संदेश

मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चूंकि...इसलिए...नहीं कहेंगे...

चूंकि जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह जय हिंद बोलते थे....इसलिए हम जयहिंद नहीं बोलेंगे... चूंकि मामूली से लड़के कन्हैया कुमार ने नया नारा - जय जवान, जय किसान, जय संविधान ...दिया है तो इसलिए अब हम इसका भी विरोध करेंगे और इसकी जगह फर्जी राष्ट्रवाद का नया नारा ढूंढेंगे... चूंकि बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने भारतीय संविधान लिखकर तमाम परेशानियां बढ़ा दी थीं तो इसलिए उन्हें छद्म रूप से मानेंगे लेकिन उन्हें और उनके विचारों को मिटाने की कोशिश जारी रहेगी। चूंकि शास्त्री जी जय जवान-जय किसान बोलते थे ....इसलिए हम वो भी नहीं बोलेंगे...शर्म आती है न चूंकि नेहरू ने डिस्कवरी अॉफ इंडिया में आइडिया अॉफ इंडिया का जो खाका पेश किया...हम उसे सख्त नापसंद करते हैं...इसलिए हम सिर्फ बहुसंंख्यक आबादी वाले अखंड ..?.. राष्ट्र को आइडिया अॉफ इंडिया मानेंगे... चूंकि बाबा साहब ने लिखा था ...We the people of India...इसलिए हमें ये सब न कहकर कहेंगे...We the only people of India who are custodian of this (so called) Nationalism...  चूंकि भारत के गांवों

सुन रहा है न तू...

जुमलेबाजों के लिए किसानों के आंसू मायने नहीं रखते ....................................................................... कल बारिश के साथ ओले पड़े...तीन दिन पहले भी बारिश हुई थी ओले पड़े थे... मैं पिछले चार दिन से इस इंतजार में था कि कोई नेता, कोई मंत्री, कोई प्रधान चौकीदार कम से कम दो शब्द बोलकर उन किसानों के आंसू पोंछने की कोशिश करेगा, जिनके गेंहू की फसल इस अचानक बदले मौसम में बर्बाद हो गई... लेकिन कहीं कोई बयान...कहीं कोई सहायता की घोषणा नहीं हुई...इस बारिश और ओले ने छोटे किसान को तो बर्बाद कर दिया है लेकिन संजीव बालियान, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बीरेंद्र सिंह जैसे बड़े तथाकथित किसानों को भी नुकसान पहुंचा है...लेकिन मजाल है कि किसी के मुंह से कोई लफ्ज निकला हो...मजाल है कि किसी मदद की घोषणा की गई... अब जरा अपनी आंखों के सामने दिल्ली की यमुना नदी के किनारे की कल की वो तस्वीर लाइए...गुरुजी के साथ विशालकाय मंच पर देश के प्रधान चौकीदार... सामने नर्तकियां, संगीतकार, भजन गायक....और न जाने क्या-क्या...मंच से देश को बताया जा रहा है कि ऐसे ही कार्यक्रम