ये दोनों भी बच नहीं पाएंगे। जेल से बाहर आने के बाद अब ज़रा आज़म के बयानों पर नज़र रखने की ज़रूरत है। मुद्दा ये है कि हर नेता की दुकान है। वो धर्म, जाति, नफ़रत के कारोबार से मुसलमान हिन्दू दोनों को बेवकूफ बना रहा है। जिस देश में महंगाई, बेरोज़गारी चरम पर हो, इस देश के राजनीतिक दलों के लिए बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने की तमन्ना ही न हो तो उस देश की जनता को किसी नेता विशेष से कोई उम्मीद नह

महिला दिवस की बधाई देने वालों के किरदार तो देखें

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  आज महिला दिवस की बधाई वे लोग भी दे रहे हैं जिनकी अवधारणा में - वीर भोग्या वसुंधरा - शामिल है। इस अवधारणा के तमाम क्रूरतम इंटरपेटेशन (मीमांसा) आप लोगों ने पढ़े होंगे। चलिए, हम वीर भोग्या वसुंधऱा की अवधारणा पर बहस नहीं करते। हम महिलाओं की आजादी पर बात करते हैं। वीर भोग्या वसुंधरा वाले वे लोग हैं जिन्होंने गढ़ी गई छवियों वाली महिलाओं के अपने सनातनी कुनबे से बाहर निकल कर कभी उन महिलाओं की जीवनगाथा का अध्ययन नहीं किया, जिन्होंने वास्तविक क्रांतियां कीं या समाज को नई दिशा दी। भाजपा-आरएसएस ने जो नैरेटिव सेट कर दिया, बस उन्हीं महिलाओं के गुणगान से सनातनी पीढ़ी निहालोनिहाल है। इन सनातनियों के मुंह से कभी सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख का नाम नहीं निकलता। इनका इतिहास लेखन इन दो महिलाओं पर मौन है। इनके अनुषांगिक (फ्रंटल) संगठनों के नाम पौराणिक महिलाओं के नाम पर हैं, इतिहास में जीवित किरदारों से एक भी संगठन नाम नहीं है। सुंदर लाल बहुगुणा न बताते तो हम लोग जान ही नहीं पाते कि उत्तराखंड में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए क्या कुर्बानियां दीं। इन्हें ग्रे

मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त, जैसे उसे कोई सरोकार ही न हो

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उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ग्लेशियर फट गया। उत्तराखंड वालों को ही फ़िक्र नहीं। वहाँ की भाजपा सरकार को चिन्ता नहीं। सरकार और उत्तराखंड की जनता अयोध्या में मंदिर के लिए चंदा जमा करने में जुटी है। उसे ग्लेशियर से क्या मतलब?  पर्यावरण की चिंता करने वाली ग्रेटा थनबर्ग का मजाक उड़ाने से उत्तराखंड वाले भी नहीं चूके थे। ... बाकी भारत के लोगों का सरोकार भी अब पर्यावरण या ऐसे तमाम मुद्दों से कहाँ रहा।  जैसे इन्हें देखिए।... मुसलमानों, बहुजनों और ओबीसी को उन पर मंडरा रहे ख़तरे की चिन्ता ही नहीं है।  भाजपा-आरएसएस ने बहुजनों और ओबीसी आरक्षण को बहुत होशियारी से ठिकाने लगा दिया है। फिर भी ओबीसी, दलित भक्ति में लीन हैं... लेकिन मुसलमान भी कम लापरवाह नहीं हैं। मुसलमान मुर्ग़ा रोटी खाकर मस्त है। ख़ैर...हमारा मुद्दा आरक्षण नहीं है। कल यानी 6 फ़रवरी 2021 को किसानों ने चक्का जाम किया था।  चक्का जाम की ऐसी ही अपील शाहीनबाग़ आंदोलन के दौरान छात्र नेता और जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर शारजील इमाम ने पिछले साल भी की थी। लेकिन हुकूमत ने शारजील को देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया। जबकि उसने साफ़ साफ़ कहा था कि बिना

किसान नहीं, हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने की राजनीति

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-यूसुफ़ किरमानी किसान आंदोलन की वजह से आम जनता में अपने हिन्दू वोटबैंक को बिखरने से रोकने के लिए भाजपा और आरएसएस अपने उसी पुराने नुस्खे पर लौटते दिखाई दे रहे हैं। यूपी-एमपी की प्रयोगशाला में इस पर दिन-रात काम चल रहा है। यूपी में चल रहे घटनाक्रमों पर आपकी भी नजर होगी। वहां एक तीर से कई शिकार किए जा रहे हैं।   बुलंदशहर के शिकारपुर कस्बे में गुरुवार को युवकों की एक बाइक रैली निकाली गई। रैली के दौरान उत्तेजक नारे लगाते हुए बाइक सवार युवक मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरे। मुस्लिम इलाके से इसकी प्रतिक्रिया नहीं आई। यूपी पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। हालांकि इस बाइक रैली का वीडियो वायरल है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जमा करने को यह रैली निकाली गई थी।  ऐसी ही बाइक रैली पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर और कई अन्य स्थानों पर निकाली गई और मस्जिदों के आगे इस रैली को रोककर उत्तेजक नारेबाजी की गई। मस्जिदों पर जबरन भगवा झंडा लगा दिया गया। टीवी चैनलों ने इस खबर को गायब कर दिया। सिर्फ कुछ अखबारों में इन दंगों और बाइक रैली की खबर छपी। यूपी ही नहीं देश के तमाम शहरों म

अटल बिहारी वाजपेयी को ज़बरन स्वतंत्रता सेनानी बनाने की कोशिश

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  यूसुफ किरमानी मोदी सरकार ने 25 दिसम्बर 2020 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन मनाते हुए उन्हें फिर से स्वतंत्रता सेनानी स्थापित करने की कोशिश की। भाजपा शासित राज्यों में अटल के नाम पर सुशासन दिवस मनाया गया। इसलिए इस मौक़े पर पुराने तथ्यों को फिर से कुरेदना ज़रूरी है। भाजपा के पास अटल ही एकमात्र ब्रह्मास्त्र है जिसके ज़रिए वो लोग अपना नाता स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ते रहते हैं।  यह तो सबको पता ही है कि भाजपा का जन्म आरएसएस से हुआ। भाजपा में आये तमाम लोग सबसे पहले संघ के स्वयंसेवक या प्रचारक रहे। 1925 में नागपुर में अपनी पैदाइश के समय से ही संघ ने अपना राजनीतिक विंग हमेशा अलग रखा। पहले वह हिन्दू महासभा था, फिर जनसंघ हुआ और फिर भारतीय जनता पार्टी यानी मौजूदा दौर की भाजपा में बदल गया। कुछ ऐतिहासिक तथ्य और प्रमाणित दस्तावेज हैं जिन्हें आरएसएस, जनसंघ के बलराज मधोक, भाजपा के अटल और आडवाणी कभी झुठला नहीं सके।  आरएसएस  संस्थापक गोलवरकर ने भारत में अंग्रेज़ों के शासन की हिमायत की। सावरकर अंडमान जेल में अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगने के बाद बाहर आये। सावरकर के चेले नाथूराम गोडसे ने

हिन्दुत्व के नए एजेंडे का आग़ाज़ है मोदी का नया नैरेटिव

मेरा यह लेख जनचौक डॉट कॉम पर प्रकाशित हो चुका है। इसे यहाँ हिन्दीवाणी के नियमित पाठकों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है। मोदी ने कल अयोध्या में अपने भाषण में स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) की तुलना राम मंदिर आंदोलन  (RJB Movement) से कर दी।  मुझे लगा कि जरूर तमाम देशभक्तों का ख़ून खौलेगा और इस पर वो मोदी को आड़े हाथों लेंगे। लेकिन देशभक्तों ने मोदी के इस नैरेटिव (विचार) को स्वीकार कर लिया है।  मोदी नया नैरेटिव गढ़ने में माहिर है।  सब जानते हैं कि देश की आजादी की लड़ाई में शहीदेआजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अशफाकउल्लाह खान से लेकर गांधी जी तक किसका क्या योगदान था। लोग धर्म, जाति, क्षेत्र की परवाह किए बिना इसमें शामिल थे। लेकिन मोदी का नैरेटिव कहता है कि आरजेबी मूवमेंट आजादी की लड़ाई से भी बड़ा आंदोलन था।  आजादी के जिस आंदोलन ने देश को एकता के धागे में पिरोया, आज वह एक धर्म विशेष के चंद लोगों के आंदोलन के सामने बौना हो गया। मोदी ने अपना नया नैरेटिव पेश करने के दौरान गांधी जी का नाम लिया। लेकिन उसी मुँह से गांधी के हत्यारे और हिन्दू महासभा के सदस्य नाथूराम गोडस

हागिया सोफिया और बाबरी मस्जिद ः एक जैसे हालात...बस किरदारों का है फर्क

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मेरा यह लेख द प्रिंट वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है। हिन्दीवाणी के पाठकों तक पहुंचाने के लिए उस लेख को यहां भी पेश किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां वह लेख असंपादित है। - यूसुफ किरमानी तुर्की में हागिया सोफिया म्यूजियम को फिर से मस्जिद बनाने का फैसला होने पर भारत में सेकुलरवादी दो धड़ो में बंट गए। बड़ा अटपटा है, कहां तुर्की और कहां भारत – हजारों किलोमीटर का फासला। लेकिन भारत में इस पर तीखी बहस शुरू हो गई। अब जबकि तुर्की के सुप्रीम कोर्ट ने इस म्यूजियम को मस्जिद बनाने के पक्ष में फैसला दे दिया है तो भारत में बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का मुद्दा फिर से बहस के केंद्र में आ गया है। इतना ही नहीं भारत में दक्षिणपंथी गिरोह के लोग अचानक म्यूजियम के बचाव में आ गए हैं और वे आधुनिक तुर्की के इतिहास का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि वहां के सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। अगर उस म्यूजियम को मस्जिद में बदला गया तो अनर्थ हो जाएगा। बहस दिलचस्प होती जा रही है।  भारत में सेकुलरवादियों का एक धड़ा कह रहा है – जैसे भारत में मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के